Lala Lajpat Rai : लाला लाजपत राय वो शख्स जिसने पहला स्वदेशी पंजाब नेशनल बैंक खोला

Top News
Lala Lajpat Rai : लाला लाजपत राय वो शख्स जिसने पहला स्वदेशी पंजाब नेशनल बैंक खोला
image by : opindia hindi

Lala Lajpat Rai : ‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपत राय वो शख्स जिसने पहला स्वदेशी पंजाब नेशनल बैंक खोला

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में ऐसे कई वीर हुए जिन्होंने देश को आजादी दिलाने में अपनी जान की भी परवाह नहीं की. ऐसे ही एक वीर थे शेर-ए-पंजाब लाला लाजपत राय. लाला लाजपत राय भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वह महान सेनानी थे जिन्होंने देश सेवा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। Lala Lajpat Rai ने 1894 में पहला स्वदेशी बैंक  पंजाब नेशनल बैंक और लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना भी की थी।

Lala Lajpat Rai ने पहला स्वदेशी पंजाब नेशनल बैंक खोला

लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) एक  बैंकर भी थे. उन्होंने देश को पहला स्वदेशी बैंक दिया. पंजाब में लाला लाजपत राय ने पंजाब नेशनल बैंक के नाम से पहले स्वदेशी बैंक की नींव रखी थी. एक शिक्षाविद के तौर पर उन्होंने दयानंद एंग्लो वैदिक (DAV) विद्यालयों का भी प्रसार किया. आज देश भर में डीएवी (DAV) के नाम से जिन स्कूलों को हम देखते हैं, उनके अस्तित्व में आने का बहुत बड़ा कारण लाला लाजपत राय ही थे.

28 जनवरी, 1865 को लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) का जन्म पंजाब के मोगा ज़िले में हुआ था. उनके पिता लाला राधाकृष्ण अग्रवाल रेवाड़ी में अध्यापक और उर्दू के प्रसिद्ध लेखक थे.यही से लाला लाजपत राय ने भी वहीं से ही प्राथमिक शिक्षा हासिल की.प्रारंभ से ही लाजपत राय लेखन और भाषण में बहुत रुचि लेते थे. उन्होंने लॉ पढ़ाई के लिए 1880 में लाहौर स्थित सरकारी कॉलेज में एडमिशन लिया.

साल 1886 में लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) का परिवार हिसार शिफ्ट हुआ. यही से उन्होंने लॉ की प्रैक्टिस की. इसके बाद लाला लाजपत राय ने हाई कोर्ट में वकालत करने के लिए 1892 में लाहौर चले गए। आगे चलकर लाला लाजपत राय ने वकालत छोड़ दी और देश को आजाद कराने के लिए संघर्ष किया.

लाला लाजपतराय को शेर-ए-पंजाब ‘(पंजाब केसरी’)भी कहा जाता है । जब बोलते थे तो केसरी की ही भांति उनका स्वर गूंजता था। जिस प्रकार केसरी की दहाड़ से वन्यजीव डर जाते हैं, उसी प्रकार से लाला लाजपत राय की गर्जना से अंग्रेज सरकार कांप उठती थी।

लाला लाजपतराय स्वावलंबन से स्वराज्य लाना चाहते थे .

वर्ष 1885 में उन्होंने सरकारी कॉलेज से द्वितीय श्रेणी में वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की और हिसार में अपनी वकालत शुरू कर दी। वकालत के अलावा लालाजी ने दयानन्द कॉलेज के लिए धन एकत्र किया, आर्य समाज के कार्यों और कांग्रेस की गतिविधियों में भाग लिया। वह हिसार नगर पालिका के सदस्य और सचिव चुने गए। वह 1892 में लाहौर चले गए।

लाला लाजपत राय ने वर्ष 1889 में वकालत की पढाई के लिए लाहौर के सरकारी विद्यालय में दाखिला लिया। कॉलेज के दौरान वह लाला हंसराज और पंडित गुरुदत्त जैसे देशभक्तों और भविष्य के स्वतंत्रता सेनानियों के संपर्क में आये। तीनों अच्छे दोस्त बन गए और स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा स्थापित आर्य समाज में शामिल हो गए।

