सबसे महंगी कॉफी Kopi luwak तैयार के विधि जानकर हो जायेगे हैरान
कोपी लुवाक में ऐसा क्या खास होता है, और इसको कैसे तैयार किया जाता है
दुनिया की इस महंगी कॉफ़ी को बनाने के लिए रेड कॉफ़ी बीन्स का इस्तेमाल किया जाता है.
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कोपी लुवाक (Kopi luwak) अमीरों की पहली पंसद है
यह कॉफी प्राप्त करने की एक नार्मल विधि होती है!
सामान्य तरीको में कॉफ़ी को बनाने के लिए कॉफ़ी
परन्तु आप सभी को यह जानकार आश्चर्य होगा की विश्व की सबसे महंगी कॉफ़ी ‘कोपी लुवाक’ (Kopi luwak ) को बनाने की विधि बिल्कुल अजीब और विचित्र है. इसी कारण इसका दाम आम कॉफी से महंगा होता है।
इंडोनेशिया में कोपी लुवाक कॉफ़ी के फल (बेरी) को ‘पाम सिवेट’ नाम की बिल्ली को खिलाकर बनाया जाता है. बावजूद लोग इसके इतने दीवाने हैं कि दूसरे विकल्प की ओर जाना पंसद नहीं करते.
कोपी लुवाक इंडोनेशिया के जंगलों में पाया जाने वाला खास किस्म का बीन्स है. यह बीन्स पेड़ से तोड़ा गया फल नहीं है, बल्कि यह इंडोनेशिया के जंगलों में पाई जाने वाली एशियन ‘पाम सिवेट’ नाम के जानवर के खाने के बाद उसके मल से प्राप्त किया जाता है।
बिल्ली की प्रजाति का यह ‘पाम सिवेट’ जानवर अधिकतर पेड़ों पर रहता है, लेकिन अब इस कॉफ़ी को बनाने के लिए पाम सिवेट को पिंजरे में कैद करके रखते है. क्योंकि इस कॉफ़ी की मांग लगातार बढ़ रही है और इसे बनाने का प्रोसेस इसी पर निर्भर है.
कोपी लुवाक कॉफी का टेस्ट पाने के लिए लोग, जिस तरह से पैसे खर्चे करते है वो देखते ही बनता है.
इस कॉफ़ी को बनाने के लिए सबसे पहले इंडोनेशिया में पाई जाने वाली एक लाल कलर की बेरी को इस पाम सिवेट नामक बिल्ली को खिलाया जाता है. हालांकि, यह बिल्ली इस बेरी के बीजों को नहीं पचा पाती. वह सिर्फ इसके गुदे को ही पचाने में सक्षम होती है. ऐसे में इस बेरी के बीजों को वह अपने मल के जरिए पेट से बाहर निकाल देती है.
इसके बाद इन बीजों को अच्छी तरह धोकर सुखा लिया जाता है और फिर इसी बीज को हम कोपी लुवाक कॉफ़ी के बीन्स के रूप में इस्तेमाल करते हैं. निश्चित रूप से इस कॉफ़ी के बीन्स को अंतिम रूप देने के लिए जिस तरह की कठिन विधि अपनाई जाती है, उससे इस कॉफ़ी का महंगा होना लाजमी हो जाता है.
कोपी लुवाक काफी 20-25 हजार रुपये प्रति किलो है
यह काफी महंगा है क्योंकि इसके बेहद पोषक होने का दावा किया जाता है तथा इसके बीन्स को प्राप्त करने के लिए काफी खर्च करना होता है. सिवेट कॉफी को खाड़ी देशों और यूरोप में संभ्रांत उपभोक्ता चाव से पीते हैं और विदेशों में यह 20,000 से 25,000 रुपये किलो बिकता है.
भारत में देश के सबसे बड़े कॉफी उत्पादक राज्य कर्नाटक में कूर्ग कान्सोलिडेटेड कमोडिटीज (सीसीसी) ने लघु पैमाने पर इसकी शुरुआत की है और स्थानीय स्तर पर एक कैफे को खोलने का भी फैसला किया है.
कोपी लुवाक की कहानी का इतिहास
कोपी लुवाक कॉफी को बनाने की विधि अजीब-गरीब तो है, लेकिन सवाल यह है कि इसको बनाया कैसे गया…आखिर ये कैसे पता चला कि इस कॉफ़ी के बीन्स का टेस्ट बिल्ली के पेट में और बढ़ जाता है
18 वीं शताब्दी में डचों की पाबंदी से उतपन्न हुई यह विधि
18 वीं शताब्दी में इंडोनेशिया पर डचों का कब्ज़ा था. इन्होंने उसी वक़्त कॉफ़ी का भरपूर स्वाद लेने के लिए कॉफ़ी के बागान को लगाया. इस बागान की काफी का स्वाद बड़ा ही मजेदार था, जिसने इसे मशहूर कर दिया.
