Kainchi Dham Neem Karauri Ashram : उत्तराखंड स्थित बाबा नीब करौरी आश्रम की पूर्ण जानकारी

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Kainchi Dham Neem Karauri Ashram : उत्तराखंड स्थित बाबा नीब करौरी आश्रम की पूर्ण जानकारी
Kainchi Dham Neem Karauri Ashram : उत्तराखंड स्थित बाबा नीब करौरी आश्रम की पूर्ण जानकारी

उत्तराखंड स्थित कैंची धाम बाबा नीम करौरी आश्रम की पूर्ण जानकारी, हर साल 15 जून को यहां एक विशाल मेले व भंडारे का आयोजन होता है।


कैंची धाम (Kainchi Dham) : भारत में कई ऐतिहासिक मंदिर और धाम बने है ।इन धामों और मंदिरो से जुड़ी लोगो की आस्था एवं पंरपराएँ अचंभित करने वाली है .लेकिन भारत के इन मंदिरों में एक ऐसा भी मंदिर है जिस पर केवल भारतीयों की ही नहीं बल्कि विश्व के लोगों की आस्था है .यह मंदिर है, उत्तराखंड के नैनीताल में स्थित कैंची धाम(Kainchi Dham) है
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इसलिए मशहूर है यह धाम

इस धाम को स्‍थापित करने वाले बाबा नीम करौली को भगवान हनुमान का अवतार माना जाता है. कहते हैं कि यहां कोई भी व्‍यक्ति मुराद लेकर जाए तो वह खाली हाथ नहीं लौटता. यहां बाबा का समाधि स्थल भी है. विदेशी भक्‍तों की बात करें तो यहां अमेरिकी लोग सबसे ज्‍यादा आते हैं

क्या है कैंची धाम का पूरा इतिहास

नैनीताल अल्मोड़ा रोड पर स्थित कैंची धाम(Kainchi Dham) बाबा नीम कैरोली (Neem Karoli Baba) का तपोस्थल बताया जाता है जिन्होनें क्षिप्रा नाम की पहाड़ी नदी के किनारे साल 1962 में कैंची धाम (Kainchi Dham) की स्थापना की थी।कहा जाता है कि नीम कैरोली बाबा के पास कुछ आध्यात्मिक शक्ति थी जिसे वो लोगों को सही रास्ता बताने में मदद करते थे।

Kainchi Dham Neem Karauri Ashram : उत्तराखंड स्थित बाबा नीब करौरी आश्रम की पूर्ण जानकारी
कैंची धाम:नीम करोली बाबा की महिमा

नीम करोली बाबा का जीवन परिचय

नीम करोली बाबा (Neem Karoli Baba) जी का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उनका जन्म अकबरपुर (उत्तर प्रदेश) में सन 1900 के आस पास हुआ था। नीम करोली महाराज के पिता का नाम श्री दुर्गा प्रशाद शर्मा था।

नीम करोली बाबा (Neem Karoli Baba) जी गृहस्थ जीवन के साथ- साथ धार्मिक और सामाजिक कामों में सहायता करते थे। मात्र 11 वर्ष की उम्र में ही उनका विवाह एक ब्राह्मण कन्या के साथ कर दिया गया था। परन्तु शादी के कुछ समय बाद ही उन्होंने घर छोड़ दिया तथा साधु बन गए। माना जाता है कि लगभग 17 वर्ष की उम्र में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई थी।

 लगभग 10 वर्ष तक घर से दूर रहे। एक दिन उनके पिता उनसे मिले और गृहस्थ जीवन का पालन करने को कहा। पिता के आदेश को मानते हुए नीम करौली बाबा घर वापस लौट आये और दोबारा गृहस्थ जीवन शुरू कर दिया।

नीम करौली बाबा के 2 बेटे और 1 बेटी हैं. बड़े बेटे अपने परिवार के साथ भोपाल में रहते हैं और छोटे बेटे का हाल ही में निधन हो गया है.

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नीम करोली बाबा (Neem Karoli Baba) हनुमान जी के परम भक्‍त थे, उन्‍होंने देश में भगवान हनुमान के कई मंदिर बनवाए. इसी कड़ी में उन्‍होंने नैनीताल के पास कैंची गांव में भी हनुमान मंदिर बनवाया बाबा नीब करौरी 1961 में पहली बार यहां आए

और उन्होंने अपने पुराने मित्र पूर्णानंद जी के साथ मिल कर यहां आश्रम बनाने का विचार किया। इस धाम को कैंची मंदिर, नीम करौली धाम और नीम करौली आश्रम के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर बाबा नीम करौली महाराज जी ने बनवाया था, जो चमत्कारी बाबा आश्रम के नाम से प्रसिद्ध है। नीम करोली के आश्रम में आने वाले विदेशियों में सबसे ज्यादा लोग अमेरिका के है

शायद इसलिए क्योंकि उन पर राम दास की किताब का प्रभाव पड़ा होगा जिसने उन्हें यहां आने के लिए प्रेरित किया लेकिन आज भी कैंची धाम नीम करोली बाबा (Neem Karoli Baba) से कोई भी व्यक्ति खाली हाथ नहीं जाता ।कैंची धाम में आ कर हर दुःख,परेशानी का हल मिल जाता है ऐसा लोगो का मन्ना है।

