कौन हैं यति नरसिंहानंद सरस्वती डासना पीठ के महंत जिन्होंने वामपंथी मीडिया की नाक में दम कर रखा है

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कौन हैं यति नरसिंहानंद सरस्वती डासना पीठ के महंत जिन्होंने वामपंथी मीडिया की नाक में दम कर रखा है
कौन हैं यति नरसिंहानंद सरस्वती डासना पीठ के महंत जिन्होंने वामपंथी मीडिया की नाक में दम कर रखा है

वो ‘अखिल भारतीय संत परिषद्’ के अध्यक्ष हैं और साथ ही ‘हिन्दू स्वाभिमान’ नामक संस्था भी चलाते हैं। हिन्दू युवाओं और बच्चों को आत्मरक्षा के प्रशिक्षण के लिए ‘धर्म सेना’ का भी गठन उन्होंने किया। वो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ‘कर्मयोगी’ मानते हैं और कहते हैं कि उन्होंने उत्तर प्रदेश को इस्लामी नरसंहार से बचा लिया।

लिबरल गिरोह उनसे परेशान है। वामपंथी मीडिया उन्हें हिन्दुओं की सबसे ‘कर्कश आवाज़’ कहता है। हाल ही में गाजियाबाद के डासना में एक नाबालिग लड़के आसिफ की पिटाई हुई, जिसके बाद दावा किया गया कि वो मंदिर में पानी पीने गया था। हालाँकि, एक व्यक्ति ने इस पूरे नैरेटिव पर तथ्यों से तगड़ा प्रहार किया। डासना में जब जात-पात या आस-पड़ोस की लड़ाई होती है तो एक ही व्यक्ति का समझौता अंतिम माना जाता है, यति नरसिंहानंद सरस्वती का।

53 वर्षीय यति नरसिंहानंद सरस्वती (Yati Narasimhanand Saraswati) यूँ तो डासना देवी मंदिर के महंत हैं, लेकिन इलाके में हिन्दुओं के लिए अघोषित सरपंच भी। बंदूकों के साए में रहना उनकी मजबूरी भी है क्योंकि उन्हें जान से मारने की धमकियाँ कई वर्षों से मिल रही हैं। जब लखनऊ में कमलेश तिवारी की इस्लामी कट्टरपंथियों ने हत्या कर दी थी, तो पीड़ित परिवार के पक्ष में उनकी आवाज़ उठी थी। उन्होंने भारत से ‘इस्लाम के सफाए’ की बात की थी।

यति नरसिंहानंद सरस्वती (Yati Narasimhanand Saraswati) रूस से शिक्षित हैं और मॉस्को व लंदन जैसे दुनिया के सबसे बड़े शहरों में कार्य करने के अनुभव उनके पास है। कहा जाता है कि वो कभी समाजवादी पार्टी के नेता हुआ करते थे। सांप्रदायिक दंगे, अपनी सेना का गठन, हेट स्पीच और आर्म्स एक्ट के उन पर आधा दर्जन से भी अधिक केस दर्ज हैं। उन्होंने आतंकी संगठन ISIS के खिलाफ सेना बनाने का ऐलान किया था। वो इस्लाम को धरती से हटाने की बातें करते हैं।

गाजियाबाद के लोग दबी जुबान से कहते हैं कि पुलिस-प्रशासन कई वर्षों से यति नरसिंहानंद सरस्वती व उनके क्रियाकलापों की निगरानी कर रहा है क्योंकि सत्ता की नजर में वो ऐसे व्यक्ति रहे हैं जो कभी भी बड़ी समस्या खड़ा कर सकता है। डासना जैसे मुस्लिम बहुल माने जाने वाले इलाके में किसी हिन्दू महंत का यूँ टिकना सचमुच एक बड़ी कहानी कहता है। वहाँ उनकी अपनी पंचायत लगती है। वो अपनी बैठकें बुलाते हैं।

मुस्लिमों द्वारा जनसंख्या बढ़ाने की साजिशों की बात करते हुए वो अक्सर ऐसे कई भाषण देते हैं, जिसे वहाँ का हिन्दू समाज सुनता भी है। जाति की बात करें तो वो ‘त्यागी’ समुदाय से आते हैं।

आपको दिल्ली के ध्रुव त्यागी याद होंगे, जिन्हें अपनी बेटी से छेड़खानी के विरोध की ‘सजा’ मौत के रूप में भुगतनी पड़ी थी। उनकी हत्या के बाद भी महंत यति सरस्वती ने पंचायत बुलाई थी। जब दो हिन्दू समुदाय (यादव और गुर्जर) आपस में लड़ रहे थे, तब उन्होंने ही बीच-बचाव कर समझौता कराया।

