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Mahashivratri 2022: महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर क्या चढ़ाये और क्या नहीं चढ़ाये, तथा शिव कथा
महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर क्या चढ़ाये
इस वर्ष महाशिवरात्रि का पर्व गुरुवार 11 मार्च को मनाया जाएगा. शिव भक्तों के लिए महाशिवरात्रि सबसे बड़ा दिन होता है. महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर कई प्रकार की चीजें अर्पित की जाती है. लेकिन कुछ चीजों को शिवलिंग पर नहीं चढ़ाया जाता. जानते हैं ये चीजें कौन सी हैं और इन्हें शिवलिंग पर क्यों नहीं चढ़ाया जाता है.
महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग में जरूर चढ़ाएं बेलपत्र सहित ये चीजें, भगवान शिव होंगे प्रसन्न ।
महाशिवरात्रि व्रत के दिन भारत देश में अलग-अलग जगहों पर स्थित बारह ज्योतिर्लिंगों की पूजा का भी विशेष विधान है।
कहते हैं महाशिवरात्रि के दिन जो व्यक्ति बेल के पत्तों से शिव जी की पूजा करता है और रात के समय जागकर भगवान के मंत्रों का जप करता है, उसे भगवान शिव आनन्द और मोक्ष प्रदान करते हैं ।
साथ ही महाशिवरात्रि के दिन विशिष्ट सिद्धियों की प्राप्ति के लिये बहुत से लोग महानिशीथ काल में भगवान शिव की पूजा करने के इच्छुक होते हैं। वहीं विष्णु पुराण में कुछ ऐसी चीजों के बारे में बताया गया है जिन्हें भगवान को चढ़ाने से वह जल्द प्रसन्न हो जाते हैं।
शमी के पत्ते
भगवान शिव को शमी की पत्तियां अति प्रिय होती है। महाशिवरात्रि के दिन भगवान को अर्पित करने से वह प्रसन्न होते हैं। इसके साथ ही हर कष्ट से छुटकारा मिलता है। इसके साथ ही शनि के प्रकोप से भी बच सकते हैं।
अपामार्ग के पत्ते
भगवान शिव को अपामार्ग के पत्ते चढ़ाने से सुक-समृद्धि के साथ संतान की प्राप्ति होती हैं। इसके साथ ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।
पीपल के पत्ते
पीपल के पत्तों को विकल्प के तौर पर चुन सकते हैं। अगर आपको कहीं भी बेलपत्र नहीं मिल रही हैं तो आप पीपल के पत्ते चढ़ा सकते हैं। ये भी महादेव को अति प्रिय है।
धतूरा
भगवान शिव की पूजा-अर्चना के लिए धतूरा का इस्तेमाल जरूर किया जाता है।
भांग
भगवान शिव को भांग भी काफी प्रिय है। इसको लेकर पुराणों में कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान महादेव से गले में विष धारण कर लिया था। यह विष इतना ज्यादा गर्म था कि भगवान शिव को गर्मी लगने लगी। जिसके उपरांत भगवान शिव ने भांग का सेवन किया। चूंकि भांग की तासीर ठंडी होती है।
दूर्वा
पुराणों के अनुसार दुर्वा में अमृत का वास माना जाता है। इसलिए शिवलिंग में दुर्वा घास जरूर चढ़ाना चाहिए। इससे भगवान प्रसन्न होकर लंबी आयु का भी वरदान देते हैं।
