Red Grapes Benefits & Side Effects In Hindi | Lal Angur ke fayde

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Red Grapes Benefits & Side Effects In Hindi | Lal Angur ke fayde
Red Grapes Benefits & Side Effects In Hindi | Lal Angur ke fayde

Red Grapes Benefits | Red Grapes Benefits In Hindi | लाल अंगूर खाने के फायदे |

प्रकृति ने हमें औषधीय गुणों और पोषक तत्वों से भरपूर कई फलों को उपहार रूप में दिया है। उन्हीं में से एक है अंगूर। ये भले ही आकार में छोटे हों, लेकिन गुणों से भरपूर होते हैं। वहीं, विश्व भर में अंगूर विभिन्न आकार और रंगों में पाए जाते हैं, जिनमें से एक के बारे में https://sangeetaspen.com/ इस लेख में बताएंगे और वो है लाल अंगूर।

इसके अलावा, यहां लाल अंगूर का उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है, यह भी बताया जाएगा। साथ ही यहां लाल अंगूर के नुकसान भी बताए गए हैं। लाल अंगूर (Red Grapes) का वैज्ञानिक नाम विटिस विनिफेरा (Vitis vinifera)है।

अंगूर एक ऐसा फल है जिसे उसकी भीनी महक और रसीले स्‍वाद के कारण सभी करते है।अंगूर को आप साबुत खा सकते हैं. इनसे न तो छिलका उतारने का झंझट हैं और न ही बीज को निकालने का, ये फल देखने में जितने रसीले दिखते है खाने में भी ये बहुत टेस्‍टी होते है.

इसके खट्टे मीठे टेस्‍ट के वजह से गर्मियों में कई तरह के जूस में इसका इस्‍तेमाल किया जाता है. ये कई रंगों में मौजूद हैं। इन्‍हीं में खास हैं लाल अंगूर।आपने काला, हरा अंगूर तो खूब खाया होगा, लेकिन लाल अंगूर (Red Grapes)का सेवन लोग अक्सर बहुत कम करते हैं। यह देखने में जितना खूबसूरत लगता है, उतने ही गुणों से भरपूर होता है। जहां एक ओर इस फ्रूट में विटामिन की मात्रा बहुत होती है,

वहीं एंटी ऑक्सीडेंट भी लाल अंगूरों में काफी मात्रा में मौजूद होती है. इनके सेवन से आपके शरीर को भरपूर मात्रा में पोषण तो मिलता ही है साथ ही ये आपकी हार्ट हेल्‍थ के साथ-साथ आपकी स्किन और आंखों के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकते हैं। ओर लाल अंगूर (Red Grapes)कई बीमारियों से भी आपको बचाते हैं।

गर्मियों के मौसम में लाल अंगूर खाने है बहुत फायदें है. लाल अंगूर में भी हरे और काले अंगूर की तरह कई पोषक तत्व होते हैं। लाल अंगूर का उपयोग दुनिया की सबसे बेहतरीन शराब रेड वाइन बनाने के अलावा अन्य कई प्रकार से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने के लिए उपयोग किये जाते है।

पूरे विश्व में लाल अंगूर की 200 से ज्यादा किस्में है और इसका अधिक उपयोग रेड वाइन, जैम जेली और अंगूर का रस आदि बनाने के लिए किया जाता है। लाल अंगूर में भी हरे और काले अंगूर की तरह कई पोषक तत्व होते हैं। लाल रंग साबुत खाने के साथ ही इसका जूस पी सकते हैं। इसे स्मूदी, आइसक्रीम आदि में भी डाल सकते हैं।


लाल अंगूर के फायदे | Lal Angur ke fayde | Red Grapes Benefits In Hindi

किडनी के लिए है फायदेमंद – अंगूर के सेवन से पाचन तंत्र स्वस्थ रहने, किडनी डिसऑर्डर की समस्या से निजात मिलने जैसे कई फायदे होते हैं. इसलिए अंगूर का सेवन स्वास्थ्य के लिए उपयोगी होता है.

आंखों और मस्तिष्क के लिए लाभकारी – लाल अंगूर के रेस्वेराट्रॉल, आपके दिमाग के रक्त प्रवाह को 200 फीसदी तक बढ़ाने में मदद करता है. इसके नियमियत सेवन से आपकी सोचने की क्षमता बढ़ती है और मेमोरी पॉवर को भी मजबूत करता है. इसका सेवन आपको ज्यादा एक्टिव रखता है, और काम करने की क्षमता बढ़ाता है. इसके अलावा, जिनकी आंखों कमजोर होती हैं लाल अंगूर, उनके लिए भी कारगर है.

