story of devi tulsi and lord vishnu | Goddess Tulsi and Vishnu | Goddess Tulsi and Ram | श्री राम और तुलसी का रिश्ता क्या है
श्री राम और तुलसी का रिश्ता क्या है | story of devi tulsi and lord vishnu | Goddess Tulsi and Vishn | Goddess Tulsi and Ram
story of devi tulsi and lord vishnu : ठाकुर जी को लगने वाले भोग और प्रसाद में एक सामाग्री सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है, और वह है तुलसी दल। मतलब तुलसी के पौधे की चंद पत्तियां। धार्मिक पूजा और अनुष्ठान में भगवान विष्णु के अवतार प्रभु राम तब तक भोग ग्रहण नहीं करते जब तक उसमें तुलसी दल न मौजूद हो। आखिर भगवान श्रीराम का तुलसी से क्या रिश्ता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है।
राक्षस परिवार में एक कन्या ने जन्म लिया, नाम था वृंदा। जो बचपन से ही धार्मिक विचारधारा की रही और भगवान विष्णु की भक्त बनकर उनकी पूजा करती रही। जवान होते ही उसकी शादी राक्षस परिवार में दानव राज जलंधर से कर दी गई। वह पतिव्रता थी, और अपने पति के जीवन के लिए भगवान से प्रार्थना करती रहती।
हालांकि दानव राज जलंधर बहुत ही क्रूर प्रवृत्ति का था और देवताओं को सताने में पीछे नही रहता। एक बार तो उसने सीधे देवताओं से युद्ध शुरू कर दिया। उस समय उसकी पतिव्रता पत्नी वृंदा उसकी रक्षा के लिए घर पर पूजा कर रही थी। इस बीच जलंधर को हराना देवताओं के लिए तब तक कठिन था,
जब तक वृंदा पूजा कर रही थी। देवतागण भगवान विष्णु (story of devi tulsi and lord vishnu) के पास विनती करने लगे कि वे वृंदा की पूजा भंग करने का कोई उपाय करें। भगवान बोले ‘वृंदा मेरी परम भक्त है, मैं उसके साथ छल नही कर सकता।’ लेकिन देवताओं के दबाव ने उन्हें मजबूर कर दिया।
आखिर में वे जलंधर का रूप धारण कर उसके घर पहुंचे, तो पतिव्रता ने उन्हें अपना पति समझ कर पूजा बंद कर दी और उनका पैर छूने पहुंच गई। इस बीच देवताओं ने दानवराज जलंधर का वध कर दिया । उसके बाद वृंदा के सामने भगवान विष्णु असली रूप में आ गए। तब नाराज हो कर वृंदा ने कहा- भगवन् आप ने मेरे साथ छल कर मेरा पतिव्रत भ्ंग किया है। मै आप को शाप देती हूं आप पत्थर का बन जाएं।’
शाप देते ही भगवान विष्णु पत्थर में तब्दील हो गए। उसी पत्थर को शालिग्राम कहते हैं। कथा के मुताबिक इसके बाद देवताओं में हाहाकार मच गया माता लक्ष्मी दौड़ी वृंदा के पास आईं, और अपने पति के लिए शाप मुक्ति के लिए अनुनय विनय करने लगीं। वृंदा ने उन्हें शाप मुक्त कर दिया। उसके बाद उनकी बनी शिला के पास अपने पति के शव के साथ सती हो गईं। उनकी राख पर एक पौधा उगा, जिसे तुलसी कहा गया।
कहते हैं कि भगवान विष्णु ने उन्हें हर समय अपने साथ रखने का वचन दिया। साथ ही यह भी कहा कि उनको चढ़ने वाले भोग में जबतक तुलसी नहीं रहेगी वे भोग नहीं ग्रहण करेंगे। तभी से भगवान विष्णु और उनके अवतार स्वरूप प्रभु श्रीराम के भोग में तुलसी दल को रखना अनिवार्य हो गया।