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Bail Pola in 2022
Bail Pola in 2022

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Bail Pola 2022: हमारे देश में हर त्योहार अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न परंपराओं और रीति रिवाजों के साथ मनाया जाता है। ऐसा ही एक त्योहार है बैल पोला। ये पर्व, खासकर महाराष्ट्र में धूमधाम से बैल पोला पर्व मनाया जाता है। दो दिवसीय इस पर्व में बैल की पूजा करने का विधान है।

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महाराष्ट्र में ये पर्व सावन मास की पिथौरी अमावस्या पर पड़ता है। इस दिन, किसान खेत-खलिहान में मदद करने के लिए अपने मवेशियों की पूजा करते हैं और उन्हें धन्यवाद देते हैं। यह त्योहार महाराष्ट्र में अविश्वसनीय खुशी के साथ मनाया जाता है और इसे पोला मराठी त्योहार (Bail Pola 2022) के रूप में जाना जाता है।

कर्नाटक में पोला का त्योहार (Bail Pola 2022) भाद्रपद की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। इसे पिठोरी अमावस्या, कुशग्रहणी, कुशोत्पाटिनी के नाम से भी जानते हैं। इन सभी नामों में से बैल पोला के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। ये पर्व मुख्य रूप से छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश के कुछ स्थान, कर्नाटक और महाराष्ट्र में मुख्य रूप से मनाया जाता है।

पोला का त्योहार को बैल पोला, मोठा पोला और तनहा पोला (Bail Pola 2022) जैसे नामों से जानते हैं। यह पर्व दो दिन मनाया जाता है। इस दिन बैलों की पूजा की जाती है। इसके साथ ही बच्चे के लिए मिट्टी या लकड़ी का घोड़ा बनाया जाता है जिसे लेकर वह घर-घर जाते हैं और उन्हें पैसे या फिर गिफ्ट्स मिलते हैं।

इस वर्ष आज यानी 27 अगस्त को बैल पोला (Bail Pola 2022) मनाया जा रहा है. महाराष्ट्र में इस त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाते है, विशेष तौर पर विदर्भ क्षेत्र में इसकी बड़ी धूम रहती है. यह त्यौहार दो दिनों तक मनाया जाता है. वहां बैल पोला को मोठा पोला कहते हैं एवं इसके दूसरे दिन को तनहा पोला कहा जाता है.

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पोला पर्व मनाने का कारण

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब भगवान विष्णु से कृष्ण अवतार लेकर जन्माष्टमी के दिन जन्म लिया था। जब इसे बारे में कंस को पता चला, तो उसने कान्हा को मारने के लिए अनेकों असुर भेजे थे। इन्हीं असुरों में से एक था पोलासुर। राक्षस पोलासुर ने अपनी लीलाओं से कान्हा ने वध कर दिया था। कान्हा से भाद्रपद की अमावस्या तिथि के दिन पोला सुर का वध किया था। इसी कारण इस दिन पोला कहा जाने लगा। इसी कारण इस दिन बच्चों का दिन कहा जाता है।इस दिन बच्चों को विशेष प्यार, दुलार देते है.

इस तरह मनाते है बैल पोला पर्व

पोला पर्व के एक दिन भादो अमावस्या के दिन बैल और गाय की रस्सियां खोल दी जाती है और उनके पूरे शरीर में हल्दी, उबटन, सरसों का तेल लगाकर मालिश की जाती है। इसके बाद पोला पर्व वाले दिन इन्हें अच्छे से नहलाया जाता है। इसके बाद उन्हें सजाया जाता है और गले में खूबसूरत घंटी युक्त माला पहनाई जाती है। जिन गाय या बैलों के संग होते हैं उन्हें कपड़े और धातु के छल्ले पहनाएं जाते हैं।

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इसके बाद बैलों को बाजरा से बनी खिचड़ी खिलाई जाती है। सभी एक एक स्थान पर इकट्ठा होकर बैलों का जुलूस निकालते हैं । और उत्सव मनाते हैं.इस दिन घरों में विशेष तरह के पकवान जैसे पूरन पोली, गुझिया आदि चीजें बनाई जाती हैं।बैलों की पूजा से जुड़ा एक त्योहार बेंदुर होता है ।जो जून के महीने में बुआई के दौरान मनाया जाता है. इस त्योहार में भी ऐसे ही बैलों को हल्दी लगाई जाती है। उनकी उनकी पूजा होती है।

बैल पोला का लाइफ मैनेजमेंट

भाद्रपद मास की अमावस्या तक किसान अपनी फसल बो चुके होते हैं। बैलों की सहायता से ही किसान खेत जोतते है। जब किसान फसल बोकर निश्चिंत हो जाता है तब वो बैलों का धन्यवाद देने के लिए ये पर्व मनाता है। देखने में ये बात भले ही बहुत छोटी लगे, लेकिन इसके पीछे एक लाइफ मैनेजमेंट सूत्र छिपा है वो ये है कि जिन भी पशु व उपकरणों से हमारा जीवन-यापन हो रहा है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं। ये भावना हमारे अंदर विनम्रता का भाव भी पैदा करता है।