Organic farming (आर्गेनिक फार्मिंग )
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इस शृंखला को आगे बढ़ाते हुए हम जैविक खेती (ऑर्गेनिक फार्मिंग) की जानकारी दे रहे है। इसमें आप किसी भी फसल, अनाज, पेड़-पौधे, तथा फूलो की खेती करके अपने रोजगार को बड़ा सकते है। तथा ऑर्गेनिक फार्मिंग से उगाये गए फल और सब्जियों के बाजार में अच्छे दाम भी मिलते है।
आज वह लोग जो कभी रासायनिक खाद और कीटनाशकों को कृषि के लिए जरूरी बताते थे वही लोग जैविक खेती करने की सलाह देते है जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बढे और पर्यावरण को बचाया जा सके।
भारत में जैविक खेती का प्रचलन प्राचीन काल से होता रहा है। हमारे पूर्वज सदियों से जैविक खेती करते आये और इस तकनीक के इस्तेमाल से न तो भूमि की उर्वरा शक्ति कम हुई न ही हमारे जलस्रोतों और पर्यावरण पर इसका किसी भी तरह से प्रभाव पड़ा।
हरित क्रांति के बाद ही देश में रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल से कृषि की पैदावार बढ़ी किन्तु जल्दी इसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे ये रसायन बाद में बहकर नदियों, तालाबों विभिन्न जलस्रोतों में पहुंच कर उनको प्रदूषित करने लगे जिसका दुष्प्रभाव जल-जीवों और पशु-पक्षियों पर पड़ने लगा, कीटनाशकों के इस्तेमाल से उगे अनाज को खाने से इंसान की सेहत पर भी इसका दुष्प्रभाव प्रभाव पड़ने लगा।
रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल से भूमि की उर्वरा शक्ति कम हुई और कैंसर जैसी अनेक गंभीर बीमारिया उत्त्पन होने लगी। बहुत से देशों में खाद्य पदार्थों की खेती के लिये रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग पर पाबंदी लगा दी है।
लोगों में बढ़ती जागरूकता के कारण सम्पूर्ण विश्व में आर्गेनिक खाद्य पदार्थ की मांग तेजी से बढ़ रही है। जिसके चलते आर्गेनिक खेती की ओर लोगों का रुझान बढ़ता जा रहा है। आर्गेनिक खेती में रसायनिक उर्वरकों का उपयोग पूरी तरह से प्रतिबंधित होता है। साथ ही बहुत ही कम देख रेख के साथ इसकी खेती होती है।
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जैविक खेती
जैविक खेती एक ऐसी तकनीक है जिसमें प्राकृतिक तरीके से पौधों की खेती की जाती है और यह प्रक्रिया मिट्टी की उर्वरता और पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने के लिए सिंथेटिक पदार्थों से बचती है। इस व्यवसाय में लोग जैविक फल और सब्जी का उत्पादन शुरू करके उन्हें बाजार में उचित दामों पर बेचते हैं जिससे उनकी आमदनी अच्छी होती हैं। खेती करने के इस तरीके से आप कम ज़मीन से भी ज्यादा लाभ कमा सकते है क्योंकि जैविक उत्पाद बाजार में महंगा बिकता है। जैविक खेती से फसल विविधता को बढ़ावा मिलता है ।
कृषि में प्रयोग करने के साथ-साथ जैविक खाद को सेल भी किया जा सकता है।
जैविक खेती में रसायनिक खादों का प्रयोग नहीं किया जाता है। किसान खेती के लिए ऑर्गेनिक खाद और जैविक इनसेक्टीसाइट का ही उपयोग करते है। जैविक खेती की मांग बड़े शहरों में अधिक है और यहाँ पर दाम भी अच्छा मिलता है। शहरी लोग कुछ समय से अपनी हेल्थ को लेकर बहुत ही सतर्क हो गए है जिसके कारण अपने खान-पान का विषेश ध्यान देने लगे हैं। इसके लिए ऑर्गेनिक सब्जी और फ्रूट्स अब महानगरों की पहली पसंद बन रही हैं
जैविक खेती कैसे की जाती है ?