नीम करोली बाबा (Neem Karoli Baba) ने अपने शरीर का त्याग 11 सितंबर 1973 को वृंदावन में किया था।

नीम करोली बाबा का आश्रम कैंची धाम (Kainchi Dham) पहाड़ी इलाके में देवदार के पेड़ों के बीच स्थित है, यहां 5 देवी-देवताओं के मंदिर हैं। इनमें हनुमानजी का भी एक मंदिर है। बाबा नीम करोली हनुमानजी के परम भक्त थे और अपने जीवन में लगभग 108 हनुमान मंदिर बनवाए थे। वर्तमान में उनके हिंदुस्तान समेत अमरीका के टैक्सास में भी मंदिर हैं।

ऐसा रहा नीम करौली बाबा का जीवन

नीम करोली बाबा (Neem Karoli Baba) के धाम में आ चुके बड़े बड़े नामों में पूर्व राष्ट्रपति वीवी गिरी, अँग्रेज जनरल मकन्ना, भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु एवं दुनिया की सबसे मशहूर कंपनी एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स (Steve Jobs) से लेकर फेसबुक के फाउंडर मार्क जुकरबर्ग (Mark Zuckerberg) और हॉलीवुड अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट्स (Julia Roberts)आदि नाम शामिल है। यह भी पढ़ें:  beautiful hill station of Uttarakhand : आइये जानते है उत्तराखंड के खूबसूरत हिल स्टेशन रानीखेत के बारे में

आसान भाषा में कहा जाए तो ऐसा लगता है। यहां आकर अपनी जिंदगी में अलग-अलग दुविधाओं से गुजर रहे लोगों को एक विजन मिल जाता है।जिंदगी को नए तरिके से देखने का जिंदगी जीने का इसलिए लोगो में आज भी कैंची धाम (Kainchi Dham) के प्रति बहुत आस्था देखि जाती है

  • 15 जून को कैंची धाम (Kainchi Dham) की स्थापना के बाद उनके एक अमेरिकी भक्त राम दास ने उन पर एक किताब लिखी थी। जिसके बाद से दुनियाभर के देशों का आकर्षण कैंची धाम की ओर बढ़ा।
  • कैंची धाम में नीम करौली बाबा ने हनुमानजी के साथ अन्‍य देवी-देवताओं के मंदिर भी बनवाये हैं . नीम करौली बाबा ने कैंची धाम (Kainchi Dham) में एक चबूतरा बनवाया जहां पर उन्हें साथ पहुंचे हुए संतों साधु प्रेमी बाबा तथा सोमबारी महाराज ने हवन किया।

  • बाबा को वर्ष 1960 के दशक में अन्तरराष्ट्रीय पहचान मिली। उस समय उनके एक अमरीकी भक्त बाबा राम दास ने एक किताब लिखी जिसमें उनका उल्लेख किया गया था। इसके बाद से पश्चिमी देशों से लोग उनके दर्शन तथा आर्शीवाद लेने के लिए आने लगे।
  • बाबा ने अपनी समाधि के लिए वृन्दावन की पावन भूमि को चुना। उनकी मृत्यु 11 सितम्बर 1973 को हुई। उनकी याद में आश्रम में उनका मंदिर बना गाया तथा एक प्रतिमा भी स्थापित की गई। नीम करोली बाबा का समाधि स्थल नैनीताल के पास पंतनगर में है यह भी पढ़ें: World blood donor day 2021:रक्तदान दिवस का विषय,इतिहास, और थीम
  • उत्तराखंड स्थित कैंची धाम (Kainchi Dham) में हर साल 15 जून को एक विशाल मेले व भंडारे का आयोजन होता है।
  • नीम करौली बाबा को कैंची धाम बहुत प्रिय था। प्राय: हर गर्मियों में वे यहीं आकर रहते थे
  • नीम करौली बाबा धाम की एक अनोखी प्रथा है कि यहां आने वाले लोग बाबा के मंदिर में कंबल चढ़ाते हैं. ऐसा इसलिए है क्‍योंकि बाबा हमेशा कंबल ही ओड़ा करते थे.
  • कहा जाता है की बाबा नीम करौली हमेशा अपने साथ एक कम्बल रखा करते थे। इसलिए नीम करौली बाबा के भक्त भी उन्हें उपहार स्वरूप कम्बल ही देते थे
  • नीम करोली बाबा के ऐसे ही अनेकों किस्से हैं, जिन्हें सुनकर मन रोमांचित हो जाता हैं.और उनके दर्शन की इच्छा होने लगती है

कैसे जाएं नीम करोली बाबा आश्रम

नीम करोली बाबा आश्रम नैनीताल – अल्मोड़ा रोड पर, भवाली से 9 किलोमीटर और नैनीताल से 17 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में एक ट्रेन काठगोदाम के लिए रवाना हो सकती है और फिर दो घंटे की बस की सवारी के साथ कैंची धाम पहुंचा जा सकता है। आश्रम बस स्टॉप के करीब स्थित है।

