Bhitauli : “न बासा घुघुती चैत की, याद ऐ जांछी मिकें मैत की”

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Bhitauli : भिटौली उत्तराखंड की एक विशिष्ट परंपरा – Bhituli is a unique tradition of Uttarakhand

उत्तराखंड में लोक संस्कृति पर आधारित, कई महत्वपूर्ण पर्व/त्यौहार मनाये जाते है, जैसे बसंत पंचमी, फुलदेई, घुघुतिया, मकर संक्रांति, तथा भिटोली के रूप में मनाया जाता है यह त्यौहार,चैत के पूरे महीने में मनाया जाता हैं ।

भिटौली उत्तराखंड की एक विशिष्ट परंपरा
भिटौली उत्तराखंड की एक विशिष्ट परंपरा

चैत्र का महीना जो हर शादीशुदा लड़की को लाकर देता है मायके का प्यार भिटौली (Bhituli)। अब ऋतु रमणी ऐ गे ओ चैत क मेहना, भेटोई की आ, लगे आज सौरास की बैन।

लोक परम्पराओं के प्रदेश उत्तराखंड में ऐसे कई त्यौहार हैं, जो मैदानी इलाकों में नहीं मनाए जाते, भिटौली (Bhituli) भी उनमें से एक है । कई लोग इसे भिटोई भी कहते हैं। भिटौली जिसका अर्थ होता है भेंट करना यानि मुलाकात करना। इस त्योहार को मानने की परंपरा सालों से प्रचलित है।

विवाहित लड़की के मायके पक्ष से पिता या भाई अपनी बेटी/बहन के लिए भिटौली लेकर उसके ससुराल में अपनी बेटी/बहन से  जाकर मुलाकात करते हैं और साथ में उपहार भी देते हैं । इस दिन का हर बहन बेटी को बेसब्री से इन्तजार रहता है । इस इन्तजार को लोक गायकों ने लोक गीतों के माध्यम से भी व्यक्त किया है। “न बासा घुघुती चैत की, याद ऐ जांछी मिकें मैत की”।

शादी के बाद की पहली भिटौली लड़की को वैशाख के महीने में दी जाती है और उसके बाद हर साल चैत्र मास में भिटौली (Bhituli) दी जाती है जब भिटौली लेकर मायके वाले पहुंचते हैं, तो उस सामग्री को पास-पड़ोस में बांटा जाता है, तब ये माहौल किसी त्यौहार से कम नहीं लगता।

लड़की चाहे कितने भी सम्पन्न परिवार में क्यों ना ब्याही हो, उसे अपने मायके के आने वाली भिटौली का बेसब्री से इंतजार रहता है । इस वार्षिक सौगात में उपहार स्वरूप दी जाने वाली वस्तुओं के साथ ही उसके साथ जुड़ी शुभकामनाएं, आशीर्वाद और ढेर सारा प्यार और दुलार विवाहिता तक पहुंच जाता है।


उत्तराखंड की विवाहित लड़की के लिए क्यों है खास भिटौली – Why is Bhitoli special for married girl of Uttarakhand

वाकई में उत्तराखंड बेमिसाल है यहां हर महीने में एक या शायद कभी-कभी महीने में दो या तीन त्यौहार भी मनाए जाते हैं।हर त्यौहार के पीछे कोई ना कोई लोककथा जरूर होती है।या उस त्यौहार का सीधा संबंध प्रकृति से होता है।और यहां पर कई अनोखी और विशिष्ट परंपराएं हैं।उन्हीं में से एक है भिटौली

भिटौली है क्या – Is it bhatauli

उत्तराखंड में पूरे चैत्र मास में किसी भी एक दिन विवाहित लड़की के घर जाकर उसके मायके वाले उससे मुलाकात करते है।और उसे उपहार स्वरूप फल ,मिठाई व वस्त्र आदि भेंट करते है।जिसे भिटौली (Bhituli) कहते हैं।