shivratri 2022 date : महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर क्या चढ़ाये और क्या नहीं चढ़ाये, तथा शिव कथा
महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर क्या नहीं चढ़ाये
तुलसी – वैसे तो हिंदू धर्म में तुलसी का विशेष महत्व है लेकिन इसे भगवान शिव पर चढ़ाना मना है।
तिल – शिवलिंग पर तिल भी नहीं चढ़ाया जाता है. मान्याता है कि तिल भगवान विष्णु के मैल से उत्पन्न हुआ है इसलिए इसे भगवान शिव को अर्पित नहीं किया जाता।
टूटे हुए चावल – टूटे हुए चावल भी भगवान शिव को अर्पित नहीं किए जाते हैं। शास्त्रों के मुताबिक टूटा हुआ चावल अपूर्ण और अशुद्ध होता है।
कुमकुम – भगवान शिव को कुमकुम और हल्दी चढ़ाना भी शुभ नहीं माना गया है।
नारियल – शिवलिंग पर नारियल का पानी भी नहीं चढ़ाया जाता। नारियल को देवी लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। देवी लक्ष्मी का संबंध भगवान विष्णु से है इसलिए नारियल शिव को नहीं चढ़ता।
शंख – भगवान शिव की पूजा में कभी शंख का प्रयोग नहीं किया जाता. शंखचूड़ नाम का एक असुर भगवान विष्णु का भक्त था । जिसका वध भगवान शिव ने किया है।शंख को शंखचूड़ का प्रतीक माना जाता है। यही कारण है कि शिव उपासना में शंख का इस्तेमाल नहीं होता।
केतकी का फूल – भगवान शिव की पूजा में केतकी के फूल को अर्पित करना वर्जित माना जाता है ।
आइए जानते हैं महाशिवरात्रि व्रत की कथा – Mahashivratri Vrat Katha
महाशिवरात्रि का पर्व पंचांग के अनुसार 11 मार्च 2021 को फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान शिव के साथ साथ शिव परिवार की भी पूजा की जाती है। इस दिन विधि पूर्वक भगवान शिव की पूजा करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। इस दिन महाशिवरात्रि की व्रत का भी विशेष पुण्य माना गया है।
महाशिवरात्रि व्रत की कथा – Mahashivratri Vrat Katha
महाशिवरात्रि की कथा का वर्णन शिव पुराण में मिलता है। इस कथा के अनुसार पुरातन काल में एक शिकारी था, जिसका नाम चित्रभानु था। यह शिकारी एक साहूकार का कर्जदार था। कर्ज न दे पाने के की स्थिति में साहूकार ने उसे एक शिवमठ में बंदी बना दिया।संयोग से जिस दिन से बंदी बनाया उस दिन महाशिवरात्रि थी। साहूकार ने इस दिन अपने घर में पूजा का आयोजन किया। पूजा के बाद कथा का पाठ किया गया. शिकारी भी पूजा और कथा (Mahashivratri Vrat Katha) में बताई गई बातों को बातों को ध्यान से सुनता रहा। पूजा कार्यक्रम समाप्त होने के बाद साहुकान ने शिकारी को अपने पास बुलाया और उससे अगले दिन ऋण चुकाने की बात कही, इस पर शिकारी ने वचन दिया। साहुकार ने उसे मुक्त कर दिया. शिकारी जंगल में शिकार के लिए आ गया। शिकार की खोज में उसे रात हो गई। जंगल में ही उसने रात बिताई.
