Know Mysterious Things About Patal Bhuvaneshwar | Amazing Cave Temple of Patal Bhuvaneshwar | history of Patal Bhuvaneshwar temple | पाताल भुवनेश्वर

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Amazing Cave Temple of Patal Bhuvaneshwar (1)
Amazing Cave Temple of Patal Bhuvaneshwar

Know Mysterious Things About Patal Bhuvaneshwar Amazing Cave Temple of Patal Bhuvaneshwar | history of Patal Bhuvaneshwar temple | पाताल भुवनेश्वर

Patal Bhuvaneshwar : पाताल भुवनेश्वर (Patal Bhuvaneshwar) चूना पत्थर की एक प्राकृतिक गुफा है, जो उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जिले में गंगोलीहाट नगर से 14 Km दूरी पर स्थित है। इस गुफा में धार्मिक तथा ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण कई प्राकृतिक कलाकृतियां स्थित हैं।

यह गुफा भूमि से 90 फीट नीचे है, तथा लगभग 160 वर्ग मीटर क्षेत्र में विस्तृत है।पाताल भुवनेश्वर (Patal Bhuvaneshwar) गुफा मंदिर अपने पौराणिक इतिहास को समेटे हुए है और पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है।यह मंदिर रहस्य और सुंदरता का बेजोड़ मेल के रुप में जाना जाता है। इस मंदिर के अंदर प्रवेश करने के लिए बहुत ही संकीर्ण रास्तों से होकर गुजरना पड़ता है।

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पाताल भुवनेश्वर (Patal Bhuvaneshwar)  देवदार के घने जंगलों के बीच अनेक भूमिगत गुफ़ाओं का संग्रह है । जिसमें से एक बड़ी गुफ़ा के अंदर शंकर जी का मंदिर स्थापित है । यह संपूर्ण परिसर 2007 से भारतीय पुरातत्व विभागद्वारा अपने कब्जे में लिया गया है। पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा किसी आश्चर्य से कम नहीं है ।

पाताल भुवनेश्वर गुफा में केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के दर्शन भी होते हैं।पुराणों के मुताबिक पाताल भुवनेश्वर के अलावा कोई ऐसा स्थान नहीं है, जहां एकसाथ चारों धाम के दर्शन होते हों। आज के समय में पाताल भुवानेश्वर गुफा सलानियो के लिए आकर्षण का केंद्र है। देश विदेश से कई सैलानी यह गुफा के दर्शन करने के लिए आते रहते है ।

इस (Patal Bhuvaneshwar) गुफा की खोज राजा ऋतुपर्णा ने की थी, जो सूर्य वंश के राजा थे और त्रेता युग में अयोध्या में शासन करते थे। स्कंदपुराण में वर्णन है कि स्वयं महादेव शिव पाताल भुवनेश्वर में विराजमान रहते हैं और अन्य देवी देवता उनकी स्तुति करने यहां आते हैं।

यह भी वर्णन है कि राजा ऋतुपर्ण जब एक जंगली हिरण का पीछा करते हुए इस गुफा में प्रविष्ट हुए तो उन्होंने इस गुफा के भीतर महादेव शिव सहित 33 कोटि देवताओं के साक्षात दर्शन किये थे। द्वापर युग में पाण्डवों ने यहां चौपड़ खेला और कलयुग में जगदगुरु आदि शंकराचार्य का 822 ई के आसपास इस गुफा से साक्षात्कार हुआ तो उन्होंने यहां तांबे का एक शिवलिंग स्थापित किया।

पाताल भुवनेश्वर
पाताल भुवनेश्वर

गुफा के अंदर जाने के लिए लोहे की जंजीरों का सहारा लेना पड़ता है यह गुफा पत्थरों से बनी हुई है इसकी दीवारों से पानी रिस्ता रहता है जिसके कारण यहां के जाने का रास्ता बेहद चिकना है। गुफा में शेष नाग के आकर का पत्थर है उन्हें देखकर एसा लगता है जैसे उन्होंने पृथ्वी को पकड़ रखा है।

