Uttrakhand : पैण बाटना उत्तराखंड की एक अनोखी परम्परा

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पैण बाटना एक परम्परा
पैण बाटना एक परम्परा

उत्तराखंड (uttarakhand) पहाड़ दिखने में जितने सुन्दर हैं वही यहाँ की संस्कृति भी उतनी ही सुन्दर हैं, मै उत्तराखंड की एक परंपरा के बारे मै बताने जा रही हूँ जो लोग उत्तराखंड (uttarakhand) से हैं और मेरे youtube channal को फॉलो करते हैं उनको ये बात पहले से पता होंगी वह भी इस परंपरा को जरूर निभाते आये होंगे. हम भारतीय मेहमान को भगवान् का दर्जा देते हैं और उनका बड़े सम्मान से आदर सत्कार करते हैं. अब समय बदल गया हैं आज के समय कही मेहमान बन के जाने से पहले कई बार सोचना पड़ता हैं जिसके घर जा रहे हैं उससे पहले पूछना पड़ता हैं की भाई साहब आपसे मिलने आ सकते हैं

आप घर पर मिलेंगे अगर सामने वाले ने बोला हाँ में घर पर ही हूँ या आप 1 बजे आना मुझे 2 बजे कही जाना हैं. मतलब आप अपना सामान समेट के 1 घंटे में निकल जाना कई बार स्थित बदल जाती हैं मेजबान के पास समय होता हैं पर मेहमान के पास समय नहीं होता हैं वो भी जल्दी में होता हैं मतलब हम इतने बिजी हो गए हैं की हमारे पास खुद के लिए भी समय नहीं होता हैं . अब तो अतिथि तुम कब जाओगे वाला डयलॉग भी नहीं बोल पाते हैं.

जब भी कोई मेहमान घर आता हैं तो ऐसा लगता हैं मानो त्यौहार हो, और हर तरफ खुशी का माहौल होता ऐसा बोलते हैं ना की खुशियाँ बाटने से बढ़ती हैं ऐसी ही एक परंपरा में उत्तराखंड (uttarakhand) में हैं पैण बाटने की हलाकि अब वहाँ से पलायन के कारण बहुत काम लोग बचे हैं पर आज भी वहाँ पैण बाटने की परंपरा हैं. होता ये हैं की जब भी गांव में किसी के घर में कोई मेहमान आता हैं तो घर में मेहमान आने की खुशी में ये पैण बाटा जाता हैं स्थानीय भाषा में मेहमान को पौण कहा जाता हैं. पैण जो मेहमान द्वारा लायी गयी मिठाई या फल होता हैं उसे ही पैण कहते हैं .

लोग अपने घर पर आये मेहमान को देखकर इतने खुश होते हैं की उसकी खुशी ये पुरे गाँव के साथ पैण बाटकर साझा करते हैं, शायद इसीलिए की हम मेहमान को भगवान मानते और मेहमान के द्वारा लाया गया सामान प्रसाद के रूप में सभी को दिया जाता हैं, हर जगह पर अलग अलग परंपरा हैं कही कही पर तो आपको स्वादिष्ट व्यंजन बाटने की परंपरा देखने को मिलती हैं. यही परंपरा हैं जो वहाँ रहने वाले लोगों को आपसी प्रेम और एकता के धागे में जोड़े रखती हैं.

आज हम पैसे, जॉब या अपने बिज़नेस के कारण खुद की सेहत का भी ध्यान नहीं रख पाते हैं और रही सही कसर फ़ोन और टीवी ने पूरी कर दी हैं किसी के पास समय ही नहीं हैं, इसलिए कभी अपनों रिश्तो के लिए भी कुछ समय निकालिये, अगर आप भी अपने किसी उत्तराखंड वाले दोस्त के घर जा रहे हो तो एक बार पूछ लेना भाई पैण तो बाटेगा ना क्योंकि खुशियाँ बाटने से बढ़ती हैं, अगर आपके यहां पर भी ऐसी की कोई परंपरा हैं तो कमैंट्स में जरूर बताना.

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