इसके बाद 1850 के आसपास डचों ने इस बागान में काम करने वाले मजदूरों और यहां के निवासियों को इसका फल तोड़ने पर पाबंदी लगा दी. यहां तक कि नीचे गिरे फलों को उठाने की भी मनाही थी.
किन्तु तब तक इस कॉफ़ी का स्वाद इन स्थानीय लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर चुका था.
ऐसे में डचों की पाबंदी के बाद लोगों ने इसका स्वाद पाने के लिए एक तरकीब निकाली. जोकि बड़ी अजीब थी. इसके तहत इन लोगों को पता चला कि सिवेट बिल्ली इस फल को खाती है, मगर इसके बीज को पचाने में वो असमर्थ है.
ऐसे में इन लोगों ने उसकी पॉटी से निकलने वाले बीज को उठाकर इस कॉफ़ी को बनाना शुरु कर दिया. बाद में जब इन्होंने इसका स्वाद चखा, तो यह कॉफ़ी पहले की अपेक्षा अधिक टेस्टी थी.
हालांकि, जल्द ही डचों को भी इस कॉफ़ी की विधि और उसके बढ़े हुए टेस्ट के बारे में जानकारी हासिल हो गई, जिसके बाद वो भी इसी विधि को अपनाते हुए इस कॉफ़ी का स्वाद लेने लगे. बस तब से इसी विधि के तहत इस कॉफ़ी को बनाया जाने लगा.
इस तरह देखते ही देखते यह कॉफ़ी पूरी दुनिया में मशहूर हो गई.
आज आलम यह है कि इसकी बढ़ती मांग व इसकी दुर्लभ विधि के कारण इसका मूल्य बहुत अधिक है
कोपी लुवाक ‘सिवेट’ का उत्पादन भारत में शुरू हो गया है
दुनिया की सबसे महंगी कॉफी ‘सिवेट’ का उत्पादन भारत में शुरू हो गया है. कर्नाटक के कुर्ग जिले में इसका उत्पादन हो रहा है. खास बात यह है कि सिवेट बिल्ली के मल से बनती है. भारत एशिया में कॉफी का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है.
zee news की एक रिपोर्ट के अनुसार सीसीसी के संस्थापकों में से एक नरेन्द्र हेब्बार ने बताया, ‘‘आरंभ में 20 किग्रा सिवेट कॉफी का उत्पादन किया गया. ‘स्टार्ट.अप फर्म को स्थापित करने के बाद वर्ष 2015-16 में 60 किग्रा कॉफी का उत्पादन हुआ और पिछले वर्ष यह उत्पादन 200 किग्रा हुआ था.
अक्तूबर से कटाई होने वाले नई फसल से हमें करीब आधा टन का उत्पादन होने की उम्मीद है.’’ इस कॉफी को स्थानीय स्तर पर ‘एनमने’ ब्रांड नाम से बेचा जाता है. कंपनी का क्लब महिन्द्रा मेडिकेरी रिसॉर्ट में एकमात्र बिक्री केन्द्र है जहां वह स्थानीय स्तर पर उत्पादित कॉफी, मसालों और अन्य उत्पादों को बेचती है.
कॉफी चेरी के गूदे को तो सिवेट बिल्ली पचा लेती है लेकिन वह बीन को नहीं पचा पाती. सिवेट बिल्ली के पेट के प्राकृतिक एंजाइम बीन के सुगंध को बढ़ाते हैं और कॉफी को विशिष्ट बनाते हैं.
उन्होंने कहा कि अब किसान इस कॉफी के महत्व को समझ रहे हैं और ‘‘हम इसका उत्पादन प्राकृतिक तौर तरीके से करते हैं जबकि बाकी देशों में सिवेट बिल्ली को पकड़ कर रखा जाता है और उन्हें जबर्दस्ती कॉफी के बीन खिलाये जाते हैं.’’ इसे यहां 8,000 रुपये किलो के हिसाब से बेचा जाता है जबकि विदेशों में यह 20 से 25 हजार रुपये प्रति किलो की दर से उपलब्ध है.
कंपनी की निर्यात की योजना के बारे में हेब्बार का कहना है की प्रमाणीकरण की अधिक लागत और मौजूदा कम उत्पादन स्तर होने के कारण यह फिलहाल लाभप्रद नहीं है. कॉफी बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भी पुष्टि की कि कूर्ग और चामराजनगर में सिवेट बिल्ली कॉफी का कम मात्रा में उत्पादन किया जाता है
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