पितृ पक्ष (श्राद्ध पक्ष) क्यों मनाया जाता है ? इसका क्या महत्व है ?
ऐसी मान्यता है कि पितृ पक्ष (pitra paksha) में हमारे पूर्वज पृथवी पर आते है, इसलिए पितृ पक्ष में दान, तर्पण और श्राद्ध करने का विधान है। कहा जाता है कि ऐसा करने से पितर प्रसन्न होते हैं
पितृ पक्ष (pitra paksha)को श्राद्ध पक्ष के नाम से भी जाना जाता है जिसका आरंभ भाद्रपद पूर्णिमा से होता है हिन्दू पंचांग के अनुसार इसे पूर्णिमा श्राद्ध कहा जाता है ।
पूर्णिमा के बाद एकादशी, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या श्राद्ध आता है।
इन तिथियों में पूर्णिमा श्राद्ध, पंचमी, एकादशी और सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध प्रमुख माना जाता है। श्राद्ध पक्ष 2 सितंबर से प्रारंभ हो गए है जो 17 सितंबर को समाप्त होंगे ।
पितृ पक्ष (श्राद्ध पक्ष) क्यों मनाया जाता है ? इसका क्या महत्व है ?
हमारे सनातन परंपरा में श्राद्ध पक्ष का बड़ा महत्व है। श्राद्ध का अर्थ होता है, श्रद्धा अर्थात लोगो के द्वारा पितृ पक्ष (pitra paksha) में अपने पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता अभिव्यक्त करने तथा अपने पितरों को याद करने का एक तरीका है श्राद्ध।
इसके पीछे मान्यता है कि हमारे पूजनीय पूर्वजों के कारण ही आज हमारा अस्तित्व हैं, हमारे पूर्वजों के सतकर्मों, कौशल, गुण एवं गोत्र आदि हमें उनसे विरासत में मिलें हैं, यह उनका हम पर न चुकाए जाने वाला ऋण हैं।
पितृ पक्ष का महत्व क्या है ? सबसे पहले पितरो का श्राद्ध कर उन्हें मुक्ति किसने दिलाई तथा श्राद्ध का इतिहास ?
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, श्राद्ध का वर्णन महाभारत काल से मिलता है। यहाँ पर भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध के बारे में बताया था। उन्होंने ही यह बताया था कि श्राद्ध की परंपरा कैसे आरंभ हुई।
महाभारत के अनुसार, सबसे पहले महान तपस्वी अत्रि ने महर्षि निमि को श्राद्ध के बारे में उपदेश दिया था। तब महर्षि निमि ने उनके उपदेशानुसार अपने पितरों के निमित्त श्राद्ध प्रारंभ किया। इसी प्रकार महर्षि निमि को देखकर अन्य मुनियों ने भी ऐसा करना शुरू किया।
श्राद्ध में देवता एवं पितर दोनों ही अपना मान-सम्मान, तरह-तरह के पकवान एवं श्रद्धा भाव देखकर तृप्त हो गए। श्राद्ध में मिल रहे लगातार भोजन से देवताओं और पितरों को अजीर्ण रोग हो गया
और उन्हें परेशानी होने लगी। ऐसे में वे अपनी इस समस्या का हल खोजने ब्रह्मा जी की शरण में पहुंच गए। देवताओं और पितरों की समस्या को सुनकर ब्रह्मा जी ने बताया कि अग्निदेव आपकी इस समस्या का समाधान करेंगे।
अग्निदेव ने देवताओं और पितरों से कहा, “अब श्राद्ध में हम सभी साथ में भोजन किया करेंगे। मेरे पास रहने से आपका अजीर्ण भी दूर हो जाएगा।” यह सुनकर सभी लोग प्रसन्न हुए। इस प्रकार श्राद्ध का भोजन पहले अग्निदेव को चढ़ाया जाता है। उसके बाद देवताओं और पितरों को दिया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार, हवन में जो पितरों के लिए पिंडदान दिया जाता है। उसे ब्रह्मराक्षस भी दूषित नहीं करते हैं। इसलिए श्राद्ध में अग्निदेव को देखकर राक्षस भी वहां से चले जाते हैं। अग्नि से प्रत्येक चीज पवित्र हो जाती है।
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष (pitra paksha) का विशेष महत्व माना जाता है. हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद मृत व्यक्ति का श्राद्ध किया जाना बेहत जरूरी माना जाता है. माना जाता है।कि यदि श्राद्ध न किया जाए तो मरने वाले व्यक्ति की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती है। तथा ये भी कहा जाता है,
कि पितृ पक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध करने से वो प्रसन्न हो जाते हैं ।और उनकी आत्मा को शांति मिलती है। ये भी माना जाता है कि पितृ पक्ष में यमराज पितरो को अपने परिजनों से मिलने के लिए मुक्त कर देते हैं। इस दौरान अगर पितरों का श्राद्ध न किया जाए तो उनकी आत्मा दुखी व नाराज हो जाती है।
पितृ पूजा की प्रथा बहुत प्राचीन है। यह प्रथा वैदिक काल से चली आ रही है। विभिन्न देवी देवताओं को संबोधित करने वाली वैदिक ऋचाओं में अनेक पितरों तथा मृत्यु की प्रशस्ति में गाई गई हैं।
पितरों से आह्वान किया जाता है, कि वे पूजकों को धन, समृद्धि एवं शक्ति प्रदान करें। पितरों की आराधना में लिखे गए ऋग्वेद की एक लंबी ऋचा में यम तथा वरुण का भी उल्लेख मिलता है. पितरों का विभाजन वर, अवर और मध्यम वर्गों में किया गया है। इस वर्गीकरण का आधार मृत्युक्रम में पितृविशेष का स्थान रहा होगा।
ऋग्वेद के द्वितीय छंद में स्पष्ट उल्लेख है कि सर्वप्रथम और अंतिम दिवंगत पितृ तथा अंतरिक्षवासी पितृ श्रद्धेय हैं। सायण के टीकानुसार श्रोत संस्कार संपन्न करने वाले पितर प्रथम श्रेणी में, स्मृति आदेशों का पालन करने वाले पितर द्वितीय श्रेणी में और इनसे अलग कर्म करने वाले पितर अंतिम श्रेणी में रखे जाने चाहिए ।
अतः अपने पितरो की मुक्ति के लिए तर्पण करवाएं। जिसके लिए दिवंगत व्यक्ति की तस्वीर को सामने रखें। उन्हें चन्दन की माला अर्पित करें और सफेद चन्दन का तिलक करें। इस दिन पितरों को खीर अर्पित करें।
अपने पितरों के निमित तीन पिंड बना कर आहुति दें। इसके पश्चात, कौआ, गाय और कुत्तों को प्रसाद खिलाएं। ततपश्चात ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और स्वयं भी भोजन करें।