कैंची धाम:नीम करोली बाबा के बुलेटप्रूफ कंबल की कहानी



नीम करौली बाबा का आश्रम नैनीताल से 20 किलोमीटर दूर नैनीताल अल्मोड़ा रोड पर समुद्रतल से 1400 मीटर ऊचाई पर स्तिथ है। यहाँ पर दो घुमावदार मोड़ है जिनकी आकृति कैंची नुमा है। इसलिए इस आश्रम को कैंची धाम आश्रम कहा जाता है ।
नीम करोली बाबा को इस आश्रम में आने के बाद से ही अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली उस समय उनके एक अमेरिकी भक्त रिचर्ड एलपर्ट (रामदास) ने नीम करोली बाबा के चमत्कारों पर ‘मिरेकल ऑफ़ लव’ नामक एक किताब लिखी जिसके बाद से दुनियाभर के देशों का आकर्षण कैंची धाम की ओर बढ़ा।
रिचर्ड एलपर्ट द्वारा लिखी कहानी ‘मिरेकल ऑफ़ लव’ इस में ‘बुलेटप्रूफ कंबल’ नाम से एक घटना का जिक्र है। यह घटना 1943 के आस पास की है ।बाबा के अनेको भक्त थे। उनमें से ही एक बुजुर्ग दंपत्ति थे जो फतेहगढ़ में रहते थे।
एक दिन अचानक बाबा उनके घर पहुंच गए और कहने लगे वे रात में यहीं रुकेंगे। दोनों दंपत्ति को अपार खुशी तो हुई, लेकिन उन्हें इस बात का दुख भी था कि घर में महाराज की सेवा करने के लिए कुछ भी नहीं था। हालांकि जो भी था उन्हों बाबा के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। बाबा वह खाकर एक चारपाई पर लेट गए और कंबल ओढ़कर सो गए।
बुजुर्ग दंपत्ति से कंबल को गंगा जी में प्रवाहित कर दो
दोनों बुजुर्ग दंपत्ति भी सो गए, लेकिन क्या नींद आती। महाराजजी कंबल ओढ़कर रातभर कराहते रहे, ऐसे में उन्हें कैसे नींद आती। वे वहीं बैठे रहे उनकी चारपाई के पास। पता नहीं महाराज को क्या हो गया। जैसे कोई उन्हें मार रहा है। जैसे-तैसे कराहते-कराहते सुबह हुई। सुबह बाबा उठे और कंबल को लपेटकर बजुर्ग दंपत्ति को देते हुए कहा इसे गंगा में प्रवाहित कर देना। इसे खोलकर देखना नहीं अन्यथा फंस जाओगे। दोनों दंपत्ति ने बाबा की आज्ञा का पालन किया। जाते हुए बाबा ने कहा कि चिंता मत करना महीने भर में आपका बेटा लौट आएगा।
जब वे चादर लेकर नदी की ओर जा रहे थे तो उन्होंने महसूस किया की इसमें लोहे का सामान रखा हुआ है, लेकिन बाबा ने तो खाली चादर ही हमारे सामने लपेटकर हमें दे दी थी। खैर, हमें क्या। हमें तो बाबा की आज्ञा का पालन करना है। उन्होंने वह चादर वैसी की वैसी ही नदी में प्रवाहित कर दी।
लगभग एक महीने बाद उनका पुत्र बर्मा में छिड़ी लड़ाई से लौट आया. वह ब्रिटिश फौज में सैनिक था. जब वह घर आया, तो उसने अपने माता-पिता को एक ऐसी कहानी सुनाई, जिससे वो समझ गए कि उस रात आखिर बाबा क्यों कराह रहे थे।
बेटा से युद्ध की कहानी सुन बुजुर्ग दंपत्ति रह गए हैरान
उसने बताया कि करीब महीने भर पहले एक दिन वह दुश्मन फौजों के साथ घिर गया था। रातभर गोलीबारी हुई। उसके सारे साथी मारे गए लेकिन वह अकेला बच गया। मैं कैसे बच गया यह मुझे पता नहीं। उस गोलीबारी में उसे एक भी गोली नहीं लगी। रातभर वह जापानी दुश्मनों के बीच जिन्दा बचा रहा। भोर में जब और अधिक ब्रिटिश टुकड़ी आई तो उसकी जान में जा आई। यह वही रात थी जिस रात नीम करोली बाबा जी उस बुजुर्ग दंपत्ति के घर रुके थे.रात भर वह बुजुर्ग दंपति के बेटे पर लगने वाली गोलियों को अपने शरीर पर खा रहे थे.
कहा जाता है की बाबा नीम करौली हमेशा अपने साथ एक कम्बल रखा करते थे। इसलिए नीम करौली बाबा के भक्त भी उन्हें उपहार स्वरूप कम्बल ही देते थे
नीम करोली बाबा के ऐसे ही अनेकों किस्से हैं, जिन्हें सुनकर मन रोमांचित हो जाता हैं.और उनके दर्शन की इच्छा होने लगती है
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5 comments
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