दिल्ली पुलिस को दंगाइयों को देखते ही गोली मारने का आदेश जारी

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दिल्ली पुलिस को दंगाइयों को देखते ही गोली मारने का आदेश जारी
दिल्ली पुलिस को दंगाइयों को देखते ही गोली मारने का आदेश जारी

दिल्ली पुलिस को दंगाइयों को देखते ही गोली मारने का आदेश जारी हुआ है।

दिल्ली में अब तक हुई हिंसा में 13 लोग जान गंवा चुके हैं। इसमें शहीद हेड कॉन्स्टेबल रतनलाल का नाम भी शामिल है। 56 पुलिसकर्मी घायल हैं। 200 से अधिक आम लोग घायल हुए हैं।

दिल्ली के कई इलाकों में भारी तादाद में पुलिस बल तैनात है। और कई संवेदनशील स्थानों पर धारा 144 लगी हुई है। CAA के विरोध से शुरू हुए इन प्रदर्शनों ने कल हिंसक रूप धारण कर लिया था।

कल रात प्रदर्शनकारियो ने दिल्ली में तांडव मचाया कई वाहनों और मोटर साइकिल को आग के हवाले कर दिया. हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में बाज़ार बंद रहे क्योकि आज दिन में भी कई स्थानों से हिंसा की खबरे आयी है।

प्रदर्शनकारी खुले आम फायरिंग कर रहे है और पत्थरबाजी की जा रही है यह प्रदर्शन सांप्रदायिक रूप धारण कर चुके है। अभी तक प्राप्त जानकारी के अनुसार पुलिस ने जाफराबाद मेट्रो स्टेशन से प्रदर्शनकारियों को हटा दिया है।

दिल्ली का दोषी कौन ?

आम आदमी पार्टी ने किया था शाहीन में विरोध प्रदर्शन को समर्थन।

एक कटुसत्य यह भी है की दिल्ली के उपमुख्य मंत्री ने राष्ट्रीय न्यूज़ चैनल पर स्वीकार किया था कि उनकी पार्टी इस विरोध प्रदर्शन का समर्थन करती है।

उनके विधायक अमानतुल्लाह खान का जामिया और शाहीन बाग़ में लोगो को उकसाये जाने का वीडियो भी सामने आया था।

आम आदमी पार्टी ने अमानतुल्लाह खान पर कोई कारवाही नहीं की और अमानतुल्लाह खान दिल्ली विधान सभा में ओखला विधानसभा सीट से बड़ी जीत दर्ज की थी।

केंद्र सरकार ने नहीं उठाये कड़े कदम

जैसा की सभी जानते है दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है। शाहीन बाग़ और जाफराबाद के प्रदर्शनों को बहुत पहले ही रोके जाने की जरूरत थी अगर यह प्रदर्शन पहले ही रोक दिए जाते तो आज उन 13 लोगो की जान बच सकती थी।

मीडिया ने नहीं निभाई सकारात्म भूमिका।

खुद को लोक तंत्र का चौथा स्तम्ब कहने वाले मीडिया ने भी सकारात्मक भूमिका नहीं निभाई जिस तरह की रिपोर्टिंग की गयी उसने लोग को बाटने का कार्य किया। प्रदर्शकारियों और उनको गुमराह कर रहे नेताओ से कड़े सवाल पूछे जाने थे जिसमे मीडिया असफल रहा।

हम सुप्रीम कोर्ट पर सवाल नहीं उठा सकते किन्तु जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग़ मामले में मध्यस्थता कमेटी का गठन किया वह आम जनता को समझ नहीं आया।

दिल्ली हिंसा को लेकर जिस तरह दोनों तरफ़ से वीडियो और तस्वीरें सोशल मीडिया पर साझा की जा रही है वो बेशक आग में घी डालने का काम कर रही है। बेहतर होगा की इंटरनेट सेवा ही बंद कर दी जाए।

Image courtesy:livelaw.in

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