The Kashmir Files Review | कश्मीरी-हिंदुओं के दर्द के रिसते घावों के पन्ने

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The Kashmir Files Review कश्मीरी-हिंदुओं के दर्द के रिसते घावों के पन्ने
The Kashmir Files Review कश्मीरी-हिंदुओं के दर्द के रिसते घावों के पन्ने

The Kashmir Files hits the theatres | The Kashmir Files Review | कश्मीरी-हिंदुओं के दर्द के रिसते घावों के पन्ने

कौन सोच सकता है कि ‘चॉकलेट’ और ‘हेट स्टोरी’ बनाने वाले निर्देशको का ऐसा भी हृदय परिवर्तन हो सकता है की ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files)

जैसे फिल्लमें हमें देखने को मिलेंगे फिल्मकार विवेक अग्निहोत्री (Vivek Ranjan Agnihotri) की ‘द कश्मीर फाइल्स’ इन दिनों लग अलग वजहों को लेकर चर्चा में है। हालांकि सभी विवादों के बाद फिल्म 11 मार्च को रिलीज हो चुकी है ।

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‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) फिल्म को टैक्स फ्री करने की मांग सोशल मीडिया पर देखी जा रही थी, जिसके चलते इस फिल्म को अब तक सात राज्यों (हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रेदश, कर्नाटक, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश और गोवा ) में टैक्स फ्री कर दिया गया है।फिल्म द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) नब्बे के दशक में कश्मीर में हिंदुओं के नरसंहार और पलायन पर केंद्रित है।इस फिल्म में कश्मीर की सबसे गंभीर समस्या का नकाब नोंचा है। सामने जो कुछ आता है वह भीतर तक हिला देने वाला है।

जी हां इस फिल्म को जरूर देखना चाहिए क्युकी ये एक सच्ची कहानी हे जो कश्मीर के लोगो ने सही या ये कहे की फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) एक तरह से इतिहास की उन ‘फाइल्स’ को पलटने की कोशिश है जिनमें भारत देश में वीभत्स नरसंहारों के चलते हुए सबसे बड़े पलायन की कहानी है।

देश में कश्मीर पंडित ही शायद ऐसी इकलौती कौम है जिसे उनके घर से आजादी के बाद बेदखल कर दिया गया है और करोड़ों की आबादी वाले इस देश के किसी भी हिस्से में कोई हलचल तक न हुई। जिस कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक होने वाले देश का दम बार बार बड़े बड़े नेताओ द्वारा भरा जाता रहा हैं, उसके हालात की ये बानगी किसी भी इंसान को सिहरा सकती है।

इस फिल्म की कहानी की शुरुआत कोई 32 साल पहले से होती है और शुरुआत ही एक ऐसे लम्हे से होती है जो क्रिकेट के बहाने एक बड़ी बात बोलती है। घाटी में जो कुछ हुआ वह दर्दनाक रहा है। उसे पर्दे पर देखना और दर्दनाक है। आतंक का ये एक ऐसा चेहरा है जिसे पूरी दुनिया को दिखाना बहुत जरूरी है। कहानी कहने में इसके एक डॉक्यूमेंट्री बन जाने का भी खतरा था, लेकिन सच्चाई लाने के लिए खतरों से किसी को तो खेलना ही होगा।

फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ पूरी तरह से विवेक अग्निहोत्री की फिल्म है। फिल्म की रिसर्च इतनी तगड़ी है कि एक बार फिल्म शुरू होती है तो दर्शक फिर इससे आखिर तक बाहर निकल नहीं पाते। वे एंड क्रेडिट्स के वक्त एकदम गुमसुम और खामोश से बस खड़े के खड़े रह जाते हैं और पता ही नही चलता कि पूरा हॉल खड़े होकर एक निर्देशक के कर्म को शाबासी दे रहा है।

हालांकि सिनेमा के लिहाज से ये फिल्म ‘शिंडलर्स लिस्ट’ तक पहुंचने की कोशिश करती फिल्म है। यहां का नरसंहार भले उस पैमाने सा ना हो लेकिन इसका भयानक और वीभत्स एहसास उससे कुछ कम भी नहीं है।बतौर निर्देशक विवेक अग्निहोत्री ने इस फिल्म में जज्बात बोए हैं और एहसास काटे हैं। इस फिल्म में कलाकारों और तकनीशियनों ने भी कंधे से कंधा मिलाकर काबिले तारीफ काम किया है।

अनुपम खेर अरसे बाद अपने पूरे रंग मे दिखे हैं। वह परदे पर जब भी आते हैं, दर्द का एक दरिया सा उफनाता है और दर्शकों को अपने साथ बहा ले जाता है।दर्शन कुमार ने फिल्म के अतीत को वर्तमान से जोड़ने का शानदार काम किया है। उनके कैंपस वाले भाषण और इस दौरान उनकी भाव भंगिमाएं देखने लायक हैं।

