Dev Uthani Ekadashi:2020 कब है तथा व्रत कथा

आस्था
Ekadashi: The story of becoming basil from Vrinda
Ekadashi: The story of becoming basil from Vrinda
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देवउठनी एकादशी (Dev uthani ekadashi 2020)

देवउठनी एकादशी (Dev uthani ekadashi) प्रतेक वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है. इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा विधि विधान से करते हैं। इस बार देवउठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi:2020) 25 नवंबर (बुधवार) को मनाई जाएगी।

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देवउठनी एकादशी व्रत कथा (Dev Uthani Ekadashi:2020 vart katha)

 प्राचीन काल में एक राजा के राज्य में एकादशी के दिन सभी लोग व्रत रखते थे। किसी को अन्न देने की मनाही थी। एक दिन दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के दरबार में नौकरी मांगने आया। राजा ने कहा कि नौकरी मिलेगी, लेकिन शर्त है कि एकादशी के दिन अन्न नहीं मिलेगा।

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नौकरी के लालच में उसने शर्त मान ली। एकादशी के दिन उसने भी फलाहार किया लेकिन उसकी भूख नहीं मिटी। उसने राजा से कहा कि उसे खाने के लिए अन्न दिया जाए, फल से उसकी भूख नहीं मिटेगी। वह भूख के मारे मर जाएगा।

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तब राजा ने शर्त की बात याद दिलाई। फिर भी वो नहीं माना। तब राजा ने उसे चावल, दाल, आटा आदि दिलाया। वह रोज की तरह नदी में स्नान करने के बाद भोजन बनाने लगा। खाने के समय उसने एक थाली भोजन निकाला और ईश्वर को भोजन के लिए आमंत्रित किया।

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Dev Uthani Ekadashi:2020 vart katha
Dev Uthani Ekadashi:2020 vart katha
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उसके निमंत्रण पर भगवान विष्णु पीताम्बर में वहां आए और भोजन किया। भोजन के पश्चात वे वहां से चले गए। फिर वह व्यक्ति अपने काम पर चला गया।दूसरे एकादशी के दिन उसने राजा से कहा कि उसे खाने के लिए दोगुना अनाज दिया जाए।

इस पर राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि पिछली बार वह भूखा रह गया था। उसका भोजन भगवान कर लिए थे। ऐसे में उतने सामान में दोनों का पेट नहीं भर पाता है।

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​राजा आश्चर्य में पड़ गया। उसे उस व्यक्ति के बात पर विश्वास नहीं हुआ। तब उसने राजा से साथ चलने को कहा। एकादशी के दिन नदी में स्नान करने के बाद उसने भोजन बनाया, फिर एक थाल में खाना निकालकर भगवान को बुलाने लगा, लेकिन वे नहीं आए।

ऐसा करते हुए शाम हो गया। राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर सबकुछ देख रहा ​था। अंत में उसने कहा कि भगवान आप नहीं आएंगे तो नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा।

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भगवान को न आता देखकर वह नदी की ओर जाने लगा। तब भगवान प्रकट हुए और उसे ऐसा न करने को ​कहा। भगवान ने उस व्यक्ति के हाथों से बने भोजन को ग्रहण किया। फिर वे अपने भक्त को साथ लेकर अपने धाम चले गए।

राजा को इस बात का ज्ञान हो चुका था कि आडम्बर और दिखावे से कुछ नहीं होता है। सच्चे मन से ईश्वर को याद किया जाए तो वे दर्शन देते हैं और मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इस ज्ञान प्राप्ति के बाद वह भी सच्चे मन से व्रत करने लगा। अंत में उसे भी स्वर्ग की प्राप्ति हुई।

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एकादशी वृंदा से तुलसी बनने की कथा (Ekadashi: The story of becoming basil from Vrinda)

पौराणिक कथा और हिन्दू पुराणों के अनुसार तुलसी एक राक्षस की कन्या थी।  इनका नाम वृंदा था। राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त थीं। जब वृंदा बड़ी हुई तो उनका विवाह जलंधर नामक पराक्रमी असुर के साथ हुआ। वृंदा के पतिव्रता व्रत के कारण उनका पति जलंधर अजेय हो गया,

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 जिसके कारण जलंधर को अपनी शक्तियों पर अभिमान हो गया। उसने स्वर्ग पर आक्रमण कर देव कन्याओं को अपने अधिकार में ले लिया। सभी देव भगवान श्रीहरि विष्णु की शरण में गए और जलंधर के आतंक का अंत करने की प्रार्थना करने की, परंतु वृंदा के सतीत्व कारण जलंधर का अंत होना लगभग अंसभव था।

वृंदा का सतीत्व भंग करने के लिए भगवान विष्णु जलंधर का रुप धारण करके वृंदा के समक्ष गए। वृंदा विष्णु जी को अपना पति समझकर पूजा से उठ गई जिससे उनका पतिव्रत धर्म टूट गया। वृंदा का पतिव्रत धर्म टूटने से

जलंधर की शक्तियां कम हो गई और उसका अंत हो गया। जब वृंदा को श्रीहरि के छल के बारे में ज्ञात हुआ उन्होंने भगवान विष्णु से कहा हे नाथ मैंने आजीवन आपकी आराधना की,

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आपने मेरे साथ ऐसा कृत्य क्यों किया? श्रीहरि विष्णु ने वृंदा के इस प्रश्न का कोईन उत्तर नहीं दिया, तब उन्होंने भगवान विष्णु से कहा कि आपने मेरे साथ एक पाषाण की तरह व्यवहार किया मैं आपको शाप देती हूँ कि आप पाषाण बन जाएं।

उनके शाप के कारण भगवान विष्णु पत्थर बन गए। विष्णु जी के पाषाण बन जाने के कारण सृष्टि का संतुलन बिगड़ने लगा। सभी देवताओं ने वृंदा से याचना की कि वे अपना शाप वापस ले लें। वृंदा ने देवों की प्रार्थना को स्वीकार कर ली

और अपने शाप को वापस ले लिया, परंतु भगवान विष्णु वृंदा के साथ हुए छल के कारण लज्जित थे, अतः वृंदा के शाप को स्वीकार करते हुए उन्होंने अपना एक रूप पत्थर में प्रविष्ट किया जिसे सभी शालिग्राम के नाम से जानते हैं। 

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भगवान विष्णु को शाप मुक्त करने के पश्चात वृंदा जलंधर के साथ सती हो गई। वृंदा की राख से एक पौधा उत्पन्न हुआ। उस पौधे को श्रीहरि विष्णु ने तुलसी नाम दिया और वरदान दिया कि तुलसी के बिना मैं किसी भी प्रसाद को ग्रहण नहीं करुंगा। भगवान विष्णु ने कहा कि कालांतर में शालिग्राम रूप से तुलसी का विवाह होगा

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देवताओं ने वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने के लिए भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया। कहा जाता है कि इसलिए ही हर वर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ कराया जाता है।

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