Harela being celebrated in Devbhoomi today

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Harela celebratIon
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आज देवभूमि में मनाया जा रहा हरेला, जानिए हरेले की परंपरा और महत्व

देवभूमि उत्तराखंड (कुमाऊं) में हरेले से ही श्रावण मास और वर्षा ऋतु का आरंभ माना जाता है। हरेले के तिनकों को इष्ट देव को अर्पित कर अच्छे धन-धान्य, दुधारू जानवरों की रक्षा और परिवार व मित्रों की कुशलता की कामना की जाती है।

देवभूमि उत्तराखंड में श्रावण मास का पावन हरेला पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। । मानव और प्रकृति के परस्पर प्रेम को दर्शाता यह पर्व हरियाली का प्रतीक है।हरेला कृषि प्रधान त्योहार है। इसमें जो बीज डाले जाते हैं वो सीजन में होने वाले अन्न के प्रतीक मायने जाते हैं।

हरेले की तैयारी सावन लगने से 9 दिन पूर्व ही शुरू होती है और दसवें दिन हरियाली (हरेले )को काटा जाता है। टोकरी में मिट्टी डालकर (दो बर्तनों में बोया जाता है।) उसमे सात, नौ, या ग्यारह अनाजों को मिलाकर (गेहूं, जौ, मक्का,गहत, उड़द, सरसों व चने आदि) बोते है।

जिसे मंदिर के कक्ष में रखा जाता है। सुबह-शाम पूजा के समय इन्हें सींचा जाता है। दो से तीन दिन में हरेला अंकुरित होने लगता है। सूर्य की सीधी रोशन से दूर रखा जाता है जिसके कारण हरेला यानी अनाज की पत्तियों का रंग पीला होता है । और नौंवे दिन गुड़ाई की जाती है। तथा दसवे दिन हरेला पर्व को हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

हरेले का पीला रंग उन्नति और संपन्नता का द्योतक है

हरेले का पीला रंग उन्नति और संपन्नता का द्योतक है
हरेले का पीला रंग उन्नति और संपन्नता का द्योतक है

पीला रंग उन्नति और संपन्नता का द्योतक है। हरेले की मुलायम पंखुड़ियां रिश्तों में धमुरता, प्रगाढ़ता प्रदान करती हैं। परिवार को बुजुर्ग सदस्यों द्वारा हरेला काटा जाता है और सबसे पहले देवी देवताओ को अर्पित किया जाता है। इसके बाद परिवार की बुजुर्ग महिला व दूसरे वरिष्ठजन परिजनों को हरेला पूजते हुए आशीर्वचन देते हैं

‘जी रया जागि रया, यों दिन मास भेटनै रया…।’ यानी कि आप जीते-जागते रहें। हर दिन-महीनों से भेंट करते रहें…यह आशीर्वाद हरेले के दिन परिवार के वरिष्ठ सदस्य परिजनों को हरेला पूजते समय देते हैं। इस दौरान हरेले के तिनकों को सिर में रखने की परंपरा

जी रये, जागि रये, तिष्टिये, पनपिये,
दुब जस हरी जड़ हो, ब्यर जस फइये,
हिमाल में ह्यूं छन तक,
गंग ज्यू में पांणि छन तक,
यो दिन और यो मास भेटनैं रये,
अगासाक चार उकाव, धरती चार चकाव है जये,
स्याव कस बुद्धि हो, स्यू जस पराण हो

हरेला पूजन आशीर्वचन का अर्थ —हमेशा जीवित रहो, जागरूक रहो, पृथ्वी के समान धैर्यवान, आकाश के समान प्रशस्त (उदार) बनो, दूर्वा घास (दूर्वा के तृणों) के समान पनपो,,जब तक हिमालय में बर्फ है और पावन गंगा नदी में पानी है, तब तक तुम यह दिन यह मास देखते रहना