चिन्मय मांडलेकर का अभिनय फिल्म की एक और मजबूत कड़ी है। उदय सिंह मोहिले ने अपने कैमरे के सहारे फिल्म का दर्द धीरे धीरे रिसते देने में कामयाबी पाई है। फिल्म का संगीत कश्मीर के लोक से प्रेरणा पाता है और हिंदी भाषी दर्शकों को इसे समझाने के लिए विवेक ने मेहनत भी काफी की है। फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ कथानक के लिहाज से इस साल की एक दमदार फिल्म साबित होती है।

सच कहु तो ये फिल्म अपना प्रचार अपने आप करती है।फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ को लेकर कहीं किसी तरह का शोर शराबा नहीं। कहीं किसी तरह का हैशटैग रिलीज से पहले ट्रेंड करने में किसी बड़ी सेलिब्रिटी का सहयोग भी नहीं। यहाँ तक की बीते दिनों विवेक अग्निहोत्री ने कॉमेडियन कपिल शर्मा (Kapil Sharma) पर आरोप लगाया था कि कपिल ने उनकी फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) को अपने शो में प्रमोट करने से इनकार कर दिया है।

The Kashmir Files Review
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‘द कश्मीर फाइल्स’ (The Kashmir Files) कहानी

यह कहानी रिटायर्ड टीचर पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर) और उनके परिवार को केंद्र में रख कर चलती है. उनके बहाने कश्मीरियों के जख्मों और तकलीफों को दिखाती है. जेएनयू, दिल्ली में पढ़ने वाला उनका जवान पोता कृष्णा (दर्शन कुमार) जब कश्मीर पहुंचता है, तो पुष्कर नाथ के पुराने दोस्तों आईएएस ब्रह्मदत्त (मिथुन चक्रवर्ती), डीजीपी हरि नारायण (पुनीत इस्सर), डॉ. महेश कुमार (प्रकाश बेलावाडी) और पत्रकार विष्णु राम (अतुल श्रीवास्तव) से मिलता है.

वहां उसका सामना हकीकत से होता है. वह उस आतंकी फारूक मलिक बिट्टा (चिन्मय मांडलेकर) से भी रू-ब-रू होता है, जो उसके परिवार समेत कश्मीर की बर्बादी का जिम्मेदार है. विश्व विद्यालय में कश्मीर को देश से अलग करने के नारे लगाने वाले कृष्णा को वहां सचाई पता लगती है और उसकी आंखों के आगे से पर्दे हटते हैं. विवेक अग्निहोत्री ने फिल्म में कश्मीर से जुड़े दुष्प्रचारों को अपनी फिल्म में लाने की कोशिश तो की है

लेकिन उसे लेकर ज्यादा मुखर नहीं हुए हैं. ताशकंद फाइल्स में जहां उनका फोकस पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमयी मृत्यु को लेकर हुई राजनीति पर था, वहीं कश्मीर फाइल्स में वह राजनीति से अधिक वहां हुए हिंसक घटनाक्रम और कश्मीर को भारत से तोड़ने वाली षड्यंत्रकारी सोच पर फोकस करते हैं.

फिल्म में दिखाई हिंसा कहीं-कहीं हिला देती है. एक दृश्य में चावल की कोठी में छुपे पंडित के बेटे को जब आतंकी गोलियों से छलनी कर देता है तो उसके खून से सने चावल बिखर जाते हैं. आतंकी पंडित की बहू से कहता है कि अगर वह इन चावलों को खाएगी, तभी उसकी और परिवार के दूसरे लोगों की जान बच सकती है. वह चावल खाती है. एक और दृश्य में आतंकी पुलिस की वर्दी में 24 कश्मीरी-हिंदुओं को एक कतार में खड़ा करके गोलियों से भून देते है. छोटे बच्चे को भी नहीं बख्शते. वे कश्मीरी-हिंदुओं और भारत का अपमान करने वाले नारे लगाते हैं. महिलाओं को हर तरह से अपमानित करते हुए पाशविक हिंसा हैं

इस फिल्म का पहला हिस्सा जहां कश्मीर में 1990 में हुए भीषण नरसंहार पर केंद्रित है, वहीं दूसरे में निर्देशक कृष्णा के बहाने नई पीढ़ी के असमंजस को दिखाते हैं, जिसे बताया कुछ गया है और सच कुछ और है. फिल्म में कश्मीर की आजादी के नारे, बेनजीर भुट्टो के वीडियो और फैज की नज्म हम देखेंगे के बहाने निर्देशक आतंकियों और अलगाववादियों के इरादे जाहिर करते हुए नई पीढ़ी की उलझन को सामने लाते हैं. काली बिंदी लगाई हुई वामपंथी-उदारवादी प्रो.राधिका मेनन के रूप में पल्लवी जोशी यहां युवाओं को गुमराह करने वालों का प्रतिनिधित्व करती हैं.

फिल्म बहुत सारे पीड़ितों की सच्ची कहानियों और दस्तावेजों पर आधारित है. कश्मीर फाइल्स बार-बार फ्लैशबैक में जाती है और एक सीध में नहीं चलती. तथ्यों पर अत्यधिक जोर देने के कारण कहीं-कहीं यह डॉक्युड्रामा की तरह भी लगती है. आर्टिकल 370 से लेकर शरणार्थी कैंपों में कश्मीरियों की दुर्दशा और उस पर राजनेताओं की संवेदनहीनता को भी निर्देशक ने यहां उभारा है. कश्मीर फाइल्स ऐसी कई सारी बातें सामनेलाती हैं, जो लोगों को जाननी चाहिए. यह मनोरंजन का नहीं, बल्कि संवेदना का सिनेमा है.