लाला लाजपत राय (Lala Lajpat Rai) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के तीन प्रमुख हिंदू राष्ट्रवादी नेताओं में से एक थे।लाला लाजपत राय ने महाराष्ट्र के लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और बंगाल के बिपिन चंद्र पाल के साथ मिलकर कांग्रेस के भीतर ‘गरम दल’ की मौजूदगी दर्ज कराई.

उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में नरम दल (जिसका नेतृत्व पहले गोपाल कृष्ण गोखले ने किया) का विरोध करने के लिए गरम दल का गठन किया। इन तीनों को उस वक्त लाल-बाल-पाल की त्रिमूर्ति के तौर पर जाना जाता था. लाला लाजपत राय के बाद बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चन्द्र पाल इस तिकड़ी के दूसरे दो सदस्य थे। 

1897 और 1899 में उन्होंने देश में आए अकाल में पीड़ितों की तन, मन और धन से सेवा की. देश में आए भूकंप, अकाल के समय ब्रिटिश शासन ने कुछ नहीं किया. लाला जी ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर अनेक स्थानों पर अकाल में शिविर लगाकर लोगों की सेवा की.

इसके बाद जब 1905 में बंगाल का विभाजन किया गया था तो लाला लाजपत राय ने सुरेंद्रनाथ बनर्जी और विपिनचंद्र पाल जैसे आंदोलनकारियों से हाथ मिला लिया और अंग्रेजों के इस फैसले की जमकर बगावत की.

देशभर में उन्होंने स्वदेशी आंदोलन को चलाने और आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई. इसके बाद आया वह समय जब लाला जी की लोकप्रियता से अंग्रेज भी डरने लगे.

उसके बाद 1905 में ही गोखले के साथ लाजपत राय कांग्रेस प्रतिनिधि के रूप में इंग्लैंड गए और वहां की जनता के सामने भारत की आजादी का पक्ष रखा। 1907 में पूरे पंजाब में उन्होंने खेती से संबंधित आंदोलन का नेतृत्व किया।

लाला लालजपत राय 1908 में पुनः इंग्लैंड गए और वहां भारतीय छात्रों को राष्ट्रवाद के प्रति जागृत किया। उन्होंने 1913 में जापान व अमेरिका की यात्राएं कीं और स्वदेश की आजादी के पक्ष को जताया।

सन् 1914-20 तक लाला लालजपत राय को भारत आने की इजाजत नहीं दी गई. प्रथम विश्वयुद्ध में भारत से सैनिकों की भर्ती के वे विरोधी थे. अंग्रेजों के जीतने पर उन्होंने यह अपेक्षा नहीं की कि वे गांधी जी की भारत स्वतंत्र करने की मांग स्वीकार कर लेंगे.

अंग्रेज सरकार जानती थी कि लाल बाल (लाला लालजपत राय) बाल (बाल गंगाधर तिलक) और पाल (विपिन चन्द्र पाल) इतने प्रभावशाली व्यक्ति हैं कि जनता उनका अनुसरण करती है. अंग्रेजों ने अपने को सुरक्षित रखने के लिए जब लाला को भारत नहीं आने दिया

तो वे अमेरिका चले गए. वहां उन्होंने ‘यंग इंडिया’ पत्रिका का संपादन-प्रकाशन किया.पुस्तक के द्वारा उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन को लेकर गंभीर आरोप लगाये

और इसलिए इसे ब्रिटेन और भारत में प्रकाशित होने से पहले ही प्रतिबंधित कर दिया गया।साथ ही अमेरिका में 15 अक्टूबर, 1916 को ‘होम रूल लीग’ की स्थापना की।न्यूयार्क में इंडियन इनफार्मेशन ब्यूरो की स्थापना की.


