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आस्था

Vat Savitri vrat : वट सावित्री व्रत में ‘वट’ और ‘सावित्री’ दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है। पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व है। पाराशर मुनि के अनुसार- ‘वट मूले तोपवासा’ ऐसा कहा गया है।

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Vat savitri vrat in hindi | vat savitri vrat katha | vat savitri vrat kab hai | vat savitri vrat has special significance in hinduism | वट सावित्री व्रत कल, जानें पूजा का सबसे उत्तम मुहूर्त व पूजन विधि

Vat Savitri vrat : हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत (Vat savitri vrat) का विशेष महत्व है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं। इसके साथ ही बरगद के पेड़ की पूजा का भी विधान है।

वट सावित्री व्रत (Vat savitri vrat) हर साल ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को आता है।इस साल वट सावित्री व्रत 30 मई 2022, सोमवार को है। इस साल वट सावित्री व्रत के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग का भी निर्माण हो रहा है। इसलिए इस दिन का महत्व और बढ़ रहा है। मान्यता है कि इस योग में किए गए कार्य पूर्ण होते हैं।

पुराण तथा भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह व्रत करने का विधान है, वहीं निर्णयामृत आदि के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को व्रत करने की बात कही गई है।तिथियों में भिन्नता होते हुए भी व्रत का उद्देश्य एक ही है

अमावस्या तिथि कब से कब तक

अमावस्या तिथि 29 मई 2022 को शाम 02 बजकर 55 मिनट से आरंभ होगी, जो कि 30 मई 2022 को शाम 04 बजकर 59 मिनट पर समाप्त होगी।

पूजा का सबसे उत्तम मुहूर्त

वैदिक पंचांग के अनुसार, 30 मई को वट सावित्री व्रत (Vat savitri vrat) का विशेष संयोग बन रहा है। इस दिन सुबह 07 बजकर 13 मिनट से अगले दिन 31 मई को सुबह 05 बजकर 09 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। इस दिन शनि जयंती भी है।

अगर आप पहली बार पूजा कर रही हैं, तो कुछ खास बातों का ध्यान रख लें. दो टोकरो में सामान सजा कर रख लीजिए. इसमें सावित्री और सत्यवान की मूर्ति, बांस का पंखा, कच्चा सूत, लाल रंग का कलावा, बरगद का फल, धूप, मिट्टी का दीपक, फल, फूल, बताशा, रोली, सवा मीटर का कपड़ा, इत्र, पान, सुपारी, नारियल, सिंदूर, अक्षत, सुहाग का सामान, भीगा चना, मिठाई, जल से भरा कलश, मूंगफली के दाने, मखाने का लावा शामिल हैं।

ऐसे करें पूजा

बरगद के पेड़ के पास जाकर जल चढ़ाएं।बरगद के पेड़ पर रोली और कुमकुम का टीका लगाएं। कच्चा सूत बांधकर सात बार परिक्रमा करें।विधिवत पूजा अर्चना करें, और आरती उतारें. साथ ही साथ अपने पति के लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करें।

पुराणों के अनुसार वट वृक्ष (Banyan Tree)

इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व होता है। ऐसी मान्यता है, कि बरगद के पेड़ में साक्षात ब्रह्मा, विष्णु व महेश का वास होता है।(Banyan Tree) के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और आगे के हिस्से में शिव का वास है। भगवान बुद्ध को भी वट वृक्ष यानी बरगद (Banyan Tree) के नीचे ही ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।

ऐसा माना जाता है कि वट वृक्ष यानी बरगद (Banyan Tree) के नीचे बैठकर पूजा करने और व्रत कथा आदि सुनने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

वट सावित्री व्रत (Vat savitri vrat) के दिन सुहागिन स्त्रियां अपने अखंड सौभाग्य के लिए वट वृक्ष यानी बरगद (Banyan Tree) की पूजा करती हैं।इसके साथ ही घर-परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।

यह वही तिथि है जब सावित्री अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से वापस ले आई थी। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लौटाने के लिए यमराज को भी विवश कर दिया था। इस व्रत के दिन सत्यवान-सावित्री कथा को भी पढ़ा या सुना जाता है।

