Biruda Panchami 2022 | birud panchami in uttarakhand | Gaura Festival | बिरूड़ा पंचमी | बिरूड़ पंचमी | गौरा महोत्सव | सातूं -आठू

आस्था
Biruda Panchami 2022
Biruda Panchami 2022

Biruda Panchami 2022 | Birud Panchami | Gaura Festival | बिरूड़ा पंचमी | बिरूड़ पंचमी | गौरा महोत्सव | सातूं -आठू

Birud Panchami : हमारे समाज में अनेको लोक परम्पराये है। इन परम्पराओं में ईश्वरय शक्तिया स्पस्ट दिखती है साथ ही इन लोक परम्पराओ से लोगों का एक दूसरे से पारिवारिक रिश्ता बना रहता है। ऐसी ही उत्तराखंड की एक लोक परम्परा है जिसे बिरूड़ा पंचमी ( Biruda Panchami 2022, birud panchami in uttarakhand, Gaura Festival, बिरूड़ पंचमी, गौरा महोत्सव,सातूं -आठू ) के नाम से जाना जाता है।

उत्तराखंड की लोक परम्पराओं में इसे सहज देखा जा सकता है। मसलन आज ( Biruda Panchami 2022) से कुमाऊं क्षेत्र में शुरू हुये सातों-आठों लोकपर्व को बहुत ही प्यार और सम्मान से मनाया जाता है। तो आइये जानते है क्या है बिरूड़ पंचमी (Birud Panchami Uttarakhand)

क्या है बिरूड़ पंचमी Biruda Panchami 2022 | Birud Panchami Uttarakhand

कुमाऊं अंचल में आज का दिन यानी सातों-आठों पर्व बेहद ख़ास और पवित्र माना जाता है। यह पर्व भाद्रपद माह की पंचमी को आरंभ होता है । स्थानीय भाषा में इस दिन को बिरूड़ पंचमी कहा जाता है। साथ ही बिरूड़ पंचमी को अन्य नमो से भी जाना जाता है जैसे – Biruda Panchami 2022,birud panchami, in uttarakhand,Gaura Festival,बिरूड़ पंचमी, गौरा महोत्सव, आज से पहाड़ों में सातों-आठों की बहार रहती है।

बिरुड़ पंचमी के बाद झोड़ा चांचरी की धूम मचेगी। कुमाऊं में अभुक्ताभरण सप्तमी और अष्टमी पर गौरा-महेश की प्रतिमा बनाकर उनका विवाह कराने के बाद पूजा अर्चना की जाती है। इस दौरान गांव-गांव में झोड़ा और चांचरी के आयोजन होते हैं। जिनमें झोड़ा-चांचरी के गायकों की टोलियां मंदिरों के अलावा घर-घर में गायन करती हैं।

ग्रामीण लोगों के द्वारा घरों में एक बर्तन में सात किस्म के अनाज को एक पोटली में भिगाया है। (Biruda Panchami 2022 ) इस पोटली को गुरुवार को गौरा की पूजा के समय खोला जाएगा। शुक्रवार को गौरा को महेश के साथ बिरुड़ा अष्टमी के दिन बिदा किया जाएगा। इस दिन पहाड़ों में उत्पन्न होने वाले हर अन्न का भोग भी लगाया जाता है। दो दिन तक महिलाएं व्रत रखकर मांगलिक गीतों का गायन करती हैं।

जानकारों के मुताबिक भाद्र मास के पर्वों में बिरुड़ पंचमी को पवित्रता के साथ ही कृषि की प्रधानता के लिए भी अलग स्थान दिया गया है। बिरुड़ का अर्थ किसी अनाज का अंकुरित होने से है। सातूं-आठूं उत्सव के लिए एक शुद्ध वस्त्र में सात या पांच अनाजों को दूब के साथ पोटली बनाकर महिलाएं स्नानादि के बाद अपने घर के देव मंदिर में एक पात्र में भिगो देती हैं। अभुक्ताभरण सप्तमी को इसके जल से स्नान करती हैं और बिरुड़ों से गौरा, महेश की पूजा करती हैं।

Biruda Panchami 2022 .birud panchami in uttarakhand
Biruda Panchami 2022 .birud panchami in uttarakhand

सातों-आठों लोकपर्व में मां पार्वती को दीदी और भगवान शिव को जीजाजी के रुप में पूजा जाता है। इस लोकपर्व में लड़की के घर आने के समय के उत्साह और प्रेम के साथ लड़की के घर से जाने (विदाई) पर पूरे गांव छा जाने वाली उदासी को देखा जा सकता है।

सातों-आठों पर्व के माध्यम से एक लड़की के जीवन के शादी होने तक के सभी पलों को सजोया जाता है। जिसमे ( मां पार्वती को दीदी और भगवान शिव को जीजाजी के रुप ) अपने आराध्य को अपने पारिवार का सदस्य मान उससे लाड़ प्यार एवं सम्मानित किया जाता है।

Biruda Panchami के दिन कुमाऊं में लोग अपने घर के मंदिर की साफ-सफाई कर वहां बिरूड़े रखते हैं। बिरूड़े यानी पांच या सात तरह के अंकुरित अनाज. मक्का, गेहूं, गहत , ग्रूस (गुरुस), चना, मटर और कलों के अंकुरित दानों को सामूहिक रूप से बिरूड़े कहा जाता है। बिरूड़े से ही अपने आराध्य गौरा-महेश को पूजा जाता है, और प्रसाद के रूप में भी इसे ही बांटा जाता है।

गीत और नृत्य के साथ लोग अपने आराध्य गौरा-महेश को परिवार का हिस्सा बनाकर घर पर लाते हैं। पहले घर में आती गौरा है, फिर आते हैं महेश। धान के पौधों से बने गौरा-महेश का श्रृंगार किया जाता है । उन्हें पकवान अर्पित किये जाते हैं। पूरा पहाड़ अगले कुछ दिनों संगीत और नृत्य से सराबोर रहता है।

Biruda Panchami के दिन से बेटियां अपने मायके आयेंगी। खूब प्रेम से अपनी गौरा दीदी और महेश्वर जीजा का स्वागत करेंगी और फिर विदा करेंगी बिरूड़ पंचमी के दिन से कुमाऊं के गावों में एक अलग रंगत आ जाती

बिरुड़ों से जुड़ी है लोक कथा

बिरुड़ों को ऋषि पंचमी से सात दिन पूर्व भिगोकर रखा जाता है। ऋषि पंचमी के दिन कुश के तिनकों को सर्पाकृति बनाकर बिरुड़ों में भिगोकर उनका पूजन किया जाता है। इसके साथ लोक कथा भी जुड़ी है। छह बहुओं ने बिरुड़ भिगोने की उपेक्षा की लेकिन सातवीं बहू ने सास का कहना मानकर बिरुड़ भिगोए। उस पर गौरा महेश की प्रत्यक्ष कृपा हुई। भाद्रपद में सातूं-आठूं पर्व आता है।

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