Kano Jigoro : कानो जिगोरो कौन थे जिनके लिए Google ने डूडल बनाया

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Kano Jigoro Biography : कौन थे कानो जिगोरो जिनके लिए Google ने डूडल बनाया

Kano Jigoro : आज एक ऐसे महान हस्ती के बारे में जानने वाले हैं जिसने इस पूरी दुनिया को एक बहुत अनमोल भेंट दिया है। जिसके बिना आज शायद कोई मार्शल आर्ट का नाम नहीं सुनता, जिसके बिना कोई जुडो का नाम नहीं सुनता। हाँ हम बात कर रहे हैं जुडो के आविष्कार करने वाले कानो जिगोरो के बारे में, जिसने अपनी जिद के बदौलत इस दुनिया को बहुत ही मूल्यवान तोहफा दिया। इनके सम्मान में गूगल ने 161वें जन्मदिन पर शानदार डूडल बनाकर सम्मानित किया है।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि कानो जिगोरो कौन थे? इनके किस जिद ने जुडो का आविष्कार कराया? अगर आप कानो जिगोरो की जीवनी से जुड़ी हर बात को जानना चाहते हैं तो इस पोस्ट को अंत तक जरूर पढियेगा।

कानो जिगोरो कौन थे (Who Was Kano Jigoro In Hindi)

Kano Jigoro : कानो जिगोरो का जन्म जापान के मिकेज शहर में 28 दिसंबर 1860 को एक शराब बनाने वाले परिवार में हुआ था। तब से ही इस महान शखस का जन्मदिन हर साल 28 तारीख को पूरी दुनिया सम्मान के साथ मनाती है। यहाँ तक कि Google ने भी इनके सम्मान में 28 अक्टूबर 2021 को कानो जिगोरो के 161वें जन्मदिन पर बहुत ही शानदार डूडल बनाकर सम्मानित किया। कानो जिगोरो दुनिया भर में प्रसिद्ध जुडो के संस्थापक थे। इसके अलावा वे एक जापानी शिक्षक और एथलीट भी थे। आपको बता दें कि जूडो पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त करने वाला पहला जापानी मार्शल आर्ट था और आधिकारिक रूप से ओलंपिक खेलों में हिस्सा बनने वाला पहला आर्ट था। इन सबका श्रेय केवल और केवल कानो को ही जाता है।

पूरी दुनिया में इनके द्वारा ही काले और सफेद बेल्ट का उपयोग एवम मार्शल आर्ट के सदस्यों के बीच सापेक्ष रैंकिंग दिखाने के लिए डैन रैंकिंग की शुरुआत की गई थी। कानो अपने पूरे जीवनकाल में एक शिक्षक के भांति पूरी जीवन बिताये। चाहे वो 1898 से 1901 तक शिक्षा मंत्रालय में प्राथमिक शिक्षा निदेशक के रूप में हो अथवा वर्ष 1900 से 1920 तक टोक्यो हायर नार्मल स्कूल के अध्यक्ष के रूप में। इन्होंने अपना अधिकांश समय शिक्षा के क्षेत्र में ही बिताया।

आपको बता दें कि कानो ने 1910 के दशक के जापान के पब्लिक स्कूल के कार्यक्रमों में जूडो और केंडो को हिस्सा बनाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। शिक्षा के अलावा कानो अंतरराष्ट्रीय खेलों में भी अग्रणी थे। इनकी मुख्य उपलब्धियों में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) का पहला एशियाई सदस्य होना शामिल है। जिसमें इन्होंने वर्ष 1909 से 1938 तक अपनी सेवा देते रहे।

