Makar Sankranti 2022 | Ghughutiya Festival In Uttarakhand |

आस्था

घुघुतिया त्यौहार का महत्व एवम् लोककथ

उत्तराखंड राज्य के कुमाउं में मकर सक्रांति (Makar Sankranti)पर घुघुतिया (Ghughutiya) संक्रांति या पुस्योड़िया संक्रांति के नाम से त्यौहार मनाया जाता है | इसके अतिरिक्त उत्तराखंड में घुघुतिया (Ghughutiya) के अन्य नाम मकरैण, उत्तरैण, घोल्डा, घ्वौला, चुन्यात्यार, खिचड़ी संक्रांति, खिचड़ी संगरादि भी कहते हैं.

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यह कुमाऊँ का सबसे बड़ा त्यौहार माना जाता है और यह एक स्थानीय पर्व होने के साथ साथ स्थानीय लोक उत्सव भी है क्योंकि इस दिन एक विशेष प्रकार का व्यंजन घुघुत बनाया जाता है | इस त्यौहार की अपनी अलग पहचान है | इस त्यौहार को उत्तराखंड में “उत्तरायणी” के नाम से मनाया जाता है एवम् गढ़वाल में इसे पूर्वी उत्तरप्रदेश की तरह “खिचड़ी सक्रांति” के नाम से मनाया जाता है |

मकर संक्रांति के त्यौहार के दिन अनेक पकवान कव्वों को खिलाये जाते हैं. घुघता इन पकवानों में मुख्य है. घुघुत एक पक्षी का नाम भी है. त्यौहार के दिन बनने वाला घुघुत पकवान हिन्दी के अंक ४ (4) के आकार का होता है.

विश्व में पशु पक्षियों से सम्बंधित कई त्योहार मनाये जाते हैं पर कौओं को विशेष व्यंजन खिलाने का यह अनोखा त्यौहार उत्तराखण्ड के कुमाऊँ के अलावा शायद कहीं नहीं मनाया जाता है . यह त्यौहार विशेष कर बच्चो और कौओ के लिए बना है. इस त्यौहार के दिन सभी बच्चे सुबह सुबह उठकर कौओ को बुलाकर कई तरह के पकवान खिलाते है और कहते है :-

“काले कौओ काले घुघुती बड़ा खाले ,
लै कौआ बड़ा , आपु सबुनी के दिए सुनक ठुल ठुल घड़ा ,
रखिये सबुने कै निरोग , सुख समृधि दिए रोज रोज ”

इसका अर्थ है काले कौआ आकर घुघुती (इस दिन के लिए बनाया गया पकवान) बड़ा (उरद का बना हुए पकवान) खाले , ले कौव्वे खाने को बड़ा ले और सभी को सोने के बड़े बड़े घड़े दे , सभी लोगो को स्वस्थ रख और समृधि दे

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घुघुतिया (Ghughutiya) त्यौहार के दिन आटे को गुड़ में गूंदने के बाद उससे घुघते बनाए जाते हैं. इस बात को कोई प्रामाणिक उल्लेख नहीं है कि यह त्यौहार कब से और क्यों मनाया जाता है. इस बात का भी कोई प्रमाण नहीं है कि इस पकवान को घुघता यानी घुघुतिया (Ghughutiya) क्यों कहते हैं.हालांकि घुघुतिया त्यौहार का मुख्य आकर्षण कौवा है।और इस त्यौहार को मनाने के पीछे एक लोकप्रिय लोककथा है | यह लोककथा कुछ इस प्रकार है |

घुघुतिया से जुड़ी पहली कथा

प्राचीन काल में कुमाऊं में चन्द्र वंश के राजा कल्याण चंद राज करते थे। जब कुमाउं में चन्द्र वंश के राजा राज करते थे , तो उस समय राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी, संतान ना होने के कारण उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं था | उनका मंत्री सोचता था कि राजा के मरने के बाद राज्य उसे ही मिलेगा .