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सबसे पहले जैविक खेती करने वाले व्यक्ति को मिट्टी की अछि जानकारी होनी चाहिए अगर उसे मिटटी की जानकारी ना हो तो किसी भी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की प्रयोगशाला में या प्राइवेट लैब में यह जांच आसानी से हो जाती है। इससे हमें जमीं की उर्वरकता का (हेल्थ) पता चलता है। जिससे किसान सही खाद और कीटनाशकों की मदद से उत्तम पैदावार से अधिक से अधिक मुनाफा कमा सकते है।
दूसरा काम आपको जैविक खाद बनानी हैं। इसे जैविक फर्टिलाइजर भी कहा जाता ह। जिसका अर्थ होता है कि वो खाद जो कार्बनिक प्रोडक्ट्स (फसल के अवशेष पशु मल-मूत्र आदि) जो कि डिस्पोज होने पर कार्बनिक पदार्थ बनाना हैं और वेस्ट डिस्पोजर की मदद से 90 से 180 दिन में बन जाती है। जैविक खाद अनेक प्रकार की होती है जैसे गोबर की खाद, हरी खाद, गोबर गैस खाद आदि।
गोबर की सबसे अच्छी खाद बनाने के लिए किसान 1 मीटर चौड़ी, 1 मीटर गहरा, 5 से 10 मीटर लम्बाई का गड्ढा खोदकर उसमें प्लास्टिक शीट फैलाकर उस में खेती अवशेष की एक लेयर पर गोबर और पशु मूत्र की एक पतली परत दर परत चढ़ा कर उस में अच्छी तरह पानी से नम कर गड्ढे को कवर कर के मिट्टी और गोबर से बंद करें।
2 महीने में 3 बार पलटी करने पर अच्छी जैविक खाद बन कर तैयार हो जाएगी।
वर्मीकम्पोस्ट खाद
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आप वर्मीकम्पोस्ट खाद भी बना सकते है यह खाद केचुओं की मदद से बनाई जाती है इसके लिए छायादार व नम वातावरण की आवश्यकता होती है। इसलिए घने छायादार पेड़ के नीचे या छप्पर के नीचे केंचुआ खाद बनानी चाहिए। जगह के चुनाव के समय जल निकासी व जल के स्रोत का ख़ास ध्यान रखे ।
वर्मीकम्पोस्ट बनाने के लिए
केंचुआ 2 से 5 किलो
प्लास्टिक की शीट (जरुरत अनुसार)
गोबर (जरुरत अनुसार)
नीम पत्ता (जरुरत अनुसार)
एक लम्बा गड्ढा खोदकर उस में प्लास्टिक शीट फैला कर जरुरत के अनुसार गोबर, खेत की मिट्टी, नीम पत्ता और केंचुआ मिला हर रोज़ पानी का छिड़काव करें। 1 किलो केंचुआ 1 घंटे में 1 किलो वर्मीकम्पोस्ट बना देता हैं। वर्मीकम्पोस्ट मैं एंटीबायोटिक होता हैं और इसका उसी से फसल को कम बीमारी होती हैं।
या आप हरी खाद भी बना सकते है उसके लिए आपको — हरी खाद लोबिया, मुंग, उड़द, व गवार की फसल से बनती है। हरी खाद से अधिकतम कार्बनिक एलिमेंट्स और एण्ड्रोजन प्राप्त करने के किये इन फसल को 30-50 दिन में ही खेत में दबा दें क्योंकि इस पीरियड में पौधे सॉफ्ट होते हैं और जल्दी डिस्पोज हो जाते हैं। हरी खाद नाइट्रोजन और कार्बनिक एलिमेंट्स की आपूर्ति के साथ साथ खेत को अनेक पोषक एलिमेंट्स भी देती हैं। हरी खाद में नाइट्रोजन, गंधक, सल्फर, पोटाश, मैग्नीशियम, कैल्शियम, कॉपर, आयरन और जस्ता इत्यादि होता है जो मिट्टी को उपजाऊ (Fertile) बनाने में मदद करती है
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जैविक खेती के लिए कीटनाशक कैसे बनाएं
ऑर्गेनिक कीटनाशक को बनाना बहुत आसान है। इसके लिए हमे
एक मिट्टी का मटका
1 किलो नीम के पत्ते
1 किलो करंजा के पत्ते
1 किलो मदार के पत्ते
1 किलो गोबर
250 ग्राम बेसन
8 लीटर गौमूत्र
जैविक पेस्टीसाइड बनाने के लिए सब से पहले 3 प्रकार के पत्ते को छोटा-छोटा काट लें। सिर्फ मिट्टी के मटके में गोमूत्र डाले । इसके बाद गोबर, दीमक की मिट्टी को मिलाकर घोल बना लें। इसके बाद मटका के घोल में तीनों पत्तियों को मिलाकर मटके को ढक्कन लगा कर कपड़े से बांधकर रख दें जिससे गैस बाहर न निकले। इस मटके को बांधकर 7 दिन के लिए छाया में रख दें।
7 दिन के बाद घोल को एक कपड़े से छानकर बोतल में भर लें और फिर मटके में 7-8 लीटर गौमूत्र डालकर बांध दें। इस प्रकार 7 दिन के बाद दवा बन जाएगी और यह प्रक्रिया 6 महा तक चल सकती है। एक लीटर दवा में पहली निराई के समय 80 लीटर पानी मिला कर उपयोग करें।