दरअसल, यादवों और गुर्जरों के बीच संघर्ष एक रोड रेज की घटना के बाद चालू हुआ था। उस तनाव के कारण जब स्थिति नियंत्रण से बाहर होती जा रही थी, तब यति नरसिंहानंद सरस्वती (Yati Narasimhanand Saraswati) ने आगे आकर शांति स्थापित करने के लिए पहल किया।

उन्होंने दोनों समुदायों को समझाया था कि वे एक ही माँ के दो हाथ हैं, इसीलिए लड़ना बंद करें। उन्होंने दोनों समुदायों के लोगों को बताया कि कैसे हिन्दुओं की आपसी लड़ाई का फायदा हिंदुत्व-विरोधी ताक़तों को मिलता रहा है।

तब पुलिस ने उनकी गिरफ़्तारी के लिए वॉरंट भी प्राप्त कर लिया था, लेकिन वो इलाहबाद हाईकोर्ट से स्टे ऑर्डर लेने में कामयाब रहे। उनके ही शब्दों में, उन्होंने तत्कालीन ‘मॉस्को इंस्टिट्यूट ऑफ केमिकल मशीन बिल्डिंग’ से मास्टर्स की डिग्री ली है। इसके बाद उन्होंने बतौर इंजिनियर कार्य किया और मार्केटिंग टीम्स का नेतृत्व किया। विदेश में करीब एक दशक गुजारने के बाद वो 1997 में भारत लौटे।

राजनीति का माहौल उन्हें घर में ही मिला। उनके पिता रक्षा मंत्रालय में कार्यरत थे, लेकिन आज़ादी से पहले वो कॉन्ग्रेस के नेता हुआ करते थे। कुछ बड़ा करने के लिए खुद का जन्म हुआ मानने वाले यति नरसिंहानंद सरस्वती (Yati Narasimhanand Saraswati) ने भीड़ राजनीति में हाथ आजमाने की सोची। भारत लौट कर वो गणित पढ़ाने लगे थे। उनका कहना है कि उन्होंने 1992 में ‘ऑल यूरोप ओलम्पियाड’ में गणित से विजेता घोषित किया गया, इसीलिए गणित उनकी मजबूती है।

यति नरसिंहानंद सरस्वती (Yati Narasimhanand Saraswati) ने कुछ यूँ धोया ‘The Quint’ को

उन्होंने एक बार बताया था कि उन्हें तभी सपा के यूथ विंग से ऑफर मिला, जिसके बाद वो पार्टी में शामिल हो गए। 1991 में सांसद बने भाजपा नेता बैकुंठ लाल वर्मा उर्फ़ प्रेम ने उन्हें आगे बढ़ाया और इस्लामी क्रूरता की कहानियाँ सुनाईं। उनका यूट्यूब पेज भी है,

जिस पर उनके भाषण अपलोड होते हैं। फेसबुक और ट्विटर पर भी वो सक्रिय हैं। कई स्थानीय हिन्दुओं के इलाज में भी उन्होंने मदद की है। उनका सपना ‘इस्लाम मुक्त भारत’ का है। उनके शिष्य उन्हें ‘धर्मयोद्धा’ भी कहते हैं।

यति नरसिंहानंद सरस्वती (Yati Narasimhanand Saraswati) ‘अखिल भारतीय संत परिषद्’ के अध्यक्ष हैं और साथ ही ‘हिन्दू स्वाभिमान’ नामक संस्था भी चलाते हैं। हिन्दू युवाओं और बच्चों को आत्मरक्षा के प्रशिक्षण के लिए ‘धर्म सेना’ का भी गठन उन्होंने किया।

वो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को ‘कर्मयोगी’ मानते हैं और कहते हैं कि उन्होंने उत्तर प्रदेश को इस्लामी नरसंहार से बचा लिया। 3 वर्ष पहले गुरुग्राम में खुले में नमाज के विरोध में मुख्यमंत्री आवास के सामने वो अग्नि समाधि लेने पहुँचे थे, लेकिन उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था।

आसिफ वाली घटना पर भी उन्होंने पूछा कि जब मंदिर के बाहर नल है, सड़क पार करने पर नल है और पास ही स्थित पंचायत भवन में पानी पीने की सार्वजनिक व्यवस्था है, फिर भी वो लड़का मंदिर के भीतर पानी पीने क्यों आया? उन्होंने जानकारी दी कि उनके महंत रहते इस मंदिर में 4 बार डकैती की घटनाएँ हो चुकी हैं। उन्होंने ‘The Quint’ वालों से पूछा कि क्या उन डकैतियों के वक़्त वो लोग यहाँ इंटरव्यू लेने आए?

news by : opindia

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