एनर्जी बढ़ाने और वजन घटाने में है सक्षम – जो लोग काम करते समय या दिन में जल्दी थकावट महसूस करते हैं, उनके लिए लाल अंगूर एक बेहतर विकल्प है. इसके सेवन से ज्याद एनर्जी मिलती है और काम करने की क्षमता भी बढ़ जाती है. वजन घटाने के लिए लोग डाइटिंग करते हैं, लेकिन लाल अंगूर कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करते हैं. आपके खून में कोलेस्ट्रॉल को बढ़ने नहीं देता और आपका वजन भी जल्दी कम करने में फायदेमंद होता है.

मुहांसों से बचाता है – लाल अंगूर त्वचा के लिए बेहतर फायदेमंद होता है, ये त्वचा को डैमेज होने से बचाता है. इसका रेस्वेराट्रोल गुण आपके चेहरे पर होने वाले मुंहासों की संभावना को बहुत कम कर देता है.

ह्रदय रोगियों के लिए कारगर है – लाल अंगूरों में फ्लेवोनोइड्स और रेस्वेराट्रॉल होते हैं, इनके सेवन से हृदय रोग की समस्या कम होने लगती है. ये हाइ कोलेस्ट्रॉल, रक्तचाप, रक्त के थक्कों और दिल से संबंधित अन्य बीमारियों को कम करने में मदद करते हैं.

गुर्दे के लिए है फायदेमंद – शरीर में यूरिक एसिड बढ़ने के कारण गुर्दा विकार (Disorders) होने लगता है. यूरिक एसिड को कम करने के लिए लाल अंगूर फायदेमंद होते हैं, अगर ऐसी समस्या से निजात चाहते हैं, तो इसका सेवन कारगर है. ये सिस्टम से एसिड को खत्म करने, और गुर्दे के दबाव को कम करने में मदद करते हैं. रेड वाइन में रेस्वेराट्रॉल होता है, अल्जाइमर जैसी बीमारियों को भी ठीक करने में सहायक है, लाल अंगूर में भी इसकी ज्यादा मात्रा पाई जाती हैं.

कैंसर से रखता है दूर – रेस्वेराट्रोल गुणों की सकरात्‍मक प्रभावों से कैंसर जैसी बीमारी को होने से रोका जा सकता है. इसके अलावा ये सूर्य की हानिकारक किरणें यूवीबी किरणों से भी स्किन को बचाता है. लाल अंगूर के कैंसर के इलाज के दौरान शरीर को विकिरण से भी बचाते हैं.

ब्लड प्रेशर की समस्या करे दूर – अगर आपको ब्लड प्रेशर से संबंधित समस्या है तो आप रेड ग्रेप्स खाना शुरू कर दीजिए. इसमें मौजूद पोटेशियम ब्लड प्रेशर की बीमारी में आपके बहुत काम आता है. अगर शरीर में पोटेशियम कम होता है तो हाई ब्लड प्रेशर की समस्या हो सकती है. लाल अंगूर में मौजूद पोटेशियम हाई ब्लड प्रेशर होने के ख़तरे को कम करता है.

विटामिन K से भरपूर – विटामिन K वसा में घुलनशील होता है, यह रक्त का थक्का बनाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह ऑस्टियोपोरोसिस से भी रक्षा करता है, क्योंकि यह हड्डियो में कैल्शियम की मात्रा भी बढ़ाता है. लाल अंगूर सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं क्योंकि इसमें विटामिन K भरपूर मात्रा में होता है इसलिए इसका सेवन शरीर के लिए लाभकारी होता है.

त्वचा को रखता है कोमल – लाल अंगूर में विटामिन ई और सी के 20 गुणा ज्यादा एंटीऑक्सिडेंट तत्व होते हैं, जो त्वचा संबंधी समस्या को खत्म कर सकते हैं. लाल अंगूर में रेसवेराट्रॉल होता है, ये एक ऐसा एंटीऑक्सिडेंट तत्व है जो ऊम्र बढ़ने की प्रकिया को धीमा करता है. इसके सेवन से आपकी त्वचा कोमल और जवान बनी रहती है. कई लोगों को स्किन एलर्जी का सामना करना पड़ता है, लाल अंगूर में एंटीवायरल गुण होते हैं जो त्वचा संबंधी एलर्जी को दूर करने में सहायक हैं. एंटीवायरल गुण पोलियो, वायरस और हर्पीज जैसे वायरस से लड़ने में भी मदद करता हैं.

इम्‍यून रखता है – बॉडी को इस फल को खाने का सबसे बड़ा फायदा कि लाल अंगूरों को खाने से आप नेचुरल तरीके से अपने शरीर की इम्‍यून पॉवर को बढ़ा सकते है.

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लाल अंगूर के नुकसान – Side Effects of Red Grapes in Hindi

जहां एक ओर लाल अंगूर खाने में स्वादिष्ट और फायदेमंद है, वहीं कुछ परिस्थितियों में लाल अंगूर के नुकसान भी हो सकते हैं।

  • लाल अंगूर के बीज खाने से अपेंडिसाइटिस यानी पेट में अपेंडिक्स की सूजन हो सकती है ।
  • लाल अंगूर में रेस्वेराट्रोल नामक पॉलीफेनॉल होता है। रेस्वेराट्रोल का अधिक सेवन करने पर मतली, उल्टी, दस्त और नॉन अल्कोहलिक फैटी लिवर विकार वाले लोगों में लिवर की क्षति का जोखिम बढ़ सकता है।
  • कुछ व्यक्तियों में लाल अंगूर से गंभीर एलर्जी (Anaphylaxis) की शिकायत हो सकती है। इसमें व्यक्ति को सांस लेने में दिक्कत, उल्टी, मतली व त्वचा पर रैशेज जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है ।
  • ध्यान रहे कि छोटे बच्चों को साबुत लाल अंगूर खाने के लिए नहीं दें। साबुत अंगूर बच्चे के गले में फंस सकते हैं।

 

लाल अंगूर को लम्बे समय तक सुरक्षित कैसे रखें

  • हमेशा ताजे लाल अंगूर का चुनाव करना चाहिए। कभी भी ज्यादा नर्म, गले हुए और पिचके लाल अंगूर न खरीदें।
  • इन्हें किसी प्लास्टिक जिपर बैग में या प्लास्टिक के पैकेट में डालकर फ्रिज में स्टोर किया जा सकता है।
  • ध्यान रहे कि लाल अंगूर को फ्रिज में रखने से पहले धोना नहीं चाहिए, क्योंकि धोकर रखने से लाल अंगूर जल्दी खराब हो सकते हैं।
  • हां, यह भी जरूरी है कि लाल अंगूर को खाने के तुरंत पहले धोएं।
  • लाल अंगूरों को खरीदने के बाद ज्यादा से ज्यादा दो या तीन दिन में खा लेना चाहिए।

एक स्वस्थ व्यक्ति हफ्ते में तीन-चार दिन एक बार में एक कप (छोटा) तक लाल अंगूर का सेवन कर सकता है। हालांकि, व्यक्ति के स्वास्थ्य के आधार पर इसकी मात्रा में बदलाव हो सकता है। इसलिए, इस विषय से जुड़ी जानकारी डॉक्टर से ली जा सकती है।

लाल अंगूर का उपयोग – How to Use Red Grapes in Hindi

  • लाल अंगूर को फ्रूट चाट में मिलाकर सेवन कर सकते हैं।
  • इसका जूस स्वादिष्ट होता है, लाल अंगूर का जूस बनाकर पी सकते हैं।
  • कस्टर्ड में डालकर भी लाल अंगूर का सेवन कर सकते हैं।
  • लाल अंगूर को ऐसे ही खा सकते हैं।
  • लाल अंगूर की चटनी को बड़े चाव से खाया जाता है।
  • लाल अंगूर की चाय भी कई स्थानों पर लोकप्रिय है।

भारत में अंगूर की खेती

भारत में व्यावसायिक रूप से अंगूर की खेती पिछले लगभग छः दशकों से की जा रही है और अब आर्थिक दृष्टि से सर्वाधिक महत्वपूर्ण बागवानी उद्यम के रूप से अंगूर की खेती काफी उन्नति पर है। आज महाराष्ट्र[1] में सबसे अधिक क्षेत्र में अंगूर की खेती की जाती है तथा उत्पादन की दृष्टि से यह देश में अग्रणी है।

भारत में अंगूर की उत्पादकता Grapes Crop पूरे विश्व में सर्वोच्च है। उचित कटाई-छंटाई की तकनीक का उपयोग करते हुए मूलवृंतों के उपयोग से भारत के विभिन्‍न क्षेत्रों में अंगूर की खेती की व्‍यापक संभावनाएं उजागर हुई हैं।

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अंगूर की किस्में

अनब-ए-शाही – यह किस्म आंध्र प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और कर्नाटक राज्यों में उगाई जाती है। यह व्यापक रूप से विभिन्न कृषि जलवायु स्थितियों के लिए अनुकूल है । यह किस्म देर से परिपक्व होने वाली और भारी पैदावार वाली है। बेरियां जब पूरी तरह से परिपक्व हो जाती है तो ये लम्बी, मध्यम लंबी, बीज वाली और एम्बर रंग की हो जाती है। इसका जूस साफ और 14-16% TSS सहित मीठा होता है। यह कोमल फफूदी के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। औसतन उपज 35 टन है। फल बहुत अच्छी क्वालिटी वाला है और तालिका उद्देश्य हेतु ज्यादातर इस्तेमाल किया जाता है।

बंगलौर ब्लू

अंगूर का गुच्छा – यह किस्म कर्नाटक में उगाई जाती है। बेरियां पतली त्वचा वाली छोटी आकार की, गहरे बैंगनी, अंडाकार और बीजदार वाली होती है। इसका रस बैंगनी रंग वाला, साफ और आनन्दमयी सुगंधित 16-18% टीएसएस वाला होता है। फल अच्छी क्वालिटी का होता है और इसका उपयोग मुख्यत: जूस और शराब बनाने में होता है। यह एन्थराकनोज से प्रतिरोधी है लेकिन कोमल फफूदी के प्रति अतिसंवेदनशील है।

भोकरी – यह किस्म तमिलनाडू में उगाई जाती है। इसकी बेरियां पीली हरे रंग की, मध्यम लंबी, बीजदार और मध्यम पतली त्वचा वाली होती है। जूस साफ 16-18% टीएसएस वाला होता है। यह किस्म कमजोर क्वालिटी की होती है और इसका उपयोग टेबल प्रयोजन के लिए होता है। यह जंग और कोमल फफूदी के प्रति अतिसंवेदनशील है। औसतन उपज 35 टन/ हेक्टेयर/ वर्ष है ।

गुलाबी – यह किस्म तमिलनाडू में उगाई जाती है। इसकी बेरियां छोटे आकार वाली, गहरे बैंगनी, गोलाकार और बीजदार होती है। टीएसएस 18-20% होता है। यह किस्म अच्छी क्वालिटी की होती है और इसका उपयोग टेबल प्रयोजन के लिए होता है। यह क्रेकिंग के प्रति संवदेनशील नहीं है परन्तु जंग और कोमल फफूदी के प्रति अतिसंवेदनशील है। औसतन उपज 10-12 टन/ हेक्टेयर है।

काली शाहबी – इस किस्म छोटे पैमाने पर महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश राज्यों में उगाई जाती है। इसकी बेरियां लंबी, अंडाकार बेलनाकार, लाल- बैंगनी और बीजदार होती है। इसमें टीएसएस 22% है। यह किस्म जंग और कोमल फफूदी के प्रति अतिसंवेदनशील है। औसतन उपज 10-12 टन/ हेक्टेयर है। वैराइटी जंग के लिए तिसंवेदनशील है और कोमल फफूदी। औसतन उपज 12-18 टन/हैं॰ है। तालिका उद्देश्य हेतु यह किस्म उपयुक्त है ।

परलेटी – यह किस्म पंजाब, हरियाणा और दिल्ली के राज्यों में उगाई जाती है। इसकी बेरियां बीजरहित, छोटे आकार वाली, थोडा एलपोसोडियल गोलाकार और पीले हरे रंग की होती है। जूस 16-18% टीएसएस सहित साफ और हरा होता है। यह किस्म अच्छी क्वालिटी की होती है और इसका उपयोग टेबल प्रयोजन के लिए होता है। कल्सटरों के ठोसपन की वजह से यह किस्म किशमिश के लिए उपयुक्त नहीं है। यह एन्थराकनोज के प्रति अतिसंवेदनशील है। औसतन पैदावार 35 टन है।

थॉम्पसन सीडलेस – इस किस्म की म्यूटेंट टास-ए-गणेश, सोनाका और माणिक चमन हैं। इस किस्म महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक में उगाई जाती है । इसे व्यापक रूप से बीजरहित, इलपसोडियल लंबी, मध्यम त्वचा वाली सुनहरी-पीली बेरियों के रूप में अपनाया जाता है। इसका जूस 20-22% टीएसएस सहित मीठा और भूसे रंग वाला होता है। यह किस्म अच्छी क्वालिटी की होती है और इसका उपयोग टेबल प्रयोजन और किशमिश बनाने के लिए किया जाता है। औसतन पैदावार 20-25 टन/है0 है। म्यूटेंट टास-ए-गणेश और सोनाका की खेती ज्यादातर महाराष्ट्र में की जाती है।

शरद सीडलेस – यह रूस में स्थानीय किस्म है और इसे किशमिश क्रोनी कहा जाता है। इसकी बेरियां बीजरहित, काली, कुरकरी और बहुत ही मीठी होती है। इसमें टीएसएस 24 डिग्री ब्रिक्स तक होता है। यह जीए के लिए अच्छी प्रतिक्रिया देती है और इसका शैल्फ जीवन अच्छा है। इसे विशेष रूप से टेबल उद्देश्य हेतु उगाया जाता है।

भारत में अंगूर की कुछ अन्य किस्में है परलेट, ब्यूटी सीडलेस, पूसा सीडलेस, पूसा नवरंग

उपयोग

अंगूर एक स्वादिष्ट फल है. भारत में अंगूर अधिकतर ताजा ही खाया जाता है वैसे अंगूर के कई उपयोग हैं. इससे किशमिश, रस एवं मदिरा भी बनाई जाती है.

मिट्टी एवं जलवायु

अंगूर की जड़ की संरचना काफी मजबूत होती है. अतः यह कंकरीली,रेतीली से चिकनी तथा उथली से लेकर गहरी मिट्टियों में सफलतापूर्वक पनपता है लेकिन रेतीली, दोमट मिट्टी, जिसमें जल निकास अच्छा हो अंगूर की खेती के लिए उचित पाई गयी है. अधिक चिकनी मिट्टी में इसकी खेती न करे तो बेहतर है.

अंगूर लवणता के प्रति कुछ हद तक सहिष्णु है. जलवायु का फल के विकास तथा पके हुए अंगूर की बनावट और गुणों पर काफी असर पड़ता है. इसकी खेती के लिए गर्म, शुष्क, तथा दीर्घ ग्रीष्म ऋतू अनुकूल रहती है. अंगूर के पकते समय वर्षा या बादल का होना बहुत ही हानिकारक है. इससे दाने फट जाते हैं और फलों की गुणवत्ता पर बहुत बुरा असर पड़ता है. अतः उत्तर भारत में शीघ्र पकने वाली किस्मों की सिफारिश की जाती है.

प्रवर्धन

अंगूर का प्रवर्धन मुख्यतः कटिंग कलम द्वारा होता है. जनवरी माह में काट छाँट से निकली टहनियों से कलमे ली जाती हैं. कलमे सदैव स्वस्थ एवं परिपक्व टहनियों से लिए जाने चाहिए. सामान्यतः 4 – 6 गांठों वाली 23 – 45 से.मी. लम्बी कलमें ली जाती हैं.कलम बनाते समय यह ध्यान रखें कि कलम का निचे का कट गांठ के ठीक नीचे होना चाहिए एवं ऊपर का कट तिरछा होना चाहिए. इन कलमों को अच्छी प्रकार से तैयार की गयी तथा सतह से ऊँची क्यारियों में लगा देते हैं. एक वर्ष पुरानी जड़युक्त कलमों को जनवरी माह में नर्सरी से निकल कर खेत में रोपित कर देते हैं.

बेलों की रोपाई

रोपाई से पूर्व मिट्टी की जाँच अवश्य करवा लें. खेत को भलीभांति तैयार कर लें. बेल की बीच की दुरी किस्म विशेष एवं साधने की पद्धति पर निर्भर करती है. इन सभी चीजों को ध्यान में रख कर 90 x 90 से.मी. आकर के गड्ढे खोदने के बाद उन्हें 1/2 भाग मिट्टी, 1/2 भाग गोबर की सड़ी हुई खाद एवं 30 ग्राम क्लोरिपाईरीफास, 1 कि.ग्रा. सुपर फास्फेट व 500 ग्राम पोटेशीयम सल्फेट आदि को अच्छी तरह मिलाकर भर दें. जनवरी माह में इन गड्ढों में 1 साल पुरानी जड़वाली कलमों को लगा दें. बेल लगाने के तुंरत बाद पानी आवश्यक है.

