International Womens Day 2021: बदलते परिवेश में महिला की भूमिका और महिला की स्थिति

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International Womens Day 2021: बदलते परिवेश में महिला की भूमिका और महिला की स्थिति
International Womens Day 2021: बदलते परिवेश में महिला की भूमिका और महिला की स्थिति

International Womens Day 2021: बदलते परिवेश में महिला की भूमिका और महिला की स्थिति

आप सभी को International Women’s Day की बहुत – बहुत बधाई। अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष, 8 मार्च को मनाया जाता है। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रशंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के लिए आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक उपलब्धियों के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। जिसका उद्देश्य महिलाओं के अधिकारों के साथ विश्व शांति को बढ़ावा देना है।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस कब और कैसे आरंभ हुआ ?

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस एक मज़दूर आंदोलन से उपजा आंदोलन है. 1908 में 15000 महिलाओं ने न्यूयॉर्क सिटी में काम के घंटे कम करने के लिए एवं वोटिंग के अधिकारों की मांग के लिए आवाज़ उठायी,

और ठीक एक साल बाद 1909 अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने महिलाओ को वोटिंग का अधिकार दे दिया और तब (1909) यूनाइटेड स्टेट्स में पहला राष्ट्रीय महिला दिवस 28 फरवरी को मनाया गया। इसके बाद साल 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्ज़रलैंड में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया गया।

1911 में ऑस्ट्रि‍या, जर्मनी, डेनमार्क,और स्विटजरलैंड में लाखों महिलाओं द्वारा रैली निकाली गई थी। जिसका मकसद नौकरी में भेदभाव खत्म करने से लेकर, सरकारी संस्थानों में समान अधिकार के साथ मताधिकार जैसे कई अहम मुद्दे थे। 1913-14 प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, रूसी महिलाओं द्वारा पहली बार शांति की स्थापना के लिए फरवरी माह के अंतिम रविवार को महिला दिवस मनाया गया।

International Womens Day 2021: The Role of Women and the Status of Women in a Changing Environment

1917 विश्व युद्ध में रूस के 2 लाख से ज्यादा सैनिक मारे गए, रूसी महिलाओं ने फिर रोटी और शांति के लिए इस दिन हड़ताल की। हालांकि राजनेता इस आंदोलन के खिलाफ थे, फिर भी महिलाओं ने एक नहीं सुनी और अपना आंदोलन जारी रखा और इसके फलस्वरूप रूस के जार को अपनी गद्दी छोड़नी पड़ी साथ ही सरकार को महिलाओं को वोट देने के अधिकार की घोषणा भी करनी पड़ी।

1975 में महिला दिवस को आधिकारिक मान्यता उस वक्त दी गई थी जब संयुक्त राष्ट्र ने इसे वार्षिक तौर पर एक थीम के साथ मनाना शुरू किया. 

महिला दिवस सभी देशों में मनाया जाता है

महिला दिवस अब लगभग सभी विकसित, विकासशील देशों में मनाया जाता है। यह दिन महिलाओं को उनकी क्षमता, सामाजिक, राजनैतिक व आर्थिक तरक्की दिलाने व उन महिलाओं को याद करने का दिन है, जिन्होंने महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए अथक प्रयास किए।  जिसके चलते इस वर्ष (2021) हम 112 वां अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मना रहे हैं.

International Womens Day 2021: The Role of Women and the Status of Women in a Changing Environment

इसमें संयुक्त राष्ट्र संघ की अहम भूमिका हैं क्युकी संयुक्त राष्ट्र संघ ने महिलाओं के समानाधिकार को बढ़ावा और सुरक्षा देने के लिए विश्वभर में कुछ नीतियां, कार्यक्रम और मापदण्ड निर्धारित किए हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार किसी भी समाज में उपजी सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक समस्याओं का निराकरण महिलाओं की साझेदारी के बिना नहीं किया जा सकता।

भारत में भी महिला दिवस का व्यापक रूप

अब  भारत में भी महिला दिवस व्यापक रूप से मनाया जाने लगा है। पूरे भारत में इस दिन (8 march)  महिलाओं  को समाज में उनके विशेष योगदान के लिए सम्मानित किया जाता है और अनेको समारोह आयोजित किए जाते हैं।

महिलाओं के लिए काम कर रहे कई संस्थानों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। समाज, राजनीति, संगीत, फिल्म, साहित्य, शिक्षा आदि अनेक विभिन्न क्षेत्रों में श्रेष्ठ प्रदर्शन के लिए महिलाओं को सम्मानित किया जाता है। कई संस्थाओं द्वारा इस दिन गरीब महिलाओं को आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है।