फिर कानो यहीं पर रुकने वालों में से नहीं थे। इन्होंने वर्ष 1912 और 1936 के बीच आयोजित अधिकांश ओलंपिक खेलों में आधिकारिक तौर पर जापान का प्रतिनिधित्व किया और 1940 के ओलंपिक खेलों के लिए एक प्रमुख प्रवक्ता के रूप में सेवारत हुए। कानो के आधिकारिक सम्मान और अलंकरण में “फर्स्ट ऑर्डर ऑफ मेरिट”, ग्रैंड ऑर्डर ऑफ द राइजिंग सन और थर्ड इंपीरियल की डिग्री भी शामिल था। कानो को उनके शानदार उपलब्धियों के चलते 14 मई 1999 को इंटरनेशनल जूडो फेडरेशन (IJF) हॉल ऑफ फ़ेम के पहले सदस्य के रूप में शामिल किया गया था।

कानो जिगोरो की जीवन कहानी (Kano Jigoro Life Story In Hindi) Kano Jigoro Biography

कानो के पिता कानो जिरोसाकू एक दत्तक पुत्र थे। वे वर्षों से चली आ रही पारिवारिक बिजनेस में न जाकर एक पुजारी और शिपिंग लाइन में एक वरिष्ठ क्लर्क के रूप में काम किया। इनके पिता को शिक्षा से काफी लगाव था। वे चाहते थे कि उनका बेटा अच्छी शिक्षा प्राप्त कर कुछ अच्छा करे। इसके लिए उन्हें कानो जिगोरो को उच्च शिक्षा देने में कोई कमी नहीं की। उन्होंने उस समय के सबसे विद्वान शिक्षक रहे नव-कन्फ्यूशियस विद्वान यामामोटो चिकुन और अकिता शुसेत्सु जैसे शिक्षकों के पास कानो को पढ़ने के लिए भेजा। जब कानो केवल 9 साल का था तब कानो के माता की मृत्यु हो गयी। जिसके बाद इनके पिता अपना पूरा परिवार लेकर जापान की राजधानी टोक्यो लेकर आ गए। इन्होंने अपने बेटे कानो का दाखिला एक निजी स्कूल में करा दिया।

1874 में उन्होंने अपने बेटे कानो को अंग्रेजी और जर्मन भाषा में अच्छी पकड़ बनाने के लिए यूरोपीय देशों द्वारा संचालित एक निजी स्कूल में भेज दिया। किशोरावस्था में इनके शरीर का छोटे आकार और बौद्धिक स्वभाव के कारण अक्सर छात्र उनको धमकाया करते थे। कभी-कभी तो कुछ छात्र इनको स्कूल के बाहर पीटने भी लगते थे। जिससे तंग आकर कानो जिगोरो ये सोचने लगे कि ऐसा क्या किया जाए कि उनका भी शरीर मजबूत हो। इसी बीच इनकी मुलाकात एक ऐसे आदमी से हो गयी जो जुजुत्सु करना जानता था। उसने कानो को बताया कि अगर तुम ये सिख जाते हो तो तुम्हारा शरीर भी मजबूत बन जायेगा।

उस आदमी ने इनको सिखाया कि कैसे एक छोटा और कमजोर आदमी भी एक मजबूत और हटे कटे आदमी को धूल चटा सकता है? इसके बाद तो मानो कानो के शरीर मे बिजली कौंध गयी। उन्होंने तुरन्त ही फैसला कर लिया कि अब वे जुजुत्सु जरूर सीखेंगे। पिता का लाख मना करने के बावजूद जिगोरो ने जुजुत्सु सीखने के लिए उतावले हो गए। कुछ समय तक तो इनके पिता भी बेटे को ऐसा करने से बचने के लिए कहते रहे। लेकिन बेटे की गहरी रुचि और लगन को देखते हुए उन्होंने ये कहकर हामी भर दी कि तुमको इस क्षेत्र में महारत हासिल करनी होगी।

तभी तुमको ये सीखने दिया जाएगा। कानो ने भी पिता को इस बात के लिए हामी भर दी। फिर एक बार जब कानो जिगोरो जुडो की तरफ गए फिर तो पूरी दुनिया को जुडो का पाठ पढ़ाकर ही छोड़ा। आज पूरी दुनिया में कानो के द्वारा बनाया गया जुडो को बड़ी संख्या में लोग सीखते हैं।

कानो जिगोरो ने जुडो का आविष्कार कैसे किया?

