Akshaya Tritiya 2022 date and time | Akshaya tritiya Importance significance and katha or Story | Akshaya Tritiya Katha Hindi | अक्षय तृतीया का महत्त्व, कथा

आस्था
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Akshaya Tritiya 2022

Akshaya Tritiya 2022 date and time | Akshaya tritiya Importance significance and katha or Story अक्षय तृतीया का महत्त्व, कथा

Akshaya Tritiya 2022 : हिन्दू केलेण्डर की मुख्य तिथियों में से एक है अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya).अक्षय तृतीया, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है. शुक्ल पक्ष अर्थात अमावस्या के बाद के पंद्रह दिन जिनमें चंद्रमा बढ़ता है. अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) शुक्ल पक्ष में ही आती है. इसे अखाती तीज भी कहते हैं.

अक्षय तृतीया का अर्थ

अक्षय का अर्थ होता है “जो कभी खत्म ना हो” और इसीलिए एसा कहा जाता है, कि अक्षय तृतीया वह तिथि है जिसमें सौभाग्य और शुभ फल का कभी क्षय नहीं होता. अक्षय तृतीया के दिन होने वाले कार्य मनुष्य के जीवन को कभी न खत्म होने वाले शुभ फल प्रदान करते हैं. इसलिए यह कहा जाता है,

कि इस दिन मनुष्य जीतने भी पुण्य कर्म तथा दान करता है उसे, उसका शुभ फल अधिक मात्रा में मिलता है और शुभ फल का प्रभाव कभी खत्म नहीं होता है.

अक्षय तृतीया क्यूँ मनाई जाती है | अखाती तीज (अक्षय तृतीया) के पीछे मान्यताएँ

अखाती तीज (अक्षय तृतीया) के पीछे कई हिन्दू मान्यताएँ हैं. सभी हिन्दू इसे बहूत ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. हिन्दू धर्म के साथ अक्षय तृतीया का दिन जैन धर्म के लिए भी महत्वपूर्ण होता है.कुछ इसे भगवान विष्णु के जन्म से जोड़ती हैं, तो कुछ इसे भगवान कृष्ण की लीला से. सभी मान्यताएँ आस्था से जुड़ी होने के साथ साथ बहूत रोