Story behind Raksha Bandhan

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why raksha bandhan is celebrated

रक्षा बंधन के त्यौहार को भाई बहन के रिश्ते से जोड़कर देखा जाता है। कुछ लोगो ने महिलाओ को कमजोर बताते हुए राखी के त्यौहार का मतलब ही बदल दिया है। वह यह तर्क देते है कि बहन भाई के हाथ में राखी बाँध कर अपनी रक्षा का वचन लेती है इसलिए राखी का त्यौहार मनाया जाता है जो पूरी तरह से गलत है नारी को जानबूज कर कमजोर बताया जाता है।

एक महिला होने के नाते में इस तर्क से सहमत नहीं हूँ। इतिहास गवाह है कि झांसी कि रानी लक्ष्मीबाई की तलवार से अंग्रेज भी डर के मैदान छोड़ कर भाग जाते थे रानी को हारने के लिए उन्हें छल का सहारा लेना पड़ा था। 

हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार हजारों साल पहले राखी बांधने का प्रचलन शुरू हुआ था। सबसे पहली राखी या रक्षासूत्र राजा बलि को बाँधी गयी थी। उन्हें मां लक्ष्मी ने रक्षासूत्र बांधकर अपना भाई बनाया था। मां लक्ष्मी ने राजा बलि से उपहार स्वरूप अपने पति भगवान विष्णु को मांग लिया और अपने पति यानी भगवान विष्णु को उनके वचन से मुक्त कराया।  

रक्षासूत्र से राजा बलि को बांध माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु की सहायता की।

राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग को जीतने का प्रयास किया किया तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की वह राजा बलि से स्वर्ग को बचाये।

राजा बलि बहुत बड़े दानी थे वह अपने द्वार से भिक्षुक को खाली हाथ लौटने नहीं देते थे। भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर राजा बलि से भिक्षा में तीन पग जमीन मांगी। भगवान ने दो पग में ही पूरी धरती नाप डाली और फिर तीसरा पग देने के लिए राजा बलि से कहा। इस पर राजा बलि समझ गए कि वामन रूप में दिख रहा यह भिक्षुक कोई साधारण भिक्षुक नहीं है। तीसरे पग के रूप में राजा बलि ने अपना सिर भगवान विष्णु के आगे झुका दिया।

भगवान विष्णु राजा बलि की भक्ती से प्रसन्न हो गए और वरदान मांगने को कहा। तो राजा बलि ने मांगा कि भगवान स्वयं उसके घर में विराजमान रहे। इसके पश्चात भगवान् स्वयं उनके घर में निवास करने लगे। कहा जाता है कि काफी दिन तक भगवान वैकुंठ धाम वापस नहीं पहुंचे तब माता लक्ष्मी ने राजा बलि के पास जाकर उन्हें रक्षासूत्र बांधा और अपना भाई बनाया।

माता लक्ष्मी ने राजा बलि से उपहार स्वरूप अपने पति भगवान विष्णु को अपने साथ वैकुंठ धाम ले जाने की इच्छा जताई तब दानवीर राजा बलि ने भगवान को अपने वचन से मुक्त कर दिया। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी। 

तब से मंदिरो में पूजा के बाद रक्षासूत्र (कलावा) बाँधा जाता है। घर पर की जाने वाले वाली हवन अथवा पूजा के बाद भी रक्षासूत्र जाता है। ब्राह्मण निचे दिए गए मंत्र का उच्चारण करते हुए रक्षासूत्र को बांधते है।  

येन बद्धो बलिराजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामपि बध्नामि रक्षे मा चल मा चल ॥

इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- “जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बाँधता हूँ। हे रक्षे (राखी)! तुम अडिग रहना (तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो।)”

द्रोपदी ने भगवान श्री कृष्ण सहायता की 

कहा जाता है कि शिशुपाल राजा का वध करते समय भगवान श्री कृष्ण के बाएं हाथ से खून बहने लगा, तो द्रोपदी ने तत्काल अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर उनके हाथ की अंगुली पर बांध दिया।

Raksha Bandhan 2020: Shubh Muhurat,Mahasanyog

तभी से भगवान कृष्ण द्रोपदी को अपनी बहन मानने लगे और सालों के बाद जब पांडवों ने द्रोपदी को जुए में हरा दिया और भरी सभा में जब दुशासन द्रोपदी का चीरहरण करने लगा तो भगवान कृष्ण ने भाई का फर्ज निभाते हुए उसकी लाज बचाई थी। 

देवराज इंद्र की पत्नी शचि रक्षासूत्र बांध कर पति सहायता की

बहुत समय पहले की बाद है देवताओं और असुरों में युद्ध छिड़ा हुआ था लगातार 12 साल तक युद्ध चलता रहा और अंतत: असुरों ने देवताओं पर विजय प्राप्त कर देवराज इंद्र के सिंहासन सहित तीनों लोकों को जीत लिया।

इसके बाद इंद्र देवताओं के गुरु, बृहस्पति के पास के गये और सलाह मांगी। बृहस्पति ने इन्हें मंत्रोच्चारण के साथ रक्षा विधान करने को कहा। श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन गुरू बृहस्पति ने रक्षा विधान संस्कार आरंभ किया।

इस रक्षा विधान के दौरान मंत्रोच्चारण से रक्षा पोटली को मजबूत किया गया। पूजा के बाद इस पोटली को देवराज इंद्र की पत्नी शचि जिन्हें इंद्राणी भी कहा जाता है ने इस रक्षा पोटली के देवराज इंद्र के दाहिने हाथ पर बांधा। इसकी ताकत से ही देवराज इंद्र असुरों को हराने और अपना खोया राज्य वापस पाने में कामयाब हुए।

सारांश

रक्षा बंधन के इस पवित्र त्यौहार को मनाते हुए भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देते हो तो बहन भी अपने भाई को उसकी रक्षा का वचन देती है । जब भी दोनों पर कोई विपत्ति आती है तो वह एक दूसरे की सहयता के लिए हमेसा तत्पर रहते है। 

जो हमको इतिहास में पढ़ाया जा रहा है उन रानी कर्मावती जी की जोहर की कहानी आपसे छुपाई जाती है और महिलाओ को अबला बताया जाता है। मेरा प्रयास आप को सचाई से अवगत करवाना था। आपको मेरा यह पोस्ट कैसा लगा जरूर कमेंट कर बताये।

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