2021 में कब मनाई जाएगी होली, होलिका दहन का शुभ मुहूर्त तथा होलाष्टक क्या है और कब मनाया जाता है

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Holi celebrated 2021  इस वर्ष (2021) में होलाष्टक पंचांग के अनुसार 22 मार्च से आरंभ हो चुके हैं।होलाष्टक में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।से आरंभ होगा और यह (होलाष्टक) होली तक चलेगा इन दिनों में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किये जाते है। प्रत्येक वर्ष होलाष्टक आठ दिनों का होता है। परन्तु इस वर्ष (2020) में सात दिन का ही होगा। होली का त्योहार क्यों मनाते हैं ?  भारत के अन्य त्यौहारों की भाती ही होली को भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मन गया है।इस त्‍योहार को लेकर कई तरह की मान्‍यताएं प्रचलित हैं. इसी तरह इसे मनाने को लेकर कई कथाएं कही जाती हैं.होली से जुडी अनेको पौराणिक कथाओ मे से कुछ कथाये https://sangeetaspen.com ब्लॉग के माध्यम से आपके सामने है  Holi 2021 : होली पर्व (त्‍योहार) पर जानें  5 पौराणिक कथाएं (कहानी)
Holi celebrated 2021

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When will Holi celebrated in 2021

Holi celebrated 2021 : 2021 में कब मनाई जाएगी होली, होलिका दहन का शुभ मुहूर्त तथा होलाष्टक क्या है और कब मनाया जाता है।

‘रंगों के त्यौहार’ के नाम से मशहूर होली (Holi) का त्यौहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा (वसंत ऋतु) तिथि को मनाया जाता है यह मुख्य रूप से भारतीय और नेपाली पर्व है । होली पर ढोल-नगाड़े और तेज़ संगीत की आवाज़ के साथ महिलाये और पुरुष एक दूसरे को रंग लगते है और डांस करते है तथा एक दूसरे पर रंग और पानी फेंकते है होली को कई राज्यों में तीन दिनों तक मनाया जाता है

होली पर मीठे पकवान एवं मिठाईया भी बनाई जाती है इन पकवानों में गुजिया होली का प्रमुख पकवान है। गुजिया मैदे के मिश्रण में खोया (मावा) एवं मेवाओं मिश्रण के भरावन से बनाया जाता है।

इस दिन कांजी वड़ा खाने – खिलाने का भी रिवाज है।होली की शाम को लोग नए कपड़े पहन कर एक – दूसरे से होली मिलते है। जहाँ पर होली मिलने आये लोगों का स्वागत गुजिया, फल, मिठाई, नमकीन व ठंडाई (होली का प्रिय पेय) दे कर किया जाता है।

2021 कब मनाई जाएगी होली ? Holi celebrated 2021

Holi celebrated 2021 – 2021 होली की तिथि और शुभ मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ- 28 मार्च 2021 को देर रात 03:27 बजे से
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 29 मार्च 2021 को रात 12:17 बजे तक
होलिका दहन रविवार, 28 मार्च 2021
होलिका दहन मुहूर्त- शाम 6:37 से रात 08:56
अवधि- 02 घंटे 20 मिनट
रंगों भरी होली सोमवार, 29 मार्च 2021
भद्रा पूंछ- सुबह 10:13 बजे से सुबह 11:16 बजे तक
भद्रा मुख- सुबह 11:16 बजे से दोपहर 1 बजे तक

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होलाष्टक क्या है और कब मनाया जाता है ?

होलाष्टक के शाब्दिक अर्थ पर जाएं तो होला अष्टक अर्थात होली से पूर्व के आठ दिन, जो दिन होता है, वह होलाष्टक कहलाता है। सामान्य रुप से देखा जाये तो होली एक दिन का पर्व न होकर पूरे नौ दिनों का त्यौहार है। होलाष्टक के समय शुभ कार्य वर्जित होते है यह फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी को लगता है फिर आठदिनों तक रहता है। इस दौरान सभी शुभ मांगलिक कार्य रोक दिए जाते है यह दुलहंडी पर रंग खेलकर खत्म होता है।

Holi celebrated 2021

इस वर्ष (2021) में होलाष्टक पंचांग के अनुसार 22 मार्च से आरंभ हो चुके हैं।होलाष्टक में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।से आरंभ होगा और यह (होलाष्टक) होली तक चलेगा इन दिनों में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किये जाते है। प्रत्येक वर्ष होलाष्टक आठ दिनों का होता है। परन्तु इस वर्ष (2020) में सात दिन का ही होगा।

होली का त्योहार क्यों मनाते हैं ?

भारत के अन्य त्यौहारों की भाती ही होली को भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मन गया है।इस त्‍योहार को लेकर कई तरह की मान्‍यताएं प्रचलित हैं. इसी तरह इसे मनाने को लेकर कई कथाएं कही जाती हैं.होली से जुडी अनेको पौराणिक कथाओ मे से कुछ कथाये https://sangeetaspen.com ब्लॉग के माध्यम से आपके सामने है

Holi 2021 : होली पर्व (त्‍योहार) पर जानें  5 पौराणिक कथाएं (कहानी)

Holi celebrated 2021  इस वर्ष (2021) में होलाष्टक पंचांग के अनुसार 22 मार्च से आरंभ हो चुके हैं।होलाष्टक में शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं।से आरंभ होगा और यह (होलाष्टक) होली तक चलेगा इन दिनों में कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किये जाते है। प्रत्येक वर्ष होलाष्टक आठ दिनों का होता है। परन्तु इस वर्ष (2020) में सात दिन का ही होगा। होली का त्योहार क्यों मनाते हैं ?  भारत के अन्य त्यौहारों की भाती ही होली को भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मन गया है।इस त्‍योहार को लेकर कई तरह की मान्‍यताएं प्रचलित हैं. इसी तरह इसे मनाने को लेकर कई कथाएं कही जाती हैं.होली से जुडी अनेको पौराणिक कथाओ मे से कुछ कथाये https://sangeetaspen.com ब्लॉग के माध्यम से आपके सामने है  Holi 2021 : होली पर्व (त्‍योहार) पर जानें  5 पौराणिक कथाएं (कहानी)
Holi celebrated 2021

पहली कथा

शिव पुराण में इसका वर्णन है. इस कथा के अनुसार, शिव जी अपनी तपस्या में लीन थे. पार्वती जी शिव से विवाह करने के लिए कठोर तप कर रही थीं. शिव-पार्वती के विवाह में इंद्र का स्वार्थ छिपा था क्योंकि ताड़कासुर का वध शिव-पार्वती के पुत्र के द्वारा होना था.

इसी कारण इंद्र ने शिव जी की तपस्या भंग करने के लिए कामदेव को भेजा परन्तु शिव जी ने क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया. कामदेव को जलता देख उनकी पत्नी रति विलाप करने लगी। तभी आकाशवाणी हुई जिसमें रति को रुदन न करने और भगवान शिव की आराधना करने को कहा गया।

फिर रति ने श्रद्धापूर्वक भगवान शंकर की प्रार्थना की। रति की प्रार्थना से प्रसन्न हो शिवजी ने कहा कि कामदेव ने मेरे मन को विचलित किया था इसलिए मैंने इन्हें भस्म कर दिया। अब अगर ये अनंग रूप में महाकाल वन में जाकर शिवलिंग की आराधना करेंगे तो इनका उद्धार होगा।

तब कामदेव महाकाल वन आए और उन्होंने पूर्ण भक्तिभाव से शिवलिंग की उपासना की। उपासना के फलस्वरूप शिवजी ने प्रसन्न होकर कहा कि तुम अनंग, शरीर के बिन रहकर भी समर्थ रहोगे।

कृष्णावतार के समय तुम रुक्मणि के गर्भ से जन्म लोगे और तुम्हारा नाम प्रद्युम्न होगा। बाद में देवताओं ने शिव जी को पार्वती से विवाह के लिए राजी किया था. इस कथा के आधार पर होली को सच्चे प्रेम की विजय के उत्सव के रूप में मनाया जाता है।

दूसरी कथा – राक्षसी पूतना के वध की कहानी 

वासुदेव और देवकी के विवाह के बाद कंस जब देवकी को विदा कर रहा था तब आकाशवाणी द्वारा उसे पता चला कि वसुदेव और देवकी का आठवां पुत्र उसकी मृत्यु का कारण बनेगा. तभी कंस ने उन दोनों को कारागार में डाल दिया.

देवकी के 6 पुत्रों को कंस ने मार दिया था और सातवें पुत्र थे शेषनाग के अवतार बलराम. उनके अंश को जन्म से पूर्व ही वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर दिया गया था.

फिर श्रीकृष्ण का अवतार आठवें पुत्र के रूप में हुआ. उसी समय वसुदेव ने रात में ही श्रीकृष्ण को गोकुल में नंद और यशोदा के यहां पहुंचा दिया. उनकी नवजात कन्या को अपने साथ ले आए. परन्तु कंस उस कन्या का वध नहीं कर सका और फिर से आकाशवाणी हुई कि कंस को मारने वाले ने तो गोकुल में जन्म ले लिया है

इस कारण कंस ने श्रीकृष्ण को मारने के लिए उस दिन गोकुल में जन्मे सभी शिशुओं की हत्या करने का काम राक्षसी पूतना को सौंपा गया था. वह सुंदर नारी का रूप बनाकर शिशुओं को विष का स्तनपान कराने गई

लेकिन श्रीकृष्ण ने राक्षसी पूतना का वध कर दिया. उस दिन फाल्गुन पूर्णिमा थी. अत: बुराई का अंत हुआ और इस खुशी में होली का त्यौहार मनाया जाने लगा

तीसरी कथा – राधा कृष्ण के रास की कहानी (कथा)

श्री कृष्ण और राधा दोनो एक दूसरे से प्रेम करते थे। राधा-कृष्ण के संबंध की कहानी आज भी उतनी ही लोकप्रिय है जितनी पहले थी। राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम से जुड़ा है होली का त्यौहार. श्रीकृष्ण लीला का एक अंग बसंत में एक-दूसरे पर रंग डालना भी माना गया है.

