kafal : काफल पहाड़ी फलों का राजा पहुचाये कई रोगों में लाभ

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काफल: पहाड़ी फलों का राजा पहुचाये कई रोगों में लाभ – kafal : benefits of kafal in many diseases

kafal : काफल पहाड़ी फलों का राजा पहुचाये कई रोगों में लाभ
kafal : काफल पहाड़ी फलों का राजा पहुचाये कई रोगों में लाभ

देवभूमि उत्तराखंड अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के साथ साथ अपने पारंपरिक व्यंजनों व वनस्पतियों के लिए भी बेहद प्रसिद्ध हैं। उतराखंड के जंगल सदियों से जड़ी-बूटियों और स्वादिष्ट फलों का मुख्य केंद्र रहे हैं । यहाँ पर अनेको दुर्लभ फल-फूल, जड़ी – बुटिया मौजूद हैं जिनमें से एक है ‘काफल’। काफल के विषय में कहते है कि गर्मियों में उत्तराखंड आकर काफल नहीं खाया तो कुछ नहीं खाया। तो आइये जानते इस खास फल के बारे में जो आपकी उत्तराखंड यात्रा को और भी यादगार बनायेगा ।

क्या होता है काफल – What happens is kaphal

काफल का वानस्पतिक नाम / वैज्ञानिक नाम मिरिका एस्कुलेन्टा (Myrica esculenta) है। जो मिरीकेसी (Myricacae)कुल का है। इंग्लिश में इसे बेय बैरी (Bay Barry) या बॉक्स मिर्टल (Box Myrtle) कहते है। और भारत के विभिन्न इलाकों में भी इसे अलग अलग नामों से जाना जाता है। जैसे संस्कृत में कट्फल, सोमवल्क , हिन्दी में कायफर, काफल, उर्दू में कायफल, गुजराती में कारीफल, पंजाबी में कहेला आदि ।

काफल कहा पाया जाता है – Where is the kafal found

काफल भारत के मध्य क्षेत्रों में पाया जाना वाला एक पहाड़ी फल है। पहाड़ी लोग इस फल का सेवन बहुत शौक के साथ करते हैं।यह फल 900-2300 मी की ऊँचाई पर मध्य हिमालय क्षेत्र, उत्तराखण्ड तथा आसाम के पर्वतीय क्षेत्रों में बहुतायात में पाया जाता है। क्युकी यहाँ‌‌ की जलवायु इसके फलने-फुलने‌ के उत्तम मानी जाती है।

काफल का उपयोग बीमारियों में भी 

काफल स्वादिष्ट होने के साथ ही अनेक बीमारियों में भी उपयोग किया जाता है आयुर्वेद में इसका उपयोग प्राचीन काल से किया जाता रहा है। कफ और वात के आलावा केंसर जैसी घातक बीमारी में भी काफल की दवा का उपयोग किया जाता है। इसके साथ ही सांस संबंधी समस्या, डायबिटीज, पाइल्स,खाने में रुचि न होना, कण्ठरोग, कुष्ठ, कृमि,अपच, मोटापा, मूत्रदोष, ज्वर,मुँह में छाले, सूजन, तथा शुक्राणु के लिए भी फायदेमंद और दर्दनिवारक भी होता है।

काफल कैसा दिखाई देता है – What does the kaphal look like ?

यह कुछ दिखने में शहतूत की तरह होता है, लेकिन इसका आकार शहतूत से काफी बड़ा होता है। काफल गर्मियों का लोकप्रिय फल है क्योकि गर्मियों में यह पक कर अपने हरे रंग से लाल और हल्के काले रंग में बदल जाता है।यह फल दिखने में काफी सुंदर होता है।काफल का स्वाद कुछ खट्टा-मीठा होता है।

काफल के फायदे – Benefits of kafal

काफल के फायदे - Benefits of kafal
काफल के फायदे – Benefits of kafal
  • आयुर्वेद में काफल के बीज, फूल और फल का प्रयोग किया जाता है जिसमें सबसे ज्यादा पत्तियों का इस्तेमाल उपचार के रुप में किया जाता है
  • काफल के ऊपर मोम के प्रकार के पदार्थ की परत होती है जो कि पारगम्य एवं भूरे व काले धब्बों से युक्त होती है। यह मोम मोर्टिल मोम कहलाता है तथा फल को गर्म पानी में उबालकर आसानी से अलग किया जा सकता है। यह मोम अल्सर की बीमारी में प्रभावी होता है।
  • इसके तने की छाल का सार, अदरक तथा दालचीनी का मिश्रण अस्थमा, डायरिया, बुखार, टाइफाइड, पेचिश तथा फेफड़े ग्रस्त बीमारियों के लिए अत्यधिक उपयोगी है।
  • इसका फल अत्यधिक रस-युक्त और पाचक जूस से भरा होता है। ऐसे में ये पेट से जुड़ी कई बीमारियों को ठीक करने का काम करता है।
  • काफल को खाने से पेट के कई प्रकार के विकार दूर होते हैं। जैसे अतिसार, अल्सर, गैस,कब्ज, एसिडीटी आदि।
  • मानसिक बीमारियों समेत कई प्रकार के रोगों के लिए काफल काम में लाया जाता है, क्योंकि ये इसमें अनेक एंटी ऑक्सीडेंट और एंटी डिप्रेशंट तत्वों से भरा होता है।
  • इसके तने की छाल का सार, अदरक तथा दालचीनी का मिश्रण अस्थमा, डायरिया, बुखार, टाइफाइड, पेचिश तथा फेफड़े ग्रस्त बीमारियों के लिए अत्यधिक उपयोगी है।
  • इसके पेड़ की छाल तथा अन्य औषधीय पौधों के मिश्रण से निर्मित काफलड़ी चूर्ण को अदरक के जूस तथा शहद के साथ मिलाकर उपयोग करने से गले की बीमारी, खांसी तथा अस्थमा जैसे रोगों से मुक्ति मिल जाती है।
  • काफल के फूल का तेल कान दर्द, डायरिया तथा लकवे की बीमारी में उपयोग में लाया जाता है। इस फल का उपयोग औषधी तथा पेट दर्द निवारक के रूप में होता है।
  • इसके पेड़ की छाल का पाउडर जुकाम, आंख की बीमारी तथा सरदर्द में सूंघने से भी आराम मिलता है

