अहोई अष्टमी के व्रत (पर्व ) को माताए अपनी सन्तानो के कल्याण के लिए रखती हैं पहले से इस व्रत को केवल पुत्रों (संतान) प्राप्ति के लिए रखा जाता था लेकिन अब यह व्रत सभी संतानों के कल्याण के लिए किया जाता है माताएं, बहुत ही उत्साह के साथ अहोई (अहोई अष्टमी) माता का व्रत करते हुए अपनी संतानों को दीर्घायु एवं स्वस्थ्य रखने की प्रार्थना माता से करती हैं यह व्रत तारों या चन्द्रमा को देखने (दर्शन) तथा पूजन करके समाप्त किया जाता है।
यह व्रत संतानहीन दम्पति के लिए महत्वपूर्ण है या फिर जो महिलाओं को गर्भधारण नहीं होता हैं अथवा जिन महिलाओं को गर्भपात की समस्या हो उन्हें संतान प्राप्ति के लिए अहोई माता व्रत करना चाहिए
अहोई अष्टमी व्रत करवा चौथ के समान है। अंतर केवल इतना है कि करवा चौथ व्रत पति के लिए रखा जाता है वहीँ अहोई अष्टमी का व्रत संतान के लिए रखा जाता है।