भिटौली कब दी जाती है – When is bhatauli given

फूल दे या फूल संक्रांति जो चैत्र मास की संक्रांति या चैत्र मास के प्रथम दिन मनाया जाता है।और इस दिन से हिंदू नव वर्ष प्रारंभ होता है।और इसी दिन से पूरे चैत्र मास में हर विवाहित लड़की को उसके मायके से भेंट दी जाती है जिसे भिटौली कहते हैं।यह एक विशिष्ट उत्तराखंडी परंपरा हैं। और हर विवाहित महिला के लिए यह खास है।

क्या दिया जाता है भिटौली में – What is given in Bhitauli

भिटौली का मतलब है भेंट करना या मुलाकात करना अपनी विवाहित बेटी या बहन से।चैत्र मास के पहले दिन से ही भिटौली (Bhituli) का यह महीना शुरू हो जाता है।और पूरे महीने भर यह सिलसिला चलता रहता है।और हर कोई अपनी सुविधा के अनुसार अपनी बेटी या बहन के घर पहुंचकर उसे भेंट करते हैं।

प्रत्येक विवाहित महिला या बहन के मायके वाले चाहे वह भाई ,माता-पिता या अन्य परिजन इस चैत्र के महीने में उसके ससुराल पहुंचकर उनसे भेंट करते हैं।

आज से कुछ वर्ष पूर्व तक जब कोई व्यक्ति भिटौली देने जाता था।तो उसके घर में सुबह से ही कई प्रकार के व्यंजन बनाए जाते थे।जिसमें पूरी, सेल, खीर, खजूरे होते थे।उसके बाद यह सारे व्यंजनों को एक टोकरी में रखा जाता था।और कपड़े से बाँध कर इसे या तो पीठ में रखकर या फिर सिर में रखकर बेटी के ससुराल ले जाया जाता था।

इसके साथ ही साथ बेटी के लिए फल ,मिठाइयां व वस्त्र भी ले जाते थे।और बेटी के ससुराल मे व्यंजनों को पूरे गांव के हर घर में बांटा जाता था। बेटी के ससुराल मे मायके से आए इन मेहमानों की खातिरदारी के लिए तरह तरह तरह के व्यंजन बनाए जाते थे। इस से गांव में सामाजिक सौहार्द व भाईचारे को बढ़ावा मिलता था। और रिश्तो में मजबूती आती थी।

वक्त बदला, भिटौली के उपहार भी बदले – Time changed, Bhitouli’s gifts also changed

लेकिन बदलते सामाजिक परिवेश में इनका स्वरूप भी बदल गया है।आज जहां आदमी अत्यधिक व्यस्त है।वही दूर संचार के माध्यमों ने लोगों के बीच की दूरी को घटाया है।जहां पहले महीनों तक बेटियों से बातचीत नहीं हो पाती थी।या उनको देखना भी मुश्किल हो जाता था।आज स्मार्टफोन ,कंप्यूटर के जमाने में आप उनको आसानी से देख सकते हैं।या उनसे आसानी से बात कर सकते हैं वह भी जब चाहो तब।

आज पहले की तरह ढेर सारे व्यंजन बनाकर ले जाते हुए लोग बहुत कम दिखाई देंगे। आजकल लोग मिठाई ,वस्त्र या बेटी को जरूरत का कोई उपहार देते हैं।और व्यस्तता के कारण भाई या मां-बाप बहन के घर नहीं जा पाते हैं।तो पैसे भेज देते हैं।आजकल पैसे भेजने के भी कई सारे तरीके हैं। जो बहुत आसान हैं। भिटौली (Bhituli) देने के तरीके भले ही बदल गए हो।लेकिन परंपरा आज भी जैसी की तैसी बनी है।

विवाहित बेटियों को भिटौली क्यों दी जाती है – Why is Bhitauli given to married daughters

पुराने समय में लोगों के पास बहुत सारी जमीन व पशु होते थे। और वही उस वक्त में जीविका का एक मात्र साधन भी वही थे। जब बेटी ब्याह कर अपने ससुराल जाती थी।तो उसे घर परिवार व खेती-बाड़ी के कामों से फुर्सत ही नहीं मिल पाती थी कि वह अपने मायके जाकर परिजनों से मिल सके।और उस वक्त यातायात और दूरसंचार के साधन भी उतने ज्यादा नहीं थे।