एक बार राजा कल्याण चंद अपनी पत्नी के साथ बागनाथ मंदिर के दर्शन के लिए गए और संतान प्राप्ति के लिए मनोकामना करी और कुछ समय बाद राजा कल्याण चंद को संतान का सुख प्राप्त हो गया , जिसका नाम “निर्भय चंद” पडा.राजा की पत्नी अपने पुत्र को प्यार से “घुघती” के नाम से पुकारा करती थी और अपने पुत्र के गले में “मोती की माला” बांधकर रखती थी .

मोती की माला से निर्भय का विशेष लगाव हो गया था इसलिए उनका पुत्र जब कभी भी किसी वस्तु की हठ करता तो रानी अपने पुत्र निर्भय को यह कहती थी कि “हठ ना कर नहीं तो तेरी माला कौओ को दे दूंगी”. उसको डराने के लिए रानी “काले कौआ काले घुघुती माला खाले” बोलकर डराती थी | ऐसा करने से कौऐ आ जाते थे और रानी कौओ को खाने के लिए कुछ दे दिया करती थी | धीरे धीरे निर्भय और कौओ की दोस्ती हो गयी | दूसरी तरफ मंत्री घुघुती (निर्भय) को मार कर राज पाठ हडपने की उम्मीद लगाये रहता था ताकि उसे राजगद्दी प्राप्त हो सके |

एक दिन मंत्री ने अपने साथियो के साथ मिलकर षड्यंत्र रचा | घुघुती (निर्भय) जब खेल रहा था तो मंत्री उसे चुप चाप उठा कर ले गया. जब मंत्री घुघुती (निर्भय) को जंगल की ओर ले जा रहा था तो एक कौए ने मंत्री और घुघुती(निर्भय) को देख लिया और जोर जोर से कॉव-कॉव करने लगा |

यह शोर सुनकर घुघुती रोने लगा और अपनी मोती की माला को निकालकर लहराने लगा | उस कौवे ने वह माला घुघुती(निर्भय) से छीन ली | उस कौवे की आवाज़ को सुनकर उसके साथी कौवे भी इक्कठा हो गए एवम् मंत्री और उसके साथियो पर नुकली चोंचो से हमला कर दिया | हमले से घायल होकर मंत्री और उसके साथी मौका देख कर जंगल से भाग निकले |

राजमहल में सभी घुघुती(निर्भय) की अनूपस्थिति से परेशान थे | तभी एक कौवे ने घुघुती(निर्भय) की मोती की माला रानी के सामने फेक दी | यह देख कर सभी को संदेह हुआ कि कौवे को घुघुती(निर्भय) के बारे में पता है इसलिए सभी कौवे के पीछे जंगल में जा पहुंचे और उन्हें पेड के निचे निर्भय दिखाई दिया |

उसके बाद रानी ने अपने पुत्र को गले लगाया और राज महल ले गयी | जब राजा को यह पता चला कि उसके पुत्र को मारने के लिए मंत्री ने षड्यंत्र रचा है तो राजा ने मंत्री और उसके साथियों को मृत्यु दंड दे दिया |

घुघुती के मिल जाने पर रानी ने बहुत सारे पकवान बनाये और घुघुती से कहा कि अपने दोस्त कौवो को भी बुलाकर खिला दे और यह कथा धीरे धीरे सारे कुमाउं में फैल गयी और इस त्यौहार ने बच्चो के त्यौहार का रूप ले लिया | तब से हर साल इस दिन धूम धाम से इस त्यौहार को मनाया जाता है |

इस दिन मीठे आटे से जिसे “घुघुत” भी कहा जाता है | उसकी माला बनाकर बच्चों द्वारा कौवों को खिलाया जाता है | बात धीरे-धीरे कुमाऊं में फैल गई। इस तरह घुघुति एक त्योहार के रूप में पूरे कुमाऊं में फैल गया। कुमाऊं में एक कहावत भी मशहूर है कि श्राद्धों में ब्राह्मण और उत्तरायनी को कौए मुश्किल से मिलते हैं।

शास्त्रों के अनुसार घुघुतिया त्यौहार की ऐसी मान्यता है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने उनके घर जाते है इसलिए इस दिन को मकर सक्रांति के नाम से ही जाना जाता है |