वट सावित्री व्रत कल, जानें पूजा का सबसे उत्तम मुहूर्त व पूजन विधि
वट सावित्री व्रत कल, जानें पूजा का सबसे उत्तम मुहूर्त व पूजन विधि

वट सावित्री का व्रत (Vat savitri vrat) क्यों है खास खास

वट सावित्री का व्रत (Vat savitri vrat) हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या को सुहागिनें अपने पति की लंबी आयु का वरदान पाने के लिए रखती हैं। यह व्रत उतना ही महत्व रखता है जितना करवा चौथ का व्रत।

इसमें वट वृक्ष यानी बरगद (Banyan Tree) के पेड़ की पूजा की जाती है.इस वृक्ष की पूजा करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।यही कारण है कि इस दिन बरगद (Banyan Tree) के पेड़ की पूजा शुभ मानी जाती है। महिलाएं वट को कलावा बांधते हुए पेड़ की परिक्रमा करती हैं । और व्रत रखती हैं. उत्तर भारत के कुछ राज्यों में विशेष रूप से ये व्रत किया जाता है।

ये है पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, वट सावित्री (Vat Savitri Vrat) के दिन यानी ज्येष्ठ अमावस्या पर ही सावित्री ने यमराज से पति सत्यवान के प्राण वापस लिए थे। सावित्री ने इस दिन बरगद के पेड़ का पूजन किया जाता है।

इसके लिए उन्हें वट वृक्ष के नीचे ही कठोर तपस्या करनी पड़ी थी. इतना ही नहीं पति को दोबारा जीवित रखने के लिए सावित्री यमराज के द्वार तक पहुंच गई थी।

वट सावित्री पूजा का महत्व

इनकी आराधना करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्तिऔर होती है. सुहागिनों को पति की लंबी आयु और आरोग्य रहने का वरदान मिलता है. सभी पापों का नाश होता है ।

वट वृक्ष का महत्व

पुराणों में जिन वृक्षों को फलदायी कहा गया है, उनमें वट वृक्ष यानी बरगद का पेड़ भी शामिल है। ऐसा कहा गया है कि ये पेड़ इतना पवित्र है।कि इसमें ब्रह्मा, विष्णु और महादेव का वास होता है।

Vat savitri vrat
Vat savitri vrat

कथा

वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने के विधान के कारण ही यह व्रत वट सावित्री के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

सावित्री का अर्थ वेद माता गायत्री और सरस्वती भी होता है। सावित्री का जन्म भी विशिष्ट परिस्थितियों में हुआ था। कहते हैं कि भद्र देश के राजा अश्वपति के कोई संतान न थी। उन्होंने संतान की प्राप्ति के लिए मंत्रोच्चारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियाँ दीं। अठारह वर्षों तक यह क्रम जारी रहा।

इसके बाद सावित्रीदेवी ने प्रकट होकर वर दिया कि ‘राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी।’ सावित्रीदेवी की कृपा से जन्म लेने की वजह से कन्या का नाम सावित्री रखा गया।कन्या बड़ी होकर बेहद रूपवान थी। योग्य वर न मिलने की वजह से सावित्री के पिता दुःखी थे। उन्होंने कन्या को स्वयं वर तलाशने भेजा।

सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहाँ साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे क्योंकि उनका राज्य किसी ने छीन लिया था। उनके पुत्र सत्यवान को देखकर सावित्री ने पति के रूप में उनका वरण किया।कहते हैं कि साल्व देश पूर्वी राजस्थान या अलवर अंचल के इर्द-गिर्द था। सत्यवान अल्पायु थे। वे वेद ज्ञाता थे।

नारद मुनि ने सावित्री से मिलकर सत्यवान से विवाह न करने की सलाह दी थी परंतु सावित्री ने सत्यवान से ही विवाह रचाया। पति की मृत्यु की तिथि में जब कुछ ही दिन शेष रह गए तब सावित्री ने घोर तपस्या की थी

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