कैंची धाम:नीम करोली बाबा की महिमा



उत्तराखंड स्थित कैंची धाम में हर साल 15 जून को एक विशाल मेले व भंडारे का आयोजन होता है।
भारत में कई ऐतिहासिक मंदिर और धाम बने है ।इन धामों और मंदिरो से जुड़ी लोगो की आस्था एवं पंरपराएँ अचंभित करने वाली है .लेकिन भारत के इन मंदिरों में एक ऐसा भी मंदिर है जिस पर केवल भारतीयों की ही नहीं बल्कि विश्व के लोगों की आस्था है .यह मंदिर है, उत्तराखंड के नैनीताल में स्थित कैंची धाम (Kainchi Dham)
क्या है कैंची धाम का पूरा इतिहास
नैनीताल अल्मोड़ा रोड पर स्थित कैंची धाम बाबा नीम कैरोली (Neem Karoli Baba ) का तपोस्थल बताया जाता है जिन्होनें क्षिप्रा नाम की पहाड़ी नदी के किनारे साल 1962 में कैंची धाम की स्थापना की थी।कहा जाता है कि नीम कैरोली बाबा के पास कुछ आध्यात्मिक शक्ति थी जिसे वो लोगों को सही रास्ता बताने में मदद करते थे।
नीम करोली बाबा के धाम में आ चुके बड़े बड़े नामों में पूर्व राष्ट्रपति वीवी गिरी, अँग्रेज जनरल मकन्ना, भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु एवं दुनिया की सबसे मशहूर कंपनी एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स से लेकर फेसबुक के फाउंडर मार्क जुकरबर्ग आदि नाम शामिल है। आसान भाषा में कहा जाए तो ऐसा लगता है। यहां आकर अपनी जिंदगी में अलग-अलग दुविधाओं से गुजर रहे लोगों को एक विजन मिल जाता है।जिंदगी को नए तरिके से देखने का जिंदगी जीने का इसलिए लोगो में आज भी कैंची धाम (Kainchi Dham) के प्रति बहुत आस्था देखि जाती है
कैंची धाम की स्थापना के बाद उनके एक अमेरिकी भक्त राम दास ने उन पर एक किताब लिखी थी। जिसके बाद से दुनियाभर के देशों का आकर्षण कैंची धाम की ओर बढ़ा।
नीम करोली बाबा का जन्म कब और कहा हुआ



नीम करोली जी का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उनका जन्म अकबरपुर (उत्तर प्रदेश) में सन 1900 के आस पास हुआ था। नीम करोली महाराज के पिता का नाम श्री दुर्गा प्रशाद शर्मा था।11 वर्ष कि उम्र में लक्ष्मी नारायण शर्मा का विवाह हो गया था। बाबा जी ने जल्दी ही घर छोड़ दिया और लगभग 10 वर्ष तक घर से दूर रहे। एक दिन उनके पिता उनसे मिले और गृहस्थ जीवन का पालन करने को कहा। पिता के आदेश को मानते हुए नीम करौली बाबा घर वापस लौट आये और दोबारा गृहस्थ जीवन शुरू कर दिया। नीम करौली बाबा जी गृहस्थ जीवन के साथ- साथ धार्मिक और सामाजिक कामों में सहायता करते थे। नीम करौली बाबा को दो बेटे और एक बेटी हुई।। नीम करोली के आश्रम में आने वाले विदेशियों में सबसे ज्यादा लोग अमेरिका के है शायद इसलिए क्योंकि उन पर राम दास की किताब का प्रभाव पड़ा होगा जिसने उन्हें यहां आने के लिए प्रेरित किया लेकिन आज भी कैंची धाम (नीम करोली बाबा के आश्रम) से कोई भी व्यक्ति खाली हाथ नहीं जाता ।कैंची धाम में आ कर हर दुःख,परेशानी का हल मिल जाता है ऐसा लोगो का मन्ना है।
उन्होंने अपने शरीर का त्याग 11 सितंबर 1973 को वृंदावन में किया था।एवं आश्रम पहाड़ी इलाके में देवदार के पेड़ों के बीच स्थित है, यहां 5 देवी-देवताओं के मंदिर हैं। इनमें हनुमानजी का भी एक मंदिर है। बाबा नीम करोली हनुमानजी के परम भक्त थे और अपने जीवन में लगभग 108 हनुमान मंदिर बनवाए थे। वर्तमान में उनके हिंदुस्तान समेत अमरीका के टैक्सास में भी मंदिर हैं।



नीम करौली बाबा के जीवन की कुछ बातें
(1) नीम करौली बाबा का जन्म उत्तरप्रदेश के फिरोजाबाद जिले के अकबरपुर में रहने वाले एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
(2) मात्र 11 वर्ष की उम्र में ही उनका विवाह एक ब्राह्मण कन्या के साथ कर दिया गया था। परन्तु शादी के कुछ समय बाद ही उन्होंने घर छोड़ दिया तथा साधु बन गए। माना जाता है कि लगभग 17 वर्ष की उम्र में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी।
(3) लगभग 1962 के दौरान नीम करौली बाबा ने कैंची गांव में एक चबूतरा बनवाया जहां पर उन्हें साथ साथ पहुंचे हुए संतों साधु प्रेमी बाबा तथा सोमबारी महाराज ने हवन किया।
(4) नीम करौली बाबा हनुमानजी के बहुत बड़े भक्त थे। उन्हें अपने जीवन में लगभग 108 हनुमान मंदिर बनवाए थे। वर्तमान में उनके हिंदुस्तान समेत अमरीका के टैक्सास में भी मंदिर हैं।
(5) बाबा को वर्ष 1960 के दशक में अन्तरराष्ट्रीय पहचान मिली। उस समय उनके एक अमरीकी भक्त बाबा राम दास ने एक किताब लिखी जिसमें उनका उल्लेख किया गया था। इसके बाद से पश्चिमी देशों से लोग उनके दर्शन तथा आर्शीवाद लेने के लिए आने लगे।
(6) बाबा ने अपनी समाधि के लिए वृन्दावन की पावन भूमि को चुना। उनकी मृत्यु 10 सितम्बर 1973 को हुई। उनकी याद में आश्रम में उनका
मंदिर बना गाया तथा एक प्रतिमा भी स्थापित की गई।
(7) नीम करोली बाबा का समाधि स्थल नैनीताल के पास पंतनगर में है
(8) उत्तराखंड स्थित कैंची धाम में हर साल 15 जून को एक विशाल मेले व भंडारे का आयोजन होता है।
(9) नीम करौली बाबा को कैंची धाम बहुत प्रिय था। प्राय: हर गर्मियों में वे यहीं आकर रहते थे।
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