महाभारत की कथा के अनुसार भीष्म पितामह ने अपने देह त्याग ने के लिए मकर सक्रांति का ही दिन चुना था | यही नहीं यह भी कहा जाता है कि मकर सक्रांति के दिन ही गंगाजी भागीरथी के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थी | साथ ही साथ इस दिन से सूर्य उत्तरायण की ओर प्रस्थान करता है , उत्तर दिशा में देवताओं का वास भी माना जाता है इसलिए इस दिन जप-तप , दान-स्नान , श्राद्ध-तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है | (घुघुतिया त्यौहार)

घुघुतिया से जुड़ी दूसरी लोककथा 

एक लोककथा के अनुसार कहा जाता है कि बहुत समय पहले घुघुत नाम का एक राजा हुआ करता था. एक ज्योतिषी ने उसे बताया कि मकर संक्रांति की सुबह कव्वों द्वारा उसकी हत्या कर दी जायेगी.

राजा ने इसे टालने का एक उपाय सोचा. उसने राज्य भर में घोषणा कर दी कि सभी लोग गुड़ मिले आटे के विशेष प्रकार के पकवान बनाकर अपने बच्चों से कव्वों को अपने अपने घर बुलायेंगे. इन पकवानों का आकर सांप के आकार के रखने के आदेश दिए गये ताकि कव्वा इन पर और जल्दी झपटे.

Ghughutiya Ghughutiya Festival

राजा का अनुमान था कि पकवान खाने में उलझ कर कव्वे उस पर आक्रमण की घड़ी को भूल जायेंगे. लोगों ने राजा के नाम से बनाये जाने वाले इस पकवान का नाम ही घुघुत रख दिया. तभी से यह परम्परा चली आ रही है.

मारक ग्रहयोग टालने को राजा ने बनवाये घुघुते

इसी तरह की एक अन्य जनश्रुति है. कहते हैं सालों पहले उत्तराखंड क्षेत्र में एक राजा हुआ करता था. उसे एक ज्योतिषी ने बताया कि उस पर मारक ग्रहदशा आयी हुई है. यदि वह घुघुतों (फ़ाख्तों) का भोजन कव्वों को करा दे तो उसके इस ग्रहयोग का प्रभाव टल सकता है.

राजा अहिंसावादी था. उसे संक्रांति के दिन निर्दोष पक्षियों को मारना ठीक नहीं लगा. उसने उपाय के तौर पर गुड़ मिले आटे के प्रतीकात्मक घुघते बनवाये. राज्य के बच्चों से कव्वों को इसे खिलवाया तभी से यह परम्परा चल पड़ी.

 Ghughutiya Festival

कव्वे को पकवान खिलने के संबंध में एक अन्य मान्यता यह है कि ठण्ड और हिमपात के कारण अधिकांश पक्षी मैदानों की ओर प्रवास कर जाते हैं. कव्वा पहाड़ों से प्रवास नहीं करता है. कव्वे के अपने प्रवास से इस प्रेम के कारण स्थानीय लोग मकर संक्रांति के दिन उसे पकवान खिलाकर उसका आदर करते हैं.

गढ़वाल में इसे ‘चुन्या त्यार’ भी कहा जाता है. इस दिन वहां दाल, चावल, झंगोरा आदि सात अनाजों को पीसकर उससे चुन्या नाम का विशेष व्यंजन तैयार किया जाता है. इस दिन गढ़वाल में आटे के मीठे घोल्डा/ घ्वौलो के बनाये जाने के कारण इसे घोल्डा या घ्वौल भी कहा जाता है.

Ghughutiya Festival In Uttarakhand

घुघुते बनाकर इन्हें धूप में सुखाया जाता है। मान्यता है कि धूप में सुखाए घुघुतों को पकाने में तेल कम खर्च होता है। इस मौके पर विशेष आकृति वाले घुघुते के अलावा बच्चों के लिए आटे से तलवार, डमरू आदि आकृति वाले पकवान बनाए जाते हैं।

घुघुतिया त्यौहार के विषय में एक उल्लेख यह भी है कि सरयू नदी के पार रहने वाले लोग पौष के अंतिम दिन पकवान बनाते हैं, जबकि नदी के इस पार रहने वाले लोग माघ मास के पहले दिन मकर संक्रांति को ही घुघुतिया मनाते हैं।

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