जूडो का जन्म पहली बार जुजुत्सु के बीच हुए एक मैच के दौरान हुआ था, जब कानो ने अपने बड़े प्रतिद्वंद्वी को मैट पर लाने के लिए एक पश्चिमी कुश्ती चाल को शामिल किया था। जुजुत्सु में उपयोग की जाने वाली सबसे खतरनाक तकनीकों को हटाकर, उन्होंने “जूडो” बनाया, जो कानो के व्यक्तिगत ऊर्जा का अधिकतम कुशल उपयोग और स्वयं एवम दूसरों की पारस्परिक समृद्धि पर आधारित एक सुरक्षित और सहकारी खेल है। वर्ष 1882 में, कानो ने टोक्यो में अपना खुद का एक मार्शल आर्ट जिम ‘कोडोकन जूडो संस्थान’ खोला, जहां उन्होंने वर्षों तक जूडो का विकास किया। उन्होंने इस खेल में 1893 में महिलाओं का खेल में स्वागत किया।

कानो जिगोरो की मृत्यु कैसे हुई (Kano Jigoro Death Cause In Hindi)

वर्ष 1934 के बाद से ही कानो ने खराब स्वास्थ्य के कारण सार्वजनिक जगहों पर अपने हुनर का प्रदर्शन दिखाना बन्द कर दिया। रिपोर्ट के अनुसार इनके गुर्दे की पथरी के कारण इनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा। जिसके बाद से ही लोगों को लगने लगा था कि कानो जिगोरो अब ज्यादा समय तक जीवित नहीं रहेंगे। इतनी शारीरिक परेशानियों के बावजूद कानो ने ओलंपिक जैसे कार्यक्रमों में हिस्सा लेना नहीं छोड़ा। जिसके बाद 4 मई 1938 को कानो की एक समुद्र यात्रा में बहुत ही दुखद निधन हो गया। इनके मृत्यु का कारण उस समय निमोनिया को बताया गया था।

लेकिन कुछ रिपोर्ट्स के मुताबिक इनके भोजन में जहर देकर मारने की भी बात कही गयी थी। लेकिन इनके मृत्यु का असली सच क्या है अभी तक इसकी कोई पुख्ता सबूत नहीं है। कानो के मरने के साथ जूडो नहीं मरा। इसके बजाय, 1950 के दशक के दौरान, जूडो क्लब दुनिया भर में उभरे, और 1964 में जूडो को टोक्यो ओलंपिक में एक ओलंपिक खेल के रूप में पेश किया गया और 1972 में म्यूनिख ओलंपिक में फिर से शुरू किया गया।

कानो 1909 में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) के पहले एशियाई सदस्य बने और 1960 में IOC ने जूडो को एक आधिकारिक ओलंपिक खेल के रूप में मंजूरी दी। आखिरकार कानो जिगोरो के मरने के बाद जुडो को जो सम्मान वो दिलाना चाहते थे वो मिल गया। बहरहाल, उनकी असली विरासत उनका आदर्शवाद था। कानो ने 1934 में दिए एक भाषण में कहा था
“सूर्य के नीचे कुछ भी शिक्षा से बड़ा नहीं है। एक व्यक्ति को शिक्षित करके और उसे अपनी पीढ़ी के समाज में भेजकर, हम आने वाली सौ पीढ़ियों का योगदान देते हैं।”


आपको जुडो के संस्थापक कानो जुगोरो की जीवनी कैसी लगी कमेंट करके जरूर बताइयेगा। साथ ही आपने Kano Jigoro Biography In Hindi पसंद आया हो तो इसे शेयर जरूर करें,किसी भी विषय पर और किसी भी विषय पर और अधिक जानकारी के लिए मेरे you tube channel और blog को subscribe all करे धन्यवाद।।