इस महीने में पहाड़ों में खेती बाड़ी का काम थोड़ा कम हो जाता है।जिससे महिलाएं व परिजन थोड़ी फुर्सत में रहते हैं।इसीलिए यह महीना अपने विवाहित बेटियों या बहनों से मिलने जुलने का बनाया गया।

भिटौली की लोक कथा – Folk tale of Bhitauli

उत्तराखंड के हर गांव के घर घर में आज भी बड़े- बूढ़े इस कहानी को बड़े शौक से सुनाते हैं।खासकर इस महीने में। भिटौली (Bhituli) की कहानी भाई बहन के अथाह प्यार से जुड़ी है। कहा जाता है कि देवली नाम की एक महिला अपने नरिया नाम के भाई से बहुत प्यार करती थी।

लेकिन जब बहन की शादी दूसरे गांव में हो गई।वह चैत के महीना लगते ही अपने भाई का इंतजार करने लगी।बिना कुछ खाए-पिए व बिना सोए इंतजार करने लगी।ऐसे कई दिन बीत गए।लेकिन किसी वजह से भाई नहीं आया पाया।

इस वजह से जिस दिन उसका भाई उसके घर आया।वह उसका इंतजार करते-करते सो गई।इस बीच भाई घर आया और अपनी बहन को सोता हुआ देख अपने साथ लाया उपहार व अन्य सामान सोती हुई बहन के पास रख कर उसे प्रणाम कर वापस अपने घर को चला गया।क्योंकि अगले दिन शनिवार था।

और पहाड़ों में कहा जाता है कि शनिवार को न किसी के घर जाते हैं।और न किसी के घर से आते हैं ।यह अपशकुन माना जाता है।

इसी वजह से भाई अपने घर चला गया। लेकिन जब बाद में बहन की नींद खुली तो उसने अपने पास रखा हुआ सामान देखा।और उसे एहसास हुआ कि जब वह सोई थी तो उसका भाई आया।और उस से बिना मिले बिना कुछ खाए- पिए भूखा-प्यासा ही वापस चला गया।

इस वजह से वह बहुत दुखी हुई और और पश्चाताप से भर गई। और एक ही रट लगाए रहती थी। “भै भूखो- मैं सिती, भै भूखो- मैं सिती”।और इसी दुख में उसके प्राण चले गए।अगले जन्म में वह “न्योली “नाम एक चिड़िया के रूप में पैदा हुई।

और कहा जाता है कि वह इस मास में आज भी दुखी रहती है।और जोर-जोर से गाती है “भै भूखो- मैं सिती“ जिससे आप आराम से सुन सकते हैं।

विशेष भिटौली – Bhitouli Special 

शादी के बाद की पहली भिटौली (Bhituli) लड़की को फाल्गुन माह में दी जाती है।उसके बाद हर साल चैत्र के महीने में दी जाती है।पहाड़ों में शादी के बाद का पहला चैत्र का महीना “काला महीना “माना जाता है।काले महीने में शुरू के 5 दिन या पूरे महीने लड़की को अपने पति को नहीं देखना होता है। इसीलिए लड़की को उसके मायके भेज दिया जाता है।

अपने पति का मुंह देखना नई विवाहित महिला के लिए इस महीने में शुभ नहीं माना जाता है।और कहा तो यह भी जाता है कि विवाहित महिला के मायके से जब तक भिटौली ना आ जाए।तब तक उसके सामने इस महीने का नाम लेना या खुद विवाहित महिला द्वारा इस महीने का नाम लेना अशुभ माना जाता है।

उमीद करती हु की आपको यह पोस्ट पसंद आया होगा। यदि आप देवभूमि उत्तराखंड के पर्वो / त्योहारों से प्यार करते है। तो इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा share करें जिससे उत्तराखंड के लोक पर्वो के बारे में| सभी लोग जान सके