साल 1920 में जब वह भारत आए तब तक उनकी लोकप्रियता आसमान पर जा चुकी थी.नागपुर में आयोजित अखिल भारतीय छात्र संघ सम्मेलन (1920) के अध्यक्ष के नाते छात्रों से उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ने का आह्वान किया।

इसी साल कलकत्ता में कांग्रेस के एक विशेष सत्र में वह गांधी जी के संपर्क में आए और असहयोग आंदोलन का हिस्सा बन गए. लाला लाजपत राय ने जलियाँवाला बाग नरसंहार के खिलाफ पंजाब में विरोध प्रदर्शन और असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया।

इस दौरान वो कई बार गिरफ्तार भी हुए। वह चौरी चौरा कांड के कारण असहयोग आंदोलन को बंद करने के गांधी जी के निर्णय से सहमत नहीं थे और उन्होंने कांग्रेस इंडिपेंडेंस पार्टी की स्थापना की।

लाला लाजपतराय के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन पंजाब में जंगल में आग की तरह फैल गया और जल्द ही वे पंजाब का शेर और पंजाब केसरी जैसे नामों से पुकारे जाने लगे. 1921 में वे जेल गए।लालाजी ने अपना सर्वोच्च बलिदान साइमन कमीशन के समय दिया.

साइमन कमीशन का विरोध

30 अक्टूबर, 1928 को इंग्लैंड के प्रसिद्ध वकील सर जॉन साइमन की अध्यक्षता में एक सात सदस्यीय आयोग लाहौर आया. उसके सभी सदस्य अंग्रेज थे. पूरे भारत में भी इस कमीशन का विरोध हो रहा था. लाहौर में भी ऐसा ही करने का निर्णय हुआ. लाहौर महानगर बंद था,

हर तरफ काले झंडे दिख रहे थे और गगनभेदी गर्जन ‘साइमन कमीशन गो बैक, इंकलाब जिंदाबाद’ सुनाई दे रहा था.पंजाब केसरी लाला लाजपत राय के नेतृत्व में बाल-वृद्ध, नर-नारी हर कोई स्टेशन की तरफ बढ़ते जा रहे थे. फिरंगियों की निगाह में यह देशभक्तों का गुनाह था.

साइमन कमीशन का विरोध करते हुए उन्होंने ‘अंग्रेजों वापस जाओ’ का नारा दिया तथा कमीशन का डटकर विरोध जताया. इसके जवाब में अंग्रेजों ने उन पर लाठी चार्ज किया. अपने ऊपर हुए प्रहार के बाद उन्होंने कहा कि ‘मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत की कील बनेगी’ लाला लाजपत राय ने अंग्रेजी साम्राज्य का मुकाबला करते हुए 17 नवंबर, 1928 को अपने प्राणों की बाजी लगा दी

लाला लालजपत राय की मिर्त्यु से ना जाने कितने भगतसिंह और ऊधमसिंह देश की आजादी के लिए तैयार हुए जिनके प्रयत्नों से हमें आजादी मिली. लाला लालजपत राय की मृत्यु के एक महीने बाद ही 17 दिसंबर, 1928 को ब्रिटिश पुलिस अफसर सांडर्स को राजगुरु, सुखदेव और भगतसिंह ने गोली से उड़ा दिया.

बाद में भगत सिंह और उनके साथी गिरफ्तार होकर फांसी पर भी चढ़े. इन तीनों क्रांतिकारियों की मौत ने पूरे देश के करोड़ो लोगों को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ खड़ा करके एक ऐसा आंदोलन पैदा कर दिया जिसे दबा पाना अंग्रेज सरकार के बूते से बाहर की बात थी.

लाला लाजपत राय पूरे जीवनभर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भारतीय राष्ट्रवाद को मजबूती से खड़ा करने की कोशिश में जुटे रहे, उनकी मौत ने इस आंदोलन को और मजूबत कर दिया. लाला लाजपत राय के निधन के 20 साल बाद भारत को आजादी हासिल हुई.

Leave a Reply