शिकारी एक तालाब के किनारे एक बेल के पेड़ पर चढ़ कर रात बीतने लगा। बेलपत्र के पेड़ नीचे एक शिवलिंग था। जो बेलपत्रों से ढक चुका था. इस बात का शिकारी को कुछ भी पता नहीं था। आराम करने के लिए उसने बेलपत्र की कुछ सखाएं तोड़ीं,
इस प्रक्रिया में कुछ बेलपत्र की पत्तियां शिवलिंग पर गिर पड़ी। शिकारी भूखा प्यास उसी स्थान पर बैठा रहा। इस प्रकार से शिकारी का व्रत हो गया। तभी गर्भिणी हिरणी तालाब पर पानी पीने के लिए आई।
शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर हिरणी को मारने की जैसी ही कोशिश की वैसे ही हिरणी बोली मैं गर्भ से हूं, शीघ्र ही बच्चे को जन्म दूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे? यह उचित नहीं होगा । मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी, तब तुम मेर शिकार कर लेना।
शिकारी ने तीर वापिस ले लिया। हिरणी भी वहां से चली गई। धनुष रखने में कुछ बिल्व पत्र पुन: टूटकर शिवलिंग पर गिर गए। इस प्रकार उससे अनजाने में ही प्रथम प्रहर का पूजा पूर्ण हो गई। कुछ देर बाद एक ओर हिरणी उधर से निकली। पास आने पर शिकारी ने तुरंत ही धनुष पर तीर चढ़ा कर निशाना लगा दिया।
लेकिन तभी हिरणी ने शिकारी से निवेदन किया कि मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। कामातुर विरहिणी हूं। अपने प्रिय को खोज रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर तुम्हारे पास आ जाऊंगी। शिकारी ने इस हिरणी को भी जाने दिया। शिकारी विचार करने लगा,
इसी दौरान रात्रि का आखिरी प्रहर भी बीत गया। इस बार भी उसके धनुष से कुछ बेलपत्र शिवलिंग पर जा गिरे, इस प्रकार उसके द्वारा दूसरे प्रहर की पूजन प्रक्रिया भी पूर्ण हो गई। इसके बाद तीसरी हिरणी दिखाई दी जो अपने बच्चों के साथ उधर से गुजर रही थी। शिकारी ने धनुष उठाकर निशाना साधा।शिकारी तीर को छोड़ने वाला ही था कि हिरणी बोली मैं इन बच्चों को इनके पिता को सौंप कर लौट आऊंगी. मुझे अभी जानें दें। शिकारी ने ऐसा करने से इंकार कर दिया। उसने बताया कि दो हिरणी को मैं छोड़ चुका हूं। हिरणी ने कहा कि शिकारी मेरा विश्वास करों, मै वापिस आने का वचन देती हूं।शिकारी को हिरणी पर दया आ गई और उसे भी जाने दिया। उधर भूखा प्यासा शिकारी अनजाने में बेल की पत्तियां तोड़कर शिवलिंग पर फेंकता रहा। सुबह की पहली किरण निकली तो उसे एक मृग दिखाई दिया।
शिकारी ने खुश होकर अपना तीर धनुष पर चढ़ा लिया, तभी मृग ने दुखी होकर शिकारी से कहा यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन हिरणियों और बच्चों को मार डाला है, तो मुझे भी मार दो। देर न करो। क्योंकि मैं यह दुख सहन नहीं कर सकता हूं। मैं उन हिरणियों का पति हूं। यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है ।
तो मुझे भी छोड़ दो। मैं अपने परिवार से मिलकर वापिस आ जाऊंगा। शिकारी ने उसे भी जाने दिया। सूर्य पूरी तरह से निकल आया था और सुबह हो चुकी थी। शिकारी से अनजाने में ही व्रत, रात्रि-जागरण, सभी प्रहर की पूजा और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने की प्रक्रिया पूरी हो चुकी थी। (Mahashivratri Vrat Katha) भगवान शिव की कृपा से उसे इसका फल तुरंत प्राप्त हुआ।
शिकारी का मन निर्मल हो गया. कुछ देर बाद ही शिकारी के सामने संपूर्ण मृग परिवार मौजूद था. ताकि शिकारी उनका शिकार कर सके। लेकिन शिकारी ने ऐसा नहीं किया और सभी को जाने दिया।
महाशिवरात्रि के दिन शिकारी द्वारा पूजन की विधि पूर्ण करने के कारण उसे मोक्ष प्राप्त हुआ। शिकारी की मृत्यु होने पर यमदूत उसे लेने आए तो शिवगणों ने उन्हें वापिस भेज दिया. शिवगण शिकारी को लेकर शिवलोक आ गए।
Mahashivratri Vrat Katha
भगवान शिव की कृपा से ही अपने इस जन्म में राजा चित्रभानु स्वयं के पिछले जन्म को याद रख पाए और महाशिवरात्रि के महत्व को जान कर उसका अगले जन्म में भी पालन कर पाए।