काफल के नुकसान – Losses of kaphal

  • काफल से किसी भी प्रकार के नुकशान नहीं होते लेकिन आवश्यकता से अधिक किसी भी चीज़ का उपयोग नुक्शानदायक ही होता है
  • काफल को बाहर से लाते ही खाना सुरु ना करे क्युकी बाहर बहुत तेज़ धुप होती है ऐसे में तुरंत तोड़े काफल खाने से उल्टिया होना या पेट संबंधी अन्य परेशानिया हो सकती है।

  • अन्य वेजिटेबल आयल की तरह ही काफल के तेल का उपयोग भी सिमित ही करे। अगर किसी लम्बी बीमारी में इसका उपयोग कर रहे है तो पहले अपने डॉक्टर से परामर्श कर ले उसके बाद ही उपयोग करे।
काफल से जुड़ी ये कहानी है बेहद मार्मिक
काफल से जुड़ी ये कहानी है बेहद मार्मिक

काफल से जुड़ी ये कहानी है बेहद मार्मिक – This story related to Kafal is very poignant

काफल से जुड़ी एक कहानी भी। कहा जाता है कि उत्तराखंड के एक गांव में एक गरीब महिला रहती थी, जिसकी एक छोटी सी बेटी थी, दोनों एक दूसरे का सहारा थे। आमदनी के लिए उस महिला के पास थोड़ी-सी जमीन के अलावा कुछ नहीं था, जिससे बमुश्किल उनका गुजारा चलता था। गर्मियों में जैसे ही काफल पक जाते, महिला बेहद खुश हो जाती थी। उसे घर चलाने के लिए एक आय का जरिया मिल जाता था। इसलिए वह जंगल से काफल तोड़कर उन्हें बाजार में बेचती, जिससे परिवार की मुश्किलें कुछ कम होतीं।

एक बार महिला जंगल से एक टोकरी भरकर काफल तोड़ कर लाई। उस वक्त सुबह का समय था और उसे जानवरों के लिए चारा लेने जाना था। इसलिए उसने इसके बाद शाम को काफल बाजार में बेचने का मन बनाया और अपनी मासूम बेटी को बुलाकर कहा, ‘मैं जंगल से चारा काट कर आ रही हूं। तब तक तू इन काफलों की पहरेदारी करना। मैं जंगल से आकर तुझे भी काफल खाने को दूंगी, पर तब तक इन्हें मत खाना।’ मां की बात मानकर मासूम बच्ची उन काफलों की पहरेदारी करती रही।

इस दौरान कई बार उन रसीले काफलों को देख कर उसके मन में लालच आया, पर मां की बात मानकर वह खुद पर काबू कर बैठे रही। इसके बाद दोपहर में जब उसकी मां घर आई तो उसने देखा कि काफल की टोकरी का एक तिहाई भाग कम था। मां ने देखा कि पास में ही उसकी बेटी सो रही है। सुबह से ही काम पर लगी मां को ये देखकर बेहद गुस्सा आ गया। उसे लगा कि मना करने के बावजूद उसकी बेटी ने काफल खा लिए हैं।

इससे गुस्से में उसने घास का गट्ठर एक ओर फेंका और सोती हुई बेटी की पीठ पर मुट्ठी से जोरदार प्रहार किया। नींद में होने के कारण छोटी बच्ची अचेत अवस्था में थी और मां का प्रहार उस पर इतना तेज लगा कि वह बेसुध हो गई। बेटी की हालत बिगड़ते देख मां ने उसे खूब हिलाया, लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी।

मां अपनी औलाद की इस तरह मौत पर वहीं बैठकर रोती रही। उधर, शाम होते-होते काफल की टोकरी फिर से पूरी भर गई। जब महिला की नजर टोकरी पर पड़ी तो उसे समझ में आया कि दिन की चटक धूप और गर्मी के कारण काफल मुरझा जाते हैं और शाम को ठंडी हवा लगते ही वह फिर ताजे हो गए। अब मां को अपनी गलती पर बेहद पछतावा हुआ और वह भी उसी पल सदमे से गुजर गई।

कहा जाता है कि उस दिन के बाद से एक चिड़िया चैत के महीने में ‘काफल पाको मैं नि चाख्यो’ कहती है, जिसका अर्थ है कि काफल पक गए, मैंने नहीं चखे.. फिर एक दूसरी चिड़िया गाते हुए उड़ती है ‘पूरे हैं बेटी, पूरे हैं ।

ये कहानी जितनी मार्मिक है, उतनी ही उत्तरखंड में काफल की अहमियत को भी बयान करती है। आज भी गर्मी के मौसम में कई परिवार इसे जंगल से तोड़कर बेचने के बाद अपनी रोजी-रोटी की व्यवस्था करते हैं।

संदर्भ :- 1mg
jagran
timesnowhindi

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