Chandrayan Vrat | Chandrayan Vrat kya hai |चंद्रायण व्रत 2023



Chandrayan Vrat | Chandrayan Vrat kya hai |चंद्रायण व्रत 2023
Chandrayan Vrat: ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा की गति से पंचांग का निर्धारण होता है. पंचांग के पांचों अंग तिथि, वार, योग, करण और नक्षत्र की गणना चंद्रमा से की जाती है.
ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा पृथ्वी के सबसे नजदीक का ग्रह है. इसे ग्रहों में माता का दर्जा दिया गया है. माता के स्थान को पाने से ही इसके प्रभाव को समझा जा सकता है.
विश्व में सभी पंचांगों की रचना सूर्य और चंद्रमा की गति गणना से की जाती है. इसमें भारतीय वैदिक ज्योतिष में गणना चंद्रमा से की जाती है. यह अत्यंत सटीक और प्रभावी पद्धति है. इसके आधार पर ही सभी योगायोग निर्धारित होते हैं.
चंद्रमा के महत्व के कारण ही पाणिनी ने इस तप के बारे में स्पष्ट किया है. शास्त्रों में कहा गया है कि यह व्रत सभी पापो को नाश करने वाला है. इससे हर पाप का प्रायश्चित संभव है.
चंद्रायण व्रत को शरद पूर्णिमा से शुरू कर कार्तिक पूर्णिमा तक किए जाने वाले व्रत को चन्द्रायण व्रत कहा जाता है.
इस व्रत का सीधी संबंध चंद्रमा की कलाओं से है. शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी अधिकतम 16 कलाओं का होता है.
यह व्रत अत्यंत प्राचीन है जिसे हमारे ऋषि मुनि और साधक शरीर को स्वस्थ रखने के लिए करते थे. पूर्णिमा चंद्रमा से जुड़ा दिन होने के कारण ही इसे चन्द्रायण व्रत कहा जाता है.
शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को करने से व्रती को सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है और वह पुण्य का भागी होता है. इस बार 28 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा और 26 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा है.
chandrayan vrat | चंद्रायण व्रत 2023 व्रत विधि
चन्द्रायण व्रत करने वालों को प्रातःकाल स्नान आदि करके तुलसी जी की पूजा करनी चाहिए, इस दौरान पूजा घर में हर समय दीपक जलाए रखना चाहिए. पेय पदार्थों में भी तुलसी दल डाल कर लेना चाहिए गंगा जल पीना सर्वोत्तम है.
एक गिलास दूध, या ठंडाई या फलों का रस भी पीना चाहिए. व्रती के पहले दिन एक ग्रास, दूसरे दिन दो ग्रास लेते हुए प्रत्येक दिन एक ग्रास बढ़ाते हुए पंद्रहवें दिन पंद्रह ग्रास खाद्य पदार्थ का सेवन करना चाहिए.
अगले पंद्रह दिनों तक रोज एक एक ग्रास कम करते हुए पंद्रहवें दिन अर्थात कार्तिक पूर्णिमा को व्रत करते हुए ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए परिवार के सभी सदस्यों को भोजन कराना चाहिए
और सबसे अंत में स्वयं भोजन करना चाहिए. ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर विदा करना चाहिए और इसी तरह अपनी सासू मां के पैर छूकर उन्हें भी कुछ न कुछ दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए.
इस प्रकार यह व्रत चंद्रमा की कलाओं से जुड़कर पूरे एक माह में पूर्ण होता है. इसी कारण इसे चंद्रायण व्रत कहते हैं.
चंद्रायण व्रत में बाद में भोजन के कौर की व्यवस्थ को एक मुष्टि भोजन से जोड़कर भी किया जाने लगा. हालांकि मूल विधान कौर से ही संबद्ध है.
चंद्रायण व्रत से साधक के सभी पाप कट जाते हैं. मनोबल और आत्मबल बढ़ता है. घोर विपत्ति और दोष परिहार में यह व्रत किया जाता है.
इन बातों का रखें ध्यान
इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए, मन में केवल सकारात्मक और सात्विक विचार ही रखने चाहिए.
भूमि पर शयन करते हुए संध्या वंदन, स्वाध्याय आदि धार्मिक कार्यों में ही समय बिताना चाहिए. व्रत के दौरान प्रतिदिन गायत्री मंत्र की 11 माला का जाप करने से साधना का फल प्राप्त होता है. व्रत पूरा होने पर यज्ञ तो करना ही चाहिए.