(तुम्हे लम्बी उम्र प्रदान हो) इतने दीर्घायु हो कि दंतहीन होते हुए भी तुम्हें भात भी पीस कर खाना पड़े और शौच जाने के लिए भी लाठी का उपयोग न करना पड़े, सूर्य के समान प्रकाशवान, सियार के समान बुद्धिवान, बनना

हरेला पूजन के समय बड़े बुजुर्गो के द्वारा दिए गए आशीष काफी समृद्धता और व्यापकता पूर्ण होते है । यह आशीष वचन परिवारों के बुजुर्गों (दादा दादी) से इसे सुनने के बाद कई दिनों तक छोटे बच्चे गुनगुनाते रहते हैं

हरेला शब्द का तात्पर्य तथा हरेला पर्व एक वर्ष में कितनी बार आता है

देव भूमि उत्तराखंड की पावन धरती पर ऋतुओं के अनुसार अनेक पर्व मनाए जाते हैं । यह पर्व हमारी संस्कृति को उजागर तो करते ही है साथ ही पहाड़ की परंपराओं को भी कायम रखे हुए, इन्हीं खास पर्वो में शामिल, उत्तराखंड का लोकपर्व हरेला, हरेला शब्द का तात्पर्य हरयाली से हैं।

यह पर्व वर्ष में तीन बार आता हैं। पहला चैत्र माह में दूसरा श्रावण माह में तथा तीसरा व् वर्ष का आखिरी पर्व हरेला आश्विन माह में मनाया जाता हैं |

चैत्र मास में – प्रथम दिन बोया जाता है तथा नवमी को काटा जाता है।

श्रावण मास में – सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में बोया जाता है और दस दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन काटा जाता है।

आश्विन मास में – आश्विन मास में नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरा के दिन काटा जाता है

क्यों खास है श्रावण (सावन) का हरेला पर्व

श्रावण (सावन) का महीना हिन्दू धर्म में पवित्र महीनों में से एक माना जाता है जिसके कारण उत्तराखंड में श्रावण मास में आने वाले हरेले को अधिक महत्व दिया जाता हैं। उत्तराखंड के लोगो का मानना है की श्रावण का महिना भगवान शिव को समर्पित है।इसीलिए यह त्यौहार भी भगवान शिव परिवार को समर्पित है। तथा उत्तराखंड भूमि को देवभूमि (शिव भूमि) कहा जाता है।

क्योंकि भगवान शिव का निवास स्थान देवभूमि कैलाश (हिमालय) में ही है। इसीलिए श्रावण मास के हरेले में भगवान शिव परिवार की पूजा अर्चना की जाती हैं| (शिव,माता पार्वती और भगवान गणेश) की मूर्तियां शुद्ध मिट्टी से बना कर उन्हें प्राकृतिक रंग से सजाया-संवारा जाता है। जिन्हें स्थानीय भाषा में डिकारे कहां जाता है

हरेला पर्व पर लोगो की मान्यताये

हरेला पर्व पर लोगो की मान्यताये
हरेला पर्व पर लोगो की मान्यताये

उत्तराखंड में एक अन्य मान्यता यह है कि जिसका जितना बडा और अच्छा होगा उसे कृषि, धन दौलत, पारिवारिक मान समान मे उतना अधिक लाभ होगा। उत्तराखंड में हरेला प्रतेक घर मे सुख, समृद्धि व शान्ति के लिए बोया और काटा जाता है। हरेला अच्छी फसल का सूचक है, हरेला इस कामना के साथ बोया जाता है कि इस साल फसलो को नुकसान ना हो।

वैसे तो हरेला घर-घर में बोया जाता है, लेकिन किसी-किसी गांव में हरेला पर्व को सामूहिक रुप से स्थानीय ग्राम देवता मंदिर में भी मनाया जाता हैं गाँव के लोग द्वारा मिलकर मंदिर में हरेला बोया जाता हैं और सभी लोगों द्वारा इस पर्व को हर्षोल्लास से मनाते हैं|

उम्मीद करते है आपको हमारा हरेला पर्व का यह पोस्ट पसंद आएगा

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