Swami Vivekananda

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स्वामी विवेकानंद आध्यात्मिक धर्म पुरुष

1902 में 4 जुलाई को पश्चिम बंगाल के बेलूर मठ में स्वामी विवेकानंद (Swami Vivekananda) का ध्यान-मुद्रा में निधन हो गया था, तब स्वामी विवेकानंद मात्र 39 वर्ष के थे। उनके शिष्यों का मानना था, कि स्वामी विवेकानंद महासमाधि की अवस्था को प्राप्त कर लिया है।

स्वामी विवेकानंद ने भारतीय वेद, योग और अध्यात्म को देश-विदेश में पहुंचाया और हिंदू धर्म का पूरी दुनिया में प्रचार-प्रसार किया।

स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी सन् 1863 को कोलकाता में  हुआ था। उनके बचपन का का नाम वीरेश्वर रखा गया किन्तु उनका औपचारिक नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। इनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था जो की कलकत्ता हाईकोर्ट के एक प्रसिद्ध वकील थे। और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारों की महिला थीं। भुवनेश्वरी देवी का ज्यादा समय भगवान शिव की पूजा-अर्चना में व्यतीत होता था। 

स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस ।

Sri Ramakrishna Paramahansa

स्वामी विवेकानंद भारत की उन महान विभूतियों में से थे, जिन्होंने देश और दुनिया को मानवता के कल्याण का मार्ग दिखाया। उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी निरंतर अपना काम कर रहा है। स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे।

अपने गुरु रामकृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानंद ने समस्त भारतीय उपमहाद्वीप का दौरा किया और उस समय ब्रिटिश भारत में जो स्थितिया थी। उनका प्रत्यक्ष ज्ञान हासिल किया। बाद में उन्होंने विश्व धर्म संसद 1893 में भारत का प्रतिनिधित्व करने के लियु संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए प्रस्थान किया।

विवेकानंद ने संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू दर्शन के सिद्धांतों का प्रसार किया और कई सार्वजनिक और निजी व्याख्यानों का आयोजन किया।

कहा जाता हे की एक बार स्वामी विवेकानंद को एक भाषण के लिए सिर्फ 2 मिनट का समय दिया गया था

11 सितंबर, 1893 को शिकागो, अमेरिका के विश्वधर्म सम्मेलन सभा में उन्होंने भाषण की सुरुवात “मेरे अमरीकी भाइयो एवं बहनो” शब्द से की थी जिसके बाद सभागार में कई मिनटों तक तालियों की गूंज हर तरफ गूंजती रही। और उनके संबोधन के इस प्रथम वाक्य ने सबका दिल जीत लिया था। साथ ही भारत को पूरी दुनिया इसके बाद आध्यात्म के केंद्र के तौर पर भी देखने लगी. 

नारी सम्मान

नारी सम्मान के बारे में स्वामी विवेकानंद विषय में एक कहानी बहुत प्रचलित है।
एक बार कि बात है। विवेकानंद जी समारोह के लिए विदेश गए थे। और उनके समारोह में बहुत से विदेशी लोग आये हुए थे।

उनके द्वारा दिए गए स्पीच से एक विदेशी महिला बहुत प्रभावित हुईं। और वह विवेकानंद जी के पास आयी और स्वामी विवेकानंद से बोली कि मैं आपसे शादी करना चाहती हुँ ताकि मुझे आप जैसा गौरवशाली पुत्र की प्राप्ति हो।

इसपर स्वामी विवेकानंद जी बोले कि क्या आप जानती है। कि ” मै एक सन्यासी हूँ ” भला मै कैसे शादी कर सकता हूँ अगर आप चाहो तो मुझे आप अपना पुत्र बना लो। इससे मेरा सन्यास भी नही टूटेगा और आपको मेरे जैसा पुत्र भी मिल जाएगा। यह बात सुनते ही वह विदेशी महिला स्वामी विवेकानंद जी के चरणों में गिर पड़ी और बोली कि आप धन्य है। आप ईश्वर के समान है ! जो किसी भी परिस्थिति में अपने धर्म के मार्ग से विचलित नहीं होते है।

स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन

  • उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता।
  • हर आत्मा ईश्वर से जुड़ी है, करना ये है कि हम इसकी दिव्यता को पहचाने अपने आप को अंदर या बाहर से सुधारकर। कर्म, पूजा, अंतर मन या जीवन दर्शन इनमें से किसी एक या सब से ऐसा किया जा सकता है और फिर अपने आपको खोल दें। यही सभी धर्मो का सारांश है। मंदिर, परंपराएं , किताबें या पढ़ाई ये सब इससे कम महत्वपूर्ण है।
  • एक विचार लें और इसे ही अपनी जिंदगी का एकमात्र विचार बना लें। इसी विचार के बारे में सोचे, सपना देखे और इसी विचार पर जिएं। आपके मस्तिष्क , दिमाग और रगों में यही एक विचार भर जाए। यही सफलता का रास्ता है। इसी तरह से बड़े बड़े आध्यात्मिक धर्म पुरुष बनते हैं।
  • एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकि सब कुछ भूल जाओ
  • पहले हर अच्छी बात का मजाक बनता है फिर विरोध होता है और फिर उसे स्वीकार लिया जाता है।
  • एक अच्छे चरित्र का निर्माण हजारो बार ठोकर खाने के बाद ही होता है।
  • जीवन में ज्यादा रिश्ते होना जरुरी नहीं लेकिन रिश्तो में जीवन होना बहुत जरुरी है।

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