स्वाद और खुशबू का खजाना एक चुटकी जखिया
काली-भूरी रंगत वाले जखिया या जख्या के दाने सरसों और राई के हमशक्ल होते हैं। जितना मैदानी इलाकों में जीरे का महत्व है उतना ही पहाड़ी रसोईयो में जाखिये का महत्व है।
कुछ वर्षों में चिकित्सा अनुसंधानों में ऐसा भी सामने आया है
।
कि
जखिया का तेल
(Wild mustard oil)
दिमागी बीमारियों को ठीक करने में उपयोगी साबित हो सकता है
।
जखिया
(Wild mustard)
की लोकप्रियता तो बढ़ रही है, लेकिन पहाड़ो में हो रहे पलायन के कारण इसकी पैदावार में कमी आ रही है। लेकिन जाखिये की खेती की जाये तो यह एक फायदे का सोदा होगा।
एक अध्ययन के अनुसार ऐसी लगभग 124 प्रकार की वनस्पतियां है जिनका प्रयोग पर्वतीय क्षेत्र वैद्य पारंपरिक चिकित्सा में करते हैं।अगर किसी को चोट लग जाती है । तो घाव को भरने के लिए उस पर जखिया (Wild mustard) के पत्तों का लेप बनाकर लगाया जाता है। इस प्रकार यह एक बेहतरीन फर्स्ट ऐड का काम भी करता है ।
जखिया
(Wild mustard)
न केवल तड़के व नमक के घटक द्रव्य के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, बल्कि इसकी औषधीय महता भी काफी है
।
आयुर्वेद में जखिया को बुखार, खांसी, जलन, हैजा आदि बीमारियों के लिए उपयोगी औषधि बताया गया है
।
जीरा राइस की तरह जखिया में फ्राई किए चावलों की इस डिश का रेस्टोरेंट में आने वाला हर तीसरा ग्राहक ऑर्डर करता है
।
उधर, उत्तराखंड से शेफ की नौकरी करने गए युवाओं ने जाखिये को विदेश में भी लोकप्रिय बना दिया है
।
विदेश में कई रेस्टोरेंट ने जखिया राइस को अपने इंडियन कुजिन सेक्शन में प्रमुखता से दर्ज किया हुआ है
।
जाखिये
(Wild mustard)
की खेती में सबसे अच्छी बात यह है
।
कि यह खेती जानवरों के प्रकोप से मुक्त, कम मेहनत, बिना किसी खाद-पानी व कीटनाशक के इस्तेमाल के दुनिया में कोई फसल इतने अधिक दाम नहीं दे सकती
।