इस गुफा की सबसे खास बात तो यह है कि यहां एक शिवलिंग है जो लगातार बढ़ रहा है। वर्तमान में शिवलिंग की ऊंचाई 1.50 फीट है और शिवलिंग को लेकर यह मान्यता है कि जब यह शिवलिंग गुफा की छत को छू लेगा, तब दुनिया खत्म हो जाएगी। संकरे रास्ते से होते हुए इस गुफा में प्रवेश किया जा सकता है।

कुछ मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव ने क्रोध के आवेश में गजानन का जो मस्तक शरीर से अलग किया था, वह उन्होंने इस गुफा में रखा था। दीवारों पर हंस बने हुए हैं जिसके बारे में ये माना जाता है कि यह ब्रह्मा जी का हंस है। गुफा के अंदर एक हवन कुंड भी है।

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इस कुंड के बारे में कहा जाता है कि इसमें जनमेजय ने नाग यज्ञ किया था जिसमें सभी सांप जलकर भस्म हो गए थे। इस गुफा में एक हजार पैर वाला हाथी भी बना हुआ है।

क्या है इस गुफा मंदिर के अंदर?

इस मंदिर में प्रवेश करने से पहले मेजर समीर कटवाल के मेमोरियल से होकर गुजरना पड़ता है। कुछ दूर चलने के बाद एक ग्रिल गेट मिलता है जहां से पाताल भुवनेश्वर मंदिर (Patal Bhuvaneshwar) की शुरुआत होती है। यह गुफा 90 फीट नीचे है जो बहुत ही पतले रास्ते से होकर इस मंदिर के अंदर घुसा जाता है।

थोड़ा आगे चलने पर इस गुफा के चट्टान एक ऐसी कलाकृति बनाते हैं जो दिखने में 100 पैरों वाला ऐरावत हाथी लगता है। फिर से चट्टानों की कलाकृति देखने को मिलती है जो नागों के राजा अधिशेष को दर्शाते हैं। कहा जाता है कि अधिशेष ने अपने सिर के ऊपर पूरी दुनिया को संभाल कर रखा है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर (Patal Bhuvaneshwar) में चार द्वार हैं जो रणद्वार, पापद्वार, धर्मद्वार और मोक्षद्वार के नाम से जाने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि रावण की मृत्यु के बाद पापद्वार बंद हो गया था। इसके साथ कुरुक्षेत्र की लड़ाई के बाद रणद्वार को भी बंद कर दिया गया था।

यहां से आगे चलने पर चमकीले पत्थर भगवान शिव जी के जटाओं को दर्शाते हैं। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस मंदिर में भगवान गणेश के कटे हुए सिर को स्थापित किया गया था।

गुफा में भगवान गणेश कटे शिलारूपी मूर्ति के ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला शवाष्टक दल ब्रह्मकमल के रूप की एक चट्टान है।इससे ब्रह्मकमल से पानी भगवान गणेश के शिलारूपी मस्तक पर दिव्य बूंद टपकती है। मुख्य बूंद आदिगणेश के मुख में गिरती हुई दिखाई देती है।

मान्यता है कि यह ब्रह्मकमल भगवान शिव ने ही यहां स्थापित किया था। इतना ही नहीं इस मंदिर में प्रकृति द्वारा निर्मित और भी कलाकृति मौजूद हैं।

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इस गुफाओं में चारों युगों के प्रतीक रूप में चार पत्थर स्थापित हैं।

इनमें से एक पत्थर जिसे कलियुग का प्रतीक माना जाता है, वह धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है। यह माना जाता है कि जिस दिन यह कलियुग का प्रतीक पत्थर दीवार से टकरा जायेगा उस दिन कलियुग का अंत हो जाएगा।

पाताल भुवनेश्वर का इतिहास और मान्यताये

इस गुफा के अंदर केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के भी दर्शन होते हैं। बद्रीनाथ में बद्री पंचायत की शिलारूप मूर्तियां हैं | जिनमें यम-कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गणेश तथा गरूड़ शामिल हैं। तक्षक नाग की आकृति भी गुफा में बनी चट्टान में नजर आती है।

इस पंचायत के ऊपर बाबा अमरनाथ की गुफा है तथा पत्थर की बड़ी-बड़ी जटाएं फैली हुई हैं। इसी गुफा में कालभैरव की जीभ के दर्शन होते हैं। इसके बारे में मान्यता है कि मनुष्य कालभैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