भारत में महिलाओं को अधिकार

भारत में महिलाओं को शिक्षा का अधिकार, वोट देने का अधिकार और मौलिक अधिकार प्राप्त है। साथ ही धीरे-धीरे परिस्थितियां बदल रही हैं।

भारत में आज महिलाये आर्मी, एयर फोर्स, पुलिस, आईटी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा जैसे क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं। माता-पिता अब बेटे-बेटियों में कोई फर्क नहीं समझते हैं। लेकिन यह सोच समाज के कुछ ही वर्ग तक सीमित है।

जिस महिला दिवस की शुरुआत न्यूयॉर्क में फैक्ट्री में काम करने वाली महिलाओं की हड़ताल को ख़तम करने से लेकर जो शुरू हुई  इसका रूप बदलते-बदलते यहां तक पहुंच गया है कि यह दिन  भी वैलेंटाइन डे की तरह मनाया जाने लगा है।

क्या सिर्फ यही महिला दिवस है

 महिला दिवस कार्ड छपने लगे और तो और राह चलते लोग महिला /लड़की को देख बधाई देने लगे हैं लेकिन क्या सिर्फ यही वजह है इस दिन को मनाने की ?कोई भी आये और सिर्फ एक दिन हमे बधाई दे बधाई आप खुद सोचे आखिर क्यों हमें अपने आप का इस तरह से समारोह करने की जरूरत है ?

क्या एक महिला होने को या उसके अधिकारों के लिए एक दिन ही काफी है? क्या यह बात रोज़ाना की जिंदगी में नहीं होना चाहिए? आखिर क्यों किसी महिला/लड़की को यह याद दिलाने की जरूरत पड़ती है कि वाह तुम्हारे अंदर कितनी ताकत है। तुम भी सबके बराबर हो। तुम्हारे अंदर भी प्रतिभा है और तुम भी कुछ कर सकती हो।

International Womens Day 2021: The Role of Women and the Status of Women in a Changing Environment

क्या यह सभी बातें इंसान के जन्म से ही उसे दिखाई और समझाई जानी नहीं  चाहिए ताकि बड़े और समझदार होने पर वो दूसरे इंसानों से बराबरी का बर्ताव कर सके ???

क्या फायदा ऐसे एक दिन के आदर सम्मान का नहीं चाहिए हमें यह यह दिखावा एक दिन का एहसान। यह दिखावा ज्यादा तकलीफ देता है बजाय साल भर के उस दोयम दर्जे के जीवन से

अगर आप एक स्री एक महिला को सम्मान देना चाहते है और बदलाव चाहते है तो   वह भेदभाव बंद होना चाहिए जो समाज में आज भी महिलाये के साथ होता है 

आज भी महिलाओ को Right to Choice का अधिकार नहीं है

आज भी महिलाये अपने बेसिक अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही है। महिलाओ को आज भी Right to Choice का अधिकार  नहीं मिल पाया है।

आज भी दुनिया भर में हर घंटे 6 महिलाओ की हत्या होती है और हर दिन उनके करीब रिस्तेदारो या साथी द्वारा लगभग 137 महिलाओ की हत्या कर दी जाती है

domestic violence, rape, ओनर किलिंग की बात हो या दहेज़ उत्पीड़न की बात हो जिसका ताजा उदाहरण आयशा है जिसने दहेज़ उत्पीड़न से तंग आकर साबरमती में कूद कर अपनी जान दे दी।

ऐसी ही आयशा की तरह लाखो महिलाये हमारे देश में है जिनके पास घुट 2 के जीने के सिवा और कोई ऑप्शन नहीं होता है। में आपको शाहबानो केस का उदाहरण देना चाहती हूँ वह पाँच बच्चों की माँ थीं पति ने तालाक दे दिया था।

अपनी और अपने बच्चों की जीविका का कोई साधन न होने के कारण शाह बानो पति से गुज़ारा लेने के लिये अदालत पहुचीं और तब उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया कि शाह बानो को निर्वाह-व्यय के समान जीविका दी जाय।

सायद ये कहानी  तो आपको पहले से ही पता है लेकिन जब हम बेसिक अधिकारों की बात करते है तो क्या वो बेसिक अधिकार मिलते है क्या शाहबानो को उसके पति द्वारा गुजरा मिला नहीं

  क्यों की  इसके बाद 1986 में, कांग्रेस पार्टी ने, जिसे संसद में पूर्ण बहुमत प्राप्त था,  एक कानून पास किया जिसने शाह बानो मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय को उलट दिया।

यह भेदभाव एक लोकतान्त्रिक देश की चुनी हुई सरकार ने किया था जबकि भारत का संविधान नागरिको के साथ जाती धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करता है और सभी को समान अधिकार देता है