आपको भी इस आश्रम की भव्यता के दर्शन करने कम से कम एक बार यहां जरूर जाना चाहिए। यह भी पढ़ें: Sushant Singh Rajput Death Anniversary : सुशांत राजपूत की उपलब्धियों के साथ एक वेबसाइट की शुरुआत की गई

neem karoli baba story नीम करोली बाबा का चमत्कारिक ‘बुलेटप्रूफ कंबल’

नीम करौली बाबा का आश्रम नैनीताल से 20 किलोमीटर दूर नैनीताल अल्मोड़ा रोड पर समुद्रतल से 1400 मीटर ऊचाई पर स्तिथ है। यहाँ पर दो घुमावदार मोड़ है जिनकी आकृति कैंची नुमा है। इसलिए इस आश्रम को कैंची धाम (Kainchi Dham) आश्रम कहा जाता है ।

नीम करोली बाबा को इस आश्रम में आने के बाद से ही अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली उस समय उनके एक अमेरिकी भक्त रिचर्ड एलपर्ट (रामदास) ने नीम करोली बाबा के चमत्कारों पर ‘मिरेकल ऑफ़ लव’ नामक एक किताब लिखी जिसके बाद से दुनियाभर के देशों का आकर्षण कैंची धाम की ओर बढ़ा।


रिचर्ड एलपर्ट द्वारा लिखी कहानी ‘मिरेकल ऑफ़ लव’ इस में ‘बुलेटप्रूफ कंबल’ नाम से एक घटना का जिक्र है। यह घटना 1943 के आस पास की है ।बाबा के अनेको भक्त थे। उनमें से ही एक बुजुर्ग दंपत्ति थे जो फतेहगढ़ में रहते थे।

एक दिन अचानक बाबा उनके घर पहुंच गए और कहने लगे वे रात में यहीं रुकेंगे। दोनों दंपत्ति को अपार खुशी तो हुई, लेकिन उन्हें इस बात का दुख भी था कि घर में महाराज की सेवा करने के लिए कुछ भी नहीं था। हालांकि जो भी था उन्हों बाबा के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। बाबा वह खाकर एक चारपाई पर लेट गए और कंबल ओढ़कर सो गए।

बुजुर्ग दंपत्ति से कंबल को गंगा जी में प्रवाहित कर दो

दोनों बुजुर्ग दंपत्ति भी सो गए, लेकिन क्या नींद आती। महाराजजी कंबल ओढ़कर रातभर कराहते रहे, ऐसे में उन्हें कैसे नींद आती। वे वहीं बैठे रहे उनकी चारपाई के पास। पता नहीं महाराज को क्या हो गया। जैसे कोई उन्हें मार रहा है।

जैसे-तैसे कराहते-कराहते सुबह हुई। सुबह बाबा उठे और कंबल को लपेटकर बजुर्ग दंपत्ति को देते हुए कहा इसे गंगा में प्रवाहित कर देना। इसे खोलकर देखना नहीं अन्यथा फंस जाओगे। दोनों दंपत्ति ने बाबा की आज्ञा का पालन किया। जाते हुए बाबा ने कहा कि चिंता मत करना महीने भर में आपका बेटा लौट आएगा।

जब वे चादर लेकर नदी की ओर जा रहे थे तो उन्होंने महसूस किया की इसमें लोहे का सामान रखा हुआ है, लेकिन बाबा ने तो खाली चादर ही हमारे सामने लपेटकर हमें दे दी थी। खैर, हमें क्या। हमें तो बाबा की आज्ञा का पालन करना है। उन्होंने वह चादर वैसी की वैसी ही नदी में प्रवाहित कर दी।

लगभग एक महीने बाद उनका पुत्र बर्मा में छिड़ी लड़ाई से लौट आया. वह ब्रिटिश फौज में सैनिक था. जब वह घर आया, तो उसने अपने माता-पिता को एक ऐसी कहानी सुनाई, जिससे वो समझ गए कि उस रात आख‍िर बाबा क्यों कराह रहे थे।

बेटा से युद्ध की कहानी सुन बुजुर्ग दंपत्ति रह गए हैरान

उसने बताया कि करीब महीने भर पहले एक दिन वह दुश्मन फौजों के साथ घिर गया था। रातभर गोलीबारी हुई। उसके सारे साथी मारे गए लेकिन वह अकेला बच गया। मैं कैसे बच गया यह मुझे पता नहीं। उस गोलीबारी में उसे एक भी गोली नहीं लगी। रातभर वह जापानी दुश्मनों के बीच जिन्दा बचा रहा।

भोर में जब और अधिक ब्रिटिश टुकड़ी आई तो उसकी जान में जा आई। यह वही रात थी जिस रात नीम करोली बाबा जी उस बुजुर्ग दंपत्ति के घर रुके थे.रात भर वह बुजुर्ग दंपति के बेटे पर लगने वाली गोलियों को अपने शरीर पर खा रहे थे.

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