फिल्म कश्मीरी-हिंदुओं पर हुए अत्याचारों को लगातार उभारते हुए, यह अंडरटोन सवाल लेकर चलती है कि इसका हिसाब कौन देगा और उन्हें न्याय कब मिलेगा? दर्शन कुमार और मिथुन चक्रवर्ती समेत सभी कलाकारों ने फिल्म में अपना काम बखूबी किया है. लेकिन अनुपम खेर का अभिनय हाई पॉइंट है.

पुष्कर नाथ पंडित के रूप में अनुपम ऐसे शख्स की पीड़ा को पर्दे पर उतारते हैं, जो अपनी जमीन और घर से बेदखल होने के बाद पूरी जिंदगी फिर से वहां जाने का ख्वाब देखते हुए इस दुनिया से गुजर जाता है. कश्मीर भारत का सच है और इस सच के बहुत सारे सच हैं. बीते कई बरसों से सब अपने-अपने अंदाज में कश्मीर का सच कहते रहे हैं. कश्मीर फाइल्स भी एक सच दिखाती है और उसे भी देखा जाना चाहिए

The Kashmir Files Review कश्मीरी-हिंदुओं के दर्द के रिसते घावों के पन्ने
The Kashmir Files Review कश्मीरी-हिंदुओं के दर्द के रिसते घावों के पन्ने

विवेक अग्निहोत्री ने अपनी पिछली फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ से दुनिया भर के लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा। फिल्म तीन साल पहले की स्लीपर हिट फिल्म रही। उसी फिल्म का डीएनए विवेक अब अपनी इस नई फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ में लेकर आए हैं। पिछली बार उन्होंने इतिहास की मैली चादर से ढकी पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की हत्या की असलियत को दुनिया के सामने लाने की कोशिश की थी,

इस बार उन्होंने कश्मीर की सबसे गंभीर समस्या का नकाब नोंचा है। सामने जो कुछ आता है वह भीतर तक हिला देने वाला है।पुरानी फाइलों में दबे सच कई बार विचलित कर देते हैं. ताशकंद फाइल्स (2019) के बाद अब निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री ने कश्मीर की तीन दशक से अधिक पुरानी फाइल के पन्ने पलटे हैं. उनकी यह फिल्म बेचैन करती है. इस फिल्म में दिखाया गया है की

कैसे आतंकियों ने कश्मीरी-हिंदुओं को उनकी जमीन से बेदखल किया. बेरहमी से कत्ल किया. उनकी महिलाओं-बच्चों पर शर्मनाक अत्याचार किए. कश्मीरी लोग कैसे देश-प्रदेश की सरकार, स्थानीय प्रशासन, पुलिस और मीडिया जैसी ताकतों के बावजूद अपनी धरती से पलायन के बाद देश में ही शरणार्थी बन कर रह गए और आज तक उन्हें न्याय नहीं मिला. पुरानी पीढ़ियों से होता हुआ यह दर्द नई पीढ़ी की रगों में दौड़ रहा है. विवेक अग्निहोत्री ने इसी पीढ़ी-दर-पीढ़ी दर्द के बहने की कहानी को कश्मीर फाइल्स में उतारा है.

हालांकि लोग कह सकते हैं कि फिल्म में तकनीकी कमाल नहीं है, लेकिन इस फिल्म का कमाल इसका सच है। वह सच जिसे कह सकने की हिम्मत कश्मीर से निकले तमाम निर्देशक तक नहीं दिखा पाए। उस हिम्मत को अपनी मेहनत से परदे पर विवेक अग्निहोत्री ने दिखाया है हालांकि फिल्म में कुछ लोगों को ये शिकायत हो सकती है कि फिल्म अपने विषय के हिसाब से कैनवास का विस्तार नहीं पा सकी और फिल्म को तकनीकी रूप से और बेहतर होना चाहिए था।

साथ ही फिल्म की अवधि इसकी सबसे कमजोर कड़ी है। फिल्म की अवधि कम करके इसका असर और मारक किया जा सकता है। लेकिन, जिन हालात और जिस बजट में ये फिल्म बनी दिखती है,उसमें ऐसी कोई उम्मीद भी इस फिल्म से नहीं करनी चाहिए।कुल मिलाकर पूरी फिल्म कश्मीर के उस दर्द को दिखती है जिससे हम आप अनजान थे। और उन सभी कश्मीरियों के घाव दिखती है जो आज भी इस दर्द, पीड़ा को सह रहे है उनकी घाटी में वापसी नहीं हुयी है,अपने घरो से बेघर है।

फिल्म देखने के बाद निदा फाजली का शेर याद आता है, ‘बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यों नहीं जाता, जो बीत गया है वो गुजर क्यों नहीं जाता.’

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