बेलों की छंटाई

अंगूर की बेल साधने हेतु पण्डाल, बाबर, टेलीफोन, निफिन एवं हैड आदि पद्धतियाँ प्रचलित हैं. लेकिन व्यवसायिक इतर पर पण्डाल पद्धति ही अधिक उपयोगी सिद्ध हुयी है. पण्डाल पद्धति द्वारा बेलों को साधने हेतु 2.1 – 2.5 मीटर ऊँचाई पर कंक्रीट के खंभों के सहारे लगी तारों के जाल पर बेलों को फैलाया जाता है. जाल तक पहुँचने के लिए केवल एक ही ताना बना दिया जाता है. तारों के जाल पर पहुँचने पर ताने को काट दिया जाता है ताकि पार्श्व शाखाएँ उग आयें.उगी हुई प्राथमिक शाखाओं पर सभी दिशाओं में 60 सेमी दूसरी पार्श्व शाखाओं के रूप में विकसित किया जाता है. इस तरह द्वितीयक शाखाओं से 8 – 10 तृतीयक शाखाएँ विकसित होंगी इन्ही शाखाओं पर फल लगते हैं.

छंटाई

बेलों से लगातार एवं अच्छी फसल लेने के लिए उनकी उचित समय पर काट – छाँट अति आवश्यक है. छंटाई कब करें : जब बेल सुसुप्त अवस्था में हो तो छंटाई की जा सकती है, परन्तु कोंपले फूटने से पहले प्रक्रिया पूरी हो जानी चाहिए. सामान्यतः काट – छांट जनवरी माह में की जाती है.

सिंचाई

नवम्बर से दिसम्बर माह तक सिंचाई की खास आवश्यकता नहीं होती क्योंकि बेल सुसुप्ता अवस्था में होती है लेकिन छंटाई के बाद सिंचाई आवश्यक होती है. फूल आने तथा पूरा फल बनने (मार्च से मई ) तक पानी की आवश्यकता होती है. क्योंकि इस दौरान पानी की कमी से उत्पादन एवं हुन्वात्ता दोनों पर बुरा असर पड़ता है. इस दौरान तापमान तथा पर्यावरण स्थितियों को ध्यान में रखते हुए 7 – 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए. फल पकने की प्रक्रिया शुरू होते ही पानी बंद कर देना चाहिए नहीं तो फल फट एवं सड़ सकते हैं. फलों की तुडाई के बाद भी एक सिंचाई अवश्य कर देनी चाहिए.

खाद एवं उर्वरक

अंगूर की बेल भूमि से काफी मात्र में पोषक तत्वों को ग्रहण करती है. अतः मिट्टी कि उर्वरता बनाये रखने के लिए एवं लगातार अच्छी गुणवत्ता वाली फसल लेने के लिए यह आवश्यक है की खाद और उर्वरकों द्वारा पोषक तत्वों की पूर्ति की जाये. पण्डाल पद्धति से साधी गई एवं 3 x 3 मी. की दुरी पर लगाई गयी अंगूर की 5 वर्ष की बेल में लगभग 500 ग्राम नाइट्रोजन, 700 ग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश, 700 ग्राम पोटेशियम सल्फेट एवं 50 – 60 कि.ग्रा. गोबर की खाद की आवश्यकता होती है.

खाद कब दें

छंटाई के तुंरत बाद जनवरी के अंतिम सप्ताह में नाइट्रोजन एवं पोटाश की आधी मात्र एवं फास्फोरस की सारी मात्र दाल देनी चाहिए. शेष मात्र फल लगने के बाद दें. खाद एवं उर्वरकों को अच्छी तरह मिट्टी में मिलाने के बाद तुंरत सिंचाई करें. खाद को मुख्य तने से दूर १५-२० सेमी गहराई पर डालें.

कैसे करें फल गुणवत्ता में सुधार

अच्छी किस्म के खाने वाले अंगूर के गुच्छे मध्यम आकर, मध्यम से बड़े आकर के बीजरहित दाने, विशिष्ट रंग, खुशबू, स्वाद व बनावट वाले होने चाहिए. ये विशेषताएं सामान्यतः किस्म विशेष पर निर्भर करती हैं. परन्तु निम्नलिखित विधियों द्वारा भी अंगूर की गुणवत्ता में अपेक्षा से अधिक सुधार किया जा सकता है.