मुझे दुःख के साथ कहना पड़ रहा है कि  ये स्थिति आज भी नहीं बदली है। आज भी भारत में बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसे कम्पैन चलाने पड़ते है। ये हालत हमारे देश भारत की है।

हमारे पडोसी देशो में महिलाओ कि हालत और भी बुरी है, ईरान की राजधानी तेहरान में मेकअप करने, सिर पर ठीक से स्कार्फ न बांधने और नेलपॉलिश लगाने पर भी महिलाओं को गिरफ्तार कर लिया जाता था।

आज भी अगर कोई ऐसा करते पकड़ा जाता है तो उसे इस्लामिक नियमों पर क्लास दी जाती है. उन्हें इस बारे में समझाया जाता है कि ऐसा न करें अगर कोई दोबारा इस तरह की हरकत करता है तो उसे गिरफ्तार किया जाता है और सजा दी जाती है।

दशकों से ईरानी महिलाएं सरकार द्वारा लगाए गए उस नियम का विरोध कर रही हैं जिसमें उन्हें सार्वजनिक जगहों पर सिर पर कपड़ा बांधने को बाध्य किया जाता है।

सउदी अरेबिया में महिलाओं को अपने बड़े फैसलों के लिए मर्दों की इजाजत का मोहताज रहना पड़ता है. इसके तहत कोई भी बड़ा फैसला, तब तक नहीं लिया जा सकता, जब तक उनके परिवार का कोई मर्द उसके लिए हां न कर दे।

 2001 में पहली बार सउदी अरब की महिलाओं को पहचान पत्र मिला था. और 2015 में पहली बार सउदी अरब की महिलाओं को मतदान का अधिकार मिला था. इससे पहले अपने अस्तित्व का सउदी अरब की महिलाओं के पास कोई सरकारी सुबूत नही था।

घर के मर्दों के सहारे ही उनकी पहचान थी. 2013 में पहली बार सउदी अरब की महिलाओं को साइकिल चलाने की इजाजत मिली थी और 2017 में महिलाओं के गाड़ी चलाने पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया था।

महिलाओं की स्थिति तभी सुधरी जब महिलाओं ने अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठाना शुरू किया, और अपने हक़ के लिए आन्दोलन शुरू किये।

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट ‘Women, Business and the Law 2019’ की मानें तो दुनिया जिस रफ़्तार से जेंडर इक्वलिटी की तरफ बढ़ रही है वो रफ्तार बहुत धीमी है. और अगर रफ़्तार यही रही तो अगले 50 सालों में भी महिलाएँ पुरुषों की बराबरी नहीं कर सकेंगी।

ये रिपोर्ट कहती है कि दुनिया के बस 6 ही ऐसे देश हैं जहां महिलाओं को सही मायनों में पुरुषों के बराबर अधिकार मिले हुए हैं. इन देशों के नाम हैं बेल्जियम, डेनमार्क, फ्रांस, लातविया, लक्समबर्ग और स्वीडन।

आज भी औरतों को बोलने की आज़ादी नहीं है, जीवनसाथी चुनने की आज़ादी, अपने मनपसंद कपड़े पहनने की आज़ादी, बच्चे पैदा करने की आज़ादी नहीं है बहुत सी महिलाओं को तो आजतक यह भी नहीं पता कि उनकी रक्षा करने के लिए कौन- कौन से क़ानून बने हैं।

शोषण और प्रताड़ना झेल रही ये महिलायें क़ानून के दरवाज़े तक पहुँचती ही नहीं. बहुत सी घटनाओं में वो घरों में कैद रहती हैं, छोटी- छोटी गलतियों पर घरेलू हिंसा का शिकार होती है, और बच्चे पैदा करने की मशीन बनकर रह जाती है।

International Womens Day 2021: The Role of Women and the Status of Women in a Changing Environment

सही मायने में महिला दिवस (International Womens Day 2021) तब ही सार्थक होगा जब विश्व भर में महिलाओं को मानसिक व शारीरिक रूप से संपूर्ण आजादी मिलेगी, जहां उन्हें कोई प्रताड़ित नहीं किया जाएगा , जहां उन्हें दहेज के लालच में जिंदा नहीं जलाया जाएगा, जहां कन्या भ्रूण हत्या नहीं की जाएगी, जहां बलात्कार नहीं किया जाएगा, जहां उसे बेचा नहीं जाएगा।

समाज के हर महत्वपूर्ण फैसलों में महिलाओं  के नजरिए को महत्वपूर्ण समझा जाएगा। मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि महिलाओं को भी पुरुष के समान एक इंसान समझा जाएगा। जहां वह सिर उठा कर अपने महिला होने पर गर्व करे, न कि महिला होने पर पश्चाताप करे कि काश मैं एक लड़का होती।

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