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Super blue moon : सुपर मून (Super Moon) तब होता है जब चंद्रमा और धरती के बीच में दूरी सबसे कम हो जाती है. इससे पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के बीच में आ जाती है, जिसके बाद चांद की चमक काफी ज्यादा होती है और दूसरी तरफ जब चंद्रग्रहण के दौरान चंद्रमा सुर्ख लाला हो जाता है तो को ब्लड मून (Blood Moon) कहलाता है. आइये इस लेख के माध्यम से Super Blue Blood Moon के बारे में अध्ययन करते हैं.

क्या आप जानते हैं कि “ब्लू मून” (Blue Moon) शब्द का उपयोग कब किया जाता है?

जब पूर्णिमा एक महीने में दो बार आती है और चांद पूरा निकलता है, लगभग 28 दिनों से कम समय में ऐसा होता है क्योंकि चन्द्रमा पृथ्वी की चारो और चक्कर लगाने में लगभग 27 दिन लेता है. इसलिए, हम कह सकते हैं कि हर तीन साल में अधिकतर ब्लू मून देखने को मिलता है. ब्लड मून की विशेषताओं पर चर्चा करने से पहले, हम ग्रहण क्या होता है पर अध्ययन करेंगे?

30 अगस्त 2023 को आसमान में चांद रोजाना की तुलना में थोड़ा बड़ा और चमकीला नजर आएगा. अगस्त महीने में दो पूर्णिमा होने की वजह से ब्लू मून (Blue Moon) दिखेगा. पहली पूर्णिमा 1 अगस्त को थी और दूसरी पूर्णिमा 30 अगस्त को होगी. इस खगोलीय घटना को पूरी दुनिया देखेगी. इस दिन चांद का साइज प्रतिदिन की तुलना में 14 प्रतिशत ज्यादा बड़ा होगा. यह नजारा हर 2 या 3 साल में देखने को मिलता है. ऐसे में हर कोई इस घटना को अपनी आंखों में कैद करना चाहेगा.

ब्लू मून कब निकलेगा और इसको कैसे देखना है? इससे पहले यह जान लें कि बूल मून होता क्या है.

अंतरिक्ष में कुछ खगोलीय घटनाओं के कारण न्यू मून, फुल मून, सुपर मून और ब्लू मून हमें आसमान में नजर आते हैं. ब्लू मून भी ऐसी ही एक खगोलीय घटना है, जो हर 2 से 3 साल में देखने को मिलती है. जब एक महीने में दो फुल मून निकलते हैं तो दूसरे वाले फुल मून को ब्लू मून (Blue Moon) कहा जाता है. यह साइज में तो थोड़ा बड़ा होता ही है,

साथ में इसका कलर भी थोड़ा सा अलग होता है. अगर किसी साल के दो या दो से अधिक महीने में दो पूर्णिमा हों तो उस साल को मून ईयर कहते हैं. ऐसी घटना साल 2018 में देखने को मिली थी. यह मून ईयर था क्योंकि इस साल के जनवरी और मार्च महीने में दो-दो पूर्णिमा थीं.

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हर 2 या 3 साल में क्यों होता है ब्लू मून?

चंद्रमा 29.53 दिन में पृथ्वी का एक पूरा चक्कार लगाता है. एक साल में 365 दिन होते हैं. इस हिसाब से चांद एक साल में पृथ्वी के 12.27 चक्कर लगाता है. पृथ्वी पर एक साल में 12 महीने होते हैं और हर महीने एक पूर्णिमा होता है. इस तरह हर कैलंडर ईयर में चांद के पृथ्वी की 12 बार पूर्ण परिक्रमा करने के बाद भी 11 दिन ज्यादा होते हैं

और हर साल इन अतिरिक्त दिनों को जोड़ा जाए तो दो साल में यह संख्या 22 और तीन साल में 33 होती है. इस वजह से हर 2 या 3 साल में एक स्थिति बनती है, जिसमें एक अतिरिक्त पूर्णिमा पड़ती है. इसी स्थिति को ब्लू मून कहा जाता है. 30 अगस्त को निकलने वाला ब्लू मून साल का सबसे बड़ा और सबसे चमकीला चांद होगा.