फसल निर्धारण

फसल निर्धारण के छंटाई सर्वाधिक सस्ता एवं सरल साधन है. अधिक फल, गुणवत्ता एवं पकने की प्रक्रिया पर बुरा प्रभाव छोड़ते हैं. अतः बेहतर हो यदि बाबर पद्धति साधित बेलों पर 60 – 70 एवं हैड पद्धति पर साधित बेलों पर 12 – 15 गुच्छे छोड़े जाएं. अतः फल लगने के तुंरत बाद संख्या से अधिक गुच्छों को निकाल दें.

छल्ला विधि

इस तकनीक में बेल के किसी भाग, शाखा, लता, उपशाखा या तना से 0.5 से.मी. चौडाई की छाल छल्ले के रूप में उतार ली जाती है. छाल कब उतारी जाये यह उद्देश्य पर निर्भर करता है. अधिक फल लेने के लिए फूल खिलने के एक सप्ताह पूर्व, फल के आकर में सुधार लाने के लिए फल लगने के तुंरत बाद और बेहतर आकर्षक रंग के लिए फल पकना शुरू होने के समय छाल उतारनी चाहिए. आमतौर पर छाल मुख्य तने पर 0.5 से.मी चौडी फल लगते ही तुंरत उतारनी चाहिए.

वृद्धि नियंत्रकों का उपयोग

अंगूर की फसल में प्रोजिब इजी का प्रयोग करने से दानो का आकर दो गुना होता है. पूसा सीडलेस किस्म में पुरे फूल आने पर 45 पी.पी.एम. 450 मि.ग्रा. प्रति 10 ली. पानी में, ब्यूटी सीडलेस मने आधा फूल खिलने पर 45 पी.पी.एम. एवं परलेट किस्म में भी आधे फूल खिलने पर 30 पी.पी.एम का प्रयोग करना चाहिए. प्रोजिब इजी के घोल का या तो छिडकाव किया जाता है या फिर गुच्छों को आधे मिनट तक इस घोल में डुबाया जाता है. यदि गुच्छों को 500 पी.पी.एम 5 मिली. प्रति 10 लीटर पानी में इथेफ़ोन में डुबाया जाये तो फलों में अम्लता की कमी आती है. फल जल्दी पकते हैं एवं रंगीन किस्मों में दानों पर रंग में सुधार आता है. यदि जनवरी के प्रारंभ में डोरमैक्स 3 का छिडकाव कर दिया जाये तो अंगूर 1 – 2 सप्ताह जल्दी पक सकते हैं.

फल तुड़ाई एवं उत्पादन

अंगूर तोड़ने के पश्चात् पकते नहीं हैं, अतः जब खाने योग्य हो जाये अथवा बाजार में बेचना हो तो उसी समय तोड़ना चाहिए. शर्करा में वृद्धि एवं तथा अम्लता में कमी होना फल पकने के लक्षण हैं. फलों की तुडाई प्रातः काल या सायंकाल में करनी चाहिए. उचित कीमत लेने के लिए गुच्छों का वर्गीकरण करें. पैकिंग के पूर्व गुच्छों से टूटे एवं गले सड़े दानों को निकाल दें. अंगूर के अच्छे रख – रखाव वाले बाग़ से तीन वर्ष पश्चात् फल मिलना शुरू हो जाते हैं और 2 – 3 दशक तक फल प्राप्त किये जा सकते हैं. परलेट किस्म के 14 – 15 साल के बगीचे से 30 – 35 टन एवं पूसा सीडलेस से 15 – 20 टन प्रति हैक्टेयर फल लिया जा सकता है.

Q : एक दिन में कितने लाल अंगूर खाए जा सकते हैं?

Ans : एक दिन में एक कप लाल अंगूर खाना सेहत के लिए फायदेमंद हो सकता है। लेकिन, ध्यान रहे कि इसकी मात्रा उम्र और सेहत के हिसाब से अलग-अलग हो सकती है

Q : क्या खाली पेट लाल अंगूर खाना ज्यादा फायदेमंद है?

Ans : खाली पेट लाल अंगूर खाने के फायदे पर कोई रिसर्च उपलब्ध नहीं हैं। बेहतर होगा खाली पेट इसका सेवन करने के पहले डॉक्टर की सलाह लें।

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