श्री कृष्ण के श्याम रंग के कारण राधा उन्हें चिढ़ाया करती थी। चिढ़ कर जब श्रीकृष्ण ने यशोदा से पूछा कि “राधा गोरी और मैं काला क्यों हूँ”। कृष्ण को दुखी देखकर उन्होंने राधा को अपने रंग में रंगने के लिए कहा। यशोदा ने उन्हें राधा के मुख पर अपने पसंद का रंग लगाने की सलाह दी।

यह सुन कर श्री कृष्ण प्रसन्न हो गया। वो तुरंत गए और राधा और अन्य गोपियों को रंगने लगे। ऐसा माना जाता है

कि वो दिन फागुन के महीने के खूबसूरत दिन थे। इसके बाद से ही यह परम्परा शुरू हो गयी। इसीलिए आज भी  मथुरा-वृंदावन की होली राधा-कृष्ण के प्रेम रंग में डूबी होती है. बरसाने और नंदगांव में लठमार होली खेली जाती है.मथुरा, वृंदावन, गोकुल, ब्रज और बरसाना की होली पूरी दुनिया भर में प्रसिद्ध है।

चौथी कथा – राक्षसी ढुंढी की कहानी (कथा)

एक पृथु राजा था, उसके समय में एक ढुंढी नाम की राक्षसी थी। वह नवजात शिशुओं को खा जाती थी । क्योंकि उसको वरदान प्राप्त था कि कोई भी देवता, मानव, अस्त्र या शस्त्र उसे नहीं मार सकेगा।इसी कारण राजा की प्रजा बहुत परेशान थी। और तो और ना ही उस पर सर्दी, गर्मी और वर्षा का कोई असर होगा।

तभी राजा के राजपुरोहित ने एक मार्ग बताया उस राक्षसी को खत्म करने के लिए. फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन जब न अधिक सर्दी होगी और गर्मी, क्षेत्र के सभी बच्चे एक-एक लकड़ी एक जगह पर रखेंगे और जलाएंगे, मंत्र पढ़ेंगे और अग्रि की परिक्रमा करेंगे तो राक्षसी मर जाएगी।

इतने बच्चों को राक्षसी ढुंढी एक साथ देखकर उनके नजदीक आ गई और उसका मंत्रों के प्रभाव से वहीं विनाश हो गया।तब से भी होली का त्यौहार मनाया जाने लगा।

पांचवी कथा – हिरण्यकश्यप की कहानी 

होली पर्व पर अनेकों कहानियाँ कही जाती है। जिसमें सबसे प्रसिद्ध कहानी महान (हरी भक्त) प्रह्लाद की है। प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर राजा था।
अपने बल के अभिमान में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी।

हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु से अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेने के लिए भगवान विष्णु को मर्म चाहता था, जिसके लिए उसने अनेको वर्षो तक भगवान ब्रमा की कठोर साधना की और मनचाहा वरदान मांगा उसने वरदान मांगा की ना में दिन में मरु और ना रात में,ना आकाश में मरू ना पाताल में ना देव मुझे मार सके और ना दानव आखिरकार भगवान ब्रमा ने उसे वरदान दे दिया ।

वरदान मिलने के पश्चात हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझने लगा और लोगों अपनी पूजा भगवान की तरह करवाने लगा। हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था जिसका नाम प्रहलाद था और वह भगवान इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया,

इसलिए होली का त्योहार, होलिका की मौत की कहानी से जुड़ा हुआ है। इसके चलते भारत के कुछ राज्यों में होली से एक दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होली जलाई जाती है।।ने अपने पिता का कहना कभी नहीं माना और वह भगवान विष्णु की पूजा करता रहा। बेटे द्वारा अपनी पूजा ना करने से नाराज उस राजा ने अपने बेटे को मारने का निर्णय किया।

उसने अपनी बहन होलिका से कहा कि वो प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए क्योंकि होलिका आग में जल नहीं सकती थी। उनकी योजना प्रहलाद को जलाने की थी, लेकिन उनकी योजना सफल नहीं हो सकी और प्रहलाद बागवान विष्णु की कृपा से बच गया पर होलिका जल गई ।

इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया, इसलिए होली का त्योहार, होलिका की मौत की कहानी से जुड़ा हुआ है। इसके चलते भारत के कुछ राज्यों में होली से एक दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होलिका दहन की परंपरा भी है। होलिका दहन से अगले दिन रंगों से खेला जाता है इसलिये इसे रंगवाली होली और दुलहंडी भी कहा जाता है ।

(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य जानकारी पर आधारित हैं. sangeetaspen.com इनकी पुष्टि नहीं करता है । इन पर अमल करने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें ।)