क्या नजर आएगा नीले रंग का चंद्रमा?

ब्लू का मतलब यह नहीं है कि चांद नीला (Blood Moon) नजर आएगा, लेकिन कभी-कभी वायुमंडलीय घटनाओं के कारण चांद का रंग नीला दिख सकता है. हालांकि, हर ब्लू मून नीला नजर आए ऐसा जरूरी नहीं है. नैचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के साथ बातचीत में साइंटिस्ट मार्टिन मेंगलन ने बताया कि जो रोशनी हम देखते हैं वह सूर्ज से परिवर्तित सफेद रोशनी होती है इसलिए अगर रास्ते में कोई चीज हो जो लाल रोशनी को रोकती है तो कभी-कभी चांद नीला भी दिखाई दे सकता है. ऐसा ज्लावामुखी विस्फोट के बाद हो सकता है.

कहां देख सकेंगे ब्लू मून?

सूरज ढलने के तुरंत बाद ब्लू मून देखने की सलाह दी जाती है उस वक्त यह बेहद खूबसूरत दिखता है. इस बार जिस वक्त ब्लू मून निकलेगा उस वक्त भारत में दिन होगा. यह अमेरिका में दिखेगा इसलिए भारतीय फोन पर ब्लू मून का दीदार कर सकते हैं. 30 अगस्त की रात को 8 बजकर 37 मिनट (EDT) पर ब्लू मून सबसे ज्यादा चमकदार होगा. यह नजारा वाकई दिलचस्प होगा क्योंकि इसके बाद तीन साल बाद 2026 में ब्लू मून देखा जा सकेगा.

चंद्रमा को सुपर मून (Super Moon) कब कहा जाता है?

एक सुपर मून (Super Moon) तब होता है जब चंद्रमा और धरती के बीच में दूरी सबसे कम हो जाती है. इसके साथ ही पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के बीच में आ जाती है, जिसके बाद चांद की चमक काफी ज्यादा होती है. क्या आप जानते हैं कि ऐसी स्थिती में चांद लगभग 14 फीसदी बड़ा और 30 फीसदी तक ज्यादा चमकीला दिखता है.

ब्लू मून (Blue Moon) क्या होता है?

जब चंद्रग्रहण पर पूर्ण चंद्रमा दिखता है तो चांद की निचली सतह से नीले रंग की रोशनी बिखरती है और तब चन्द्रमा को ब्लू मून (Blue Moon) कहते है.

चंद्रमा लाल क्यों हो जाता है या इसे ब्लड मून (Blood Moon) के रूप में क्यों जाना जाता है?

जैसा कि हम जानते हैं कि पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा चक्कर लगाता है और सूर्य के चारों ओर पृथ्वी. चंद्रमा पृथ्वी के चारो और घुमने में लगभग 27 दिन का समय लेता है. इस दौरान सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी की सापेक्ष स्थिति बदलती है.

चंद्रग्रहण के दौरान चंद्रमा का सुर्ख लाला हो जाने को ब्लड मून (Blood Moon) कहते हैं. ऐसा कब होता है? जब पृथ्वी की छाया पूरे चांद को ढक देती है उसके बाद भी सूर्य की कुछ किरणें चंद्रमा तक पहुंचती हैं. लेकिन चांद तक पहुंचने के लिए उन्हें धरती के वायुमंडल से गुजरना पड़ता है. इसके कारण सूर्य की किरणें बिखर जाती हैं.

पृथ्वी के वायुमंडल से बिखर कर जब किरणें चांद की सतह पर पड़ती हैं तो सतह पर एक लालिमा बिखेर देती हैं. जिससे चांद लाल रंग का दिखने लगता है. क्या आप जानते हैं कि नासा के अनुसार हर साल मोटे तौर पर दो या चार चंद्र ग्रहण होते हैं और प्रत्येक पृथ्वी से लगभग आधा दिखाई देते हैं?

तो अब आपको ज्ञात हो गया होगा कि सुपर मून, ब्लू मून और ब्लड मून क्या होते हैं और कैसे होते हैं.

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