हरतालिका : कूर्माचल के सामवेदी ब्राह्मणों का ‘उपाकर्म’

आस्था
Yagyopaveet Sanskaar
कूर्माचल के सामवेदी ब्राह्मणों का ‘उपाकर्म’

हरतालिका विमर्श 

हरतालिका (Hartalika) : जिस प्रकार चार वेद हैं ऋग्वेद यजुर्वेद सामवेद अथर्ववेद उसी प्रकार उनके मंत्र को अलग ब्राह्मण द्वारा अलग गायन किया जाता है और उन्हे हम उस नाम से संबोधित किया जाता है और सभी चारों वेदों की अलग शाखाएं हैं ऋग्वेद मंत्र गायन करने वाले ब्राह्मणों को ऋत्विक कहते हैं

और साम वेद वाले ब्राह्मण को उद्गाता यजुर्वेद को होत्रा अथर्ववेद को ब्रह्मा नाम से संबोधित करते हैं । उसी प्रकार वेदों की भी अलग-अलग शाखाएं होती हैं तो उसी विषय में आज हम कूर्माँचल (कुमाँऊ) में तिवारी, त्रिपाठी ,तिवाड़ी लोगों के रक्षाबंधन के दिन रक्षाबंधन क्यों नहीं मनाते इस विषय पर विमर्श है

यह भी पढ़े : Yagyopaveet Sanskaar in Hinduism

सामान्यतः लोग एक दंतकथा कहते हैं जो सभी ने सुनी हुई है कि रक्षाबंधन के दिन सियार तिवारी लोगों की जनेऊ (यज्ञोपवीत) ले गया और बहुत ढूंढने पर हरतालिका (Hartalika) के दिन वह मिली और वह लोग उसी दिन रक्षाबन्धन मनाते हैं।

परंतु यह दंतकथा प्रमाणिक नहीं है क्योंकि ऐसा संभव नहीं है और न ऐसा हो सकता है । किसी व्यक्ति न हास्य मजाक किया हो सकता है परंतु प्रमाणित नहीं है परंतु सत्य और प्रमाणिक यह है कि जिस प्रकार सबके अपने-अपने आराध्य ईष्टदेव होते हैं हम उनको उन्हीं की विधि अनुसार पूजन करते हैं ।

उसी प्रकार जो जिस वेद का अनुयाई या (अनुसरण) करता होगा वह उसी वेद के अनुसार अपने पर्व और संस्कार करते हैं ।

मंत्र भेदादेकवेदे शाखाभेदो विधीयते ।
तस्मात स्वशाखामंत्रैश्च कर्म कुर्यादतंद्रितः।।

अर्थात् अपनी शाखा के अनुसार कर्म करना चाहिए इसलिए यहां कूर्मांचल में जितने भी तिवारी त्रिपाठी लोग हैं वह सब सामवेदीय ब्राह्मण है और उनकी शाखा कौथुमी हैं।

यह भी पढ़े : देवभूमि का लोकप्रिय पर्व सातूं-आठू, शिव-पार्वती की उपासना का है विशेष महत्व

सामवेद परंपरा के ब्राह्मण और उस वेद को मानने वाले हैं जितने भी ब्राह्मण हैं उनका पर्व श्रावणी (रक्षाबन्धन) में न होकर हरतालिका (Hartalika) होती श्रावणी (रक्षाबन्धन) यह यजुर्वेद ब्राह्मणों का है ना की साम बेदी ब्राह्मणों का इसलिए कूर्मांचल के जितने ब्राह्मण तिवारी,त्रिपाठी,तिवाडी़ हैं वह सब साम बेदी ब्राह्मण है अपितु संपूर्ण भारत में जो भी साम बेदी ब्राह्मण है

उसका उपा कर्म और रक्षाबंधन हरतालिका (Hartalika) के दिन होता है अर्थात भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया अर्थात हरतालिका के दिन यह लोग रक्षा विधान और उपा कर्म करते हैं क्योंकि यह इनका सामवेदीय का पर्व है इसलिए यह लोग उसी दिन रक्षा विधान उपाकर्म (जनेऊ) करते हैं तो वेद में कहा भी गया है

कि अपने वेद मत अनुसार हमें अपने कर्म और संस्कार उत्सव मनाने चाहिए ।इसलिए कुमाऊँ मण्डल जितने भी तिवारी हैं ।वे सब लोग जो हैं साम वेदीय ब्राह्मणहै और वह हरतालिका के दिन ही रक्षाबन्धन (उपाकर्म) यज्ञोपवीत परिवर्तित करते हैं तो यह इसका प्रमाणिक मत है


“यद्यपि सर्वशाखा प्रतिपादितमेक तथापि स्वशाखाविहित कूर्यात””
लेखक
डॉ ललित मोहन जोशी “आस्तिक

Leave a Reply