दूसरी निराई 1 लीटर दवा और 60 लीटर पानी मिला करें।
तीसरी निराई के समय 1 लीटर दवा और 40 लीटर पानी मिलाकर उपयोग करें।
तम्बाकू भी पेस्टीसिड्स बनाने में उसे होता हैं। आप 250 ग्राम तम्बाकू को 1 लीटर पानी में बॉईल कर के छान लें। इसको आप 15 लीटर पानी में मिक्स कर पौधों पर स्प्रे कर सकते है।
जैविक खेती शुरू करने की लागत
अगर आप किसान है या ग्रामीण क्षेत्रों में रहते है तो तो जैविक खेती (Organic farming) शुरु करने का अधिकतर सामान आपको अपने घर और खेत में ही मिल जायेगा।यह बहुत ही कम लागत में सुरु होने वाली खेती है। ऑर्गेनिक खेती के लिए सरकारी योजनाये भी है आप उनका भी लाभ ले सकते है। जिसके अंतर्गत मिनिस्ट्री ऑफ़ एग्रीकल्चर समय-समय पर ट्रेनिंग प्रोग्राम और फाइनेंसियल हेल्प भी करता है।
ऑर्गेनिक सर्टिफिकेशन लेना आवश्यक है यह सर्टिफिकेट मार्केट में फसल बेचने में भी सहायक है
यह सर्टिफिकेट एग्रीकल्चरल एंड प्रोसेस्ड फ़ूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी द्वारा मान्यता प्राप्त सेंटर के द्वारा द्वारा फसल की जांच के बाद ही जारी किया जाता है। भारत में जैविक उत्पादों के लिए ये एक सर्टिफिकेशन योजना है
जो यह प्रमाणित करता है कि जैविक उत्पादों आपदा स्टैंडर्ड्स के अनुरूप है। ये सर्टिफिकेट उनको ही मिलता है जो कि खेती में इस्तेमाल होने वाले रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों या किसी भी हार्मोन्स के उपयोग के बिना जैविक खेती के माध्यम से फसल उगाते है। ये सर्टिफिकेट किसान की काफी हेल्प करता है जिससे बाजार में किसान अपनी फसल को अच्छे से अच्छे दाम पर बेच सकते है
ऑर्गेनिक मार्केट की जानकारी एंड प्रोफिट
![organic farming vegetables](https://sangeetaspen.com/wp-content/uploads/2020/07/organic-farming-vegetables.jpg)
ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स के मार्केट का दिन प्रति दिन विस्तार ( Expanded ) होता जा रहा है क्योंकि अब लोगो द्वारा ऑर्गेनिक प्रोडक्ट का उपयोग पहले से अधिक किया जा हैं। जैविक उत्पादों से व्यक्ति ज्यादा स्वास्थ्य रहता है। जिससे ऑर्गेनिक प्रोडक्ट्स का किसान को बहुत अच्छा दाम मिलता है। बड़ी बड़ी कम्पनीया (आर्गेनिक ग्रोफर्स, बिग बाजार आदि) अब किसानो से लॉन्ग टर्म कॉन्ट्रैक्ट कर जैविक प्रोडक्ट खेतो से ही उठा लेती हैं। किसान लोकल मंडी में भी अपना आर्गेनिक प्रोडक्ट आसानी से बेच सकते है।
कृषकों की दृष्टि से जैविक खेती में क्या क्या लाभ होते है
- भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है।
- सिचाई के अंतराल में वृद्धि होती है।
- रासायनिक खाद पर निर्भरता नहीं रहना पड़ता है।
- फसलों की उत्पादकता में भी वृद्धि होती है ।
- बाज़ार में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ने से किसानों की आमदनी में भी वृद्धि होती है।
- जैविक खाद के उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार होता है।
- भूमि की जल एकत्र करने की क्षमता बढ़ती हैं।
- भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होगा।
- जैविक खेती से पर्यावरण को लाभ।
- भूमि के जल स्तर में वृद्धि होती है।
- मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है।
- कचरे का उपयोग, खाद बनाने में, होने से बीमारियों में कमी आती है।
- फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि।
- अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद की गुणवत्ता का खरा उतरना
4 comments
बहुत ही बढ़िया जानकारी,संगीता जी। ऑर्गनिक खेती आज के समय की जरुरत है। ऐसे ही लिखती रहिए।
थैंक्यू सर पोस्ट पसंद आये तो शेयर अवश्य करे
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