पाताल भुवनेश्वर गुफा के अन्दर बनी आकृति की

गुफ़ा में घुसते ही शुरुआत में (पाताल के प्रथम तल) नरसिम्हा भगवान के दर्शन होते हैं।

कुछ नीचे जाते ही शेषनाग के फनों की तरह उभरी संरचना पत्थरों पर नज़र आती है |मान्यता है कि धरती इसी पर टिकी है । गुफ़ाओं के अन्दर बढ़ते हुए गुफ़ा की छत से गाय की एक थन की आकृति नजर आती है ।

यह आकृति कामधेनु गाय का स्तन है कहा जाता था की देवताओं के समय मे इस स्तन में से दुग्ध धारा बहती है। कलियुग में अब दूध के बदले इससे पानी टपक रहा है।

इस गुफा के अन्दर आपको मुड़ी गर्दन वाला गौड़(हंस) एक कुण्ड के ऊपर बैठा दिखाई देता है |यह माना जाता है कि शिवजी ने इस कुण्ड को अपने नागों के पानी पीने के लिये बनाया था। इसकी देखरेख गरुड़ के हाथ में थी। लेकिन जब गरुड़ ने ही इस कुण्ड से पानी पीने की कोशिश की तो शिवजी ने गुस्से में उसकी गरदन मोड़ दी।

(हंस की टेड़ी गर्दन वाली मूर्ति । ब्रह्मा के इस हंस को शिव ने घायल कर दिया था क्योंकि उसने वहां रखा अमृत कुंड जुठा कर दिया था।)

कैसे पहुंचे पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर?

अगर आप रेलवे के रास्ते हैं यहां आना चाहते हैं तो आपके लिए सबसे करीब टनकपुर रेलवे स्टेशन पड़ेगा। आप चाहें तो काठगोदाम रेलवे स्टेशन से भी यहां सकते हैं। अगर आप एयरवेज के रास्ते से यहां आना चाहते हैं तो पंतनगर एयरपोर्ट यहां से 226 किलोमीटर दूर है।

पाताल भुवनेश्वर पहाड़ी सड़क मार्ग के माध्यम से अल्मोड़ा, बिनसर, जागेश्वर, कौसानी, रानीखेत, नैनीताल जैसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों से जुड़ा हुआ है। दिल्ली, देहरादून या अन्य प्रमुख शहरों से आसानी से बस द्वारा चम्पावत, पिथौरागढ़, टनकपुर, लोहाघाट पहुंचा जा सकता है जहाँ से लोकल टैक्सी और बस द्वारा पाताल भुवनेश्वर पहुंचा जा सकता है। मोटर मार्ग, गुफा के प्रवेश द्वार से आधा किलोमीटर दूर है।

यदि आप पिथोरागढ़ आये तो गंगोलीहाट में स्थित “पाताल भुवनेश्वर मंदिर “ के दर्शन जरुर कर

पाताल भुवनेश्वर टेम्पल उत्तराखंड

FAQ :

Q : पाताल भुवनेश्वर गुफा की खोज कब हुई ?

Ans : पाताल भुवनेश्वर गुफा की खोज राजा ऋतुपर्णा ने की थी जो सूर्य वंश के राजा थे और त्रेता युग में अयोध्या में शासन करते थे।

Q : पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर में कितने देवी देवता सितारों के रूप में अंकित है?

Ans : महादेव शिव सहित 33 कोटि देवता सितारों के रूप में अंकित है स्वयं महादेव शिव पाताल भुवनेश्वर में विराजमान रहते हैं और अन्य देवी देवता उनकी स्तुति करने यहां आते हैं।

Q : पाताल भुवनेश्वर मंदिर कहां है

Ans : पाताल भुवनेश्वर मंदिर उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ जिले में गंगोलीहाट नगर से 14 Km दूरी पर स्थित है।

Q : अल्मोड़ा से पाताल भुवनेश्वर की दूरी

Ans :अल्मोड़ा से पाताल भुवनेश्वर की दूरी 134.1 km via पिथोरागढ़-अल्मोड़ा मार्ग है।4 hr 41 min जिसमे आपको 4 hr 41 min समय लगेगा ट्रैफिक जाम या अन्य मार्ग सम्बन्धी परेशानी ना होने पर

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