अहोई अष्टमी व्रत

आस्था

अहोई का अर्थ है अनहोनी को होनी कर देना, अहोई माता को समर्पित भारतीय पर्व अहोई अष्टमी के नाम से जाता है यह व्रत मुख्य रूप से उत्तर भारत में अधिक मनाया जाता है यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को आता है और यह पर्व हमेसा करवा चौथ के चार दिन बाद तथा दीपावली से आठ दिन पहले आता है

अहोई अष्टमी के व्रत का महत्व

अहोई अष्टमी के व्रत (पर्व ) को माताए  अपनी सन्तानो के कल्याण के लिए रखती हैं पहले से इस व्रत को केवल पुत्रों (संतान) प्राप्ति के लिए रखा जाता था लेकिन अब यह व्रत सभी संतानों के कल्याण के लिए किया जाता है माताएं, बहुत ही उत्साह के साथ अहोई (अहोई अष्टमी) माता का व्रत करते हुए अपनी संतानों को दीर्घायु एवं स्वस्थ्य रखने की प्रार्थना माता से करती हैं यह व्रत तारों या चन्द्रमा को देखने (दर्शन) तथा पूजन करके समाप्त किया जाता है।

यह व्रत संतानहीन दम्पति के लिए महत्वपूर्ण है या फिर जो महिलाओं को गर्भधारण नहीं होता हैं अथवा जिन महिलाओं को गर्भपात की समस्या हो उन्हें  संतान प्राप्ति के लिए अहोई माता व्रत करना चाहिए

अहोई अष्टमी व्रत करवा चौथ के समान है। अंतर केवल इतना है कि करवा चौथ व्रत पति के लिए रखा जाता है   वहीँ अहोई अष्टमी का व्रत संतान के लिए रखा जाता है। 

अहोई अष्टमी व्रत कथा और पूजा विधि

बहुत समय पहले की बात है किसी गांव में एक साहुकार रहता था जिसके सात बेटे सात बहुएं थी और एक बेटी भी थी जो दीपावली पर्व के अवसर पर मायके में आई थी दीपावली के उत्तसव् के लिए घर को लीपने की तैयारी चल रही थी इसी के लिए साहूकार की सातो बहुये जंगल से मिटटी लेन को जाती है तो ननद भी साथ चलने की बात बोलती है और भाबियों के साथ जंगल की ओर चल पड़ती है साहुकार की बेटी जहां से मिट्टी खोद रही थी उसी स्थान पर स्याहु (साही) अपने बच्चो के साथ रहती थी मिटटी खोदते समय ग़लती से साहूकार की बेटी की खुरपी से स्याहू का एक बच्चा मर जाता है स्याहू इस पर क्रोधित होकर बोली मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी स्याहू की यह बात सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभीयों से एक एक करके विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख को बंधवा लें सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते है वह सभी सात दिन बाद मर जाते हैं इस प्रकार सात पुत्रों की मृत्यु होने के बाद उसने पंडित जी को बुलाया और इसका कारण पूछा तब पंडित जी ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी सुरही गाय बहु की सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है रास्ते में थक जाने के कारण दोनों आराम करने लगते हैं की अचानक साहुकार की छोटी बहू की नज़र दूसरी ओर जाती हैं वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहु ने उसके बच्चे के मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है तब छोटी बहू बताती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है गरूड़ पंखनी इस बात पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है। स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहुएं होने का अशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहु का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है

अहोई माँ की आरती

जय अहोई माता जय अहोई माता ।
तुमको निसदिन ध्यावत हरी विष्णु धाता ।।
ब्रम्हाणी रुद्राणी कमला तू ही है जग दाता ।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता ।।
तू ही है पाताल बसंती तू ही है सुख दाता ।
कर्म प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता ।।
जिस घर थारो वास वही में गुण आता ।
कर न सके सोई कर ले मन नहीं घबराता ।।
तुम बिन सुख न होवे पुत्र न कोई पता ।
खान पान का वैभव तुम बिन नहीं आता ।।
शुभ गुण सुन्दर युक्ता क्षीर निधि जाता ।
रतन चतुर्दश तोंकू कोई नहीं पाता ।।
श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता ।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता ।।

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