शरणार्थी दिवस (World Refugee Day) वर्ल्ड रिफ्यूजी डे
हमारे देश समेत दूसरे देशों में कई ऐसे लोग हैं जो दूसरे देश से या राज्य से अपनी जान बचाकर भागे. इनके पास ना रहने को घर होता है और ना ही जीवन जीने के साधन.ऐसे लोगों को शरणार्थी कहा जाता है.
शरणार्थी दिवस (World Refugee Day) वर्ल्ड रिफ्यूजी डे
पूरे विश्व में 20 जून शरणार्थी दिवस (World Refugee Day) वर्ल्ड रिफ्यूजी डे के तौर पर मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र शरणार्थियों के साहस को सम्मानित करने के लिए इस दिन को मनाता है
शरणार्थी दिवस (World Refugee Day) वर्ल्ड रिफ्यूजी डे
रिफ्यूजी (Refugee) या शरणार्थी उन्हें कहा जाता है जिन्हें युद्ध, प्रताड़ना, आपदा, बाढ़, संघर्ष, महामारी, पलायन, हिंसा इन सबमें से किसी भी वजह से एक जगह को छोड़कर दूसरी जगह पर जाने को मजबूर होना पड़ता है
शरणार्थी दिवस (World Refugee Day) वर्ल्ड रिफ्यूजी डे
शरणार्थियों के साहस और शक्ति को सम्मानित करने के लिए दुनिया भर में 20 जून का दिन वर्ल्ड रिफ्यूजी डे के रूप में मनाया जाता है.वर्ल्ड रिफ्यूजी डे पिछले 22 सालों से मनाया जा रहा है.
शरणार्थी दिवस (World Refugee Day) वर्ल्ड रिफ्यूजी डे
यह दिन सबसे पहले 20 जून 2001 को मनाया गया था. इस दिन का जश्न 1991 की रिफ्यूजी समझौते की 50 वीं वर्षगांठ पर मनाया गया था. ऐसे में 2001 के बाद से हर साल 20 जून को वर्ल्ड रिफ्यूजी डे मनाया जाने लगा.
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संयुक्त राष्ट्र में
World Refugee Day
के लिए एक संस्था भी बनाई गई है. इस संस्था का नाम
United Nations High Commissioner for Refugees
(UNHCR) है.
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यह संस्था विश्वभर के शरणार्थियों के मदद के लिए काम करती है. हर साल वर्ल्ड रिफ्यूजी डे मनाने का मकसद शरणार्थियों को विश्व में पहचान दिलवाना है. साथ ही इनकी मदद के लिए राजनैतिक इच्छा जगाने के लिए प्रेरित करना है.
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हर साल वर्ल्ड म्यूजिक डे की थीम तय की जाती है इस साल की थीम है जो भी कहीं भी और जब भी मौजूद हो उसे सुरक्षा मांगने का अधिकार है. “Whoever. Wherever. Whenever. Everyone has the right to seek safety.
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यूएनएचआरसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में कुल तीन लाख शरणार्थी रहते हैं। इनमें सबसे ज्यादा चर्चा में रोहिंग्या मुसलमान हैं। बता दें कि देश में करीब 40,000 रोहिंग्या हैं
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सयुंक्त राष्ट्र की शरणार्थी सम्मलेन 1951 के अनुसार एक शरणार्थी वह है जो अपनी जाति, धर्म, किसी विशेष सामाजिक समूह में सदस्यता या राजनितिक विचारों के लिए उत्पीड़न के भय के कारण अपने घर और देश छोड़कर भाग गया हो.
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शरणार्थी सम्मलेन 1951 और इसके 1967 के प्रोटोकॉल से विश्व भर के शरणार्थियों को काफी हद तक मदद मिली है. यह विश्व में केवल कानूनी उपकरण है जो शरणार्थियों के जीवन के पहलुओं को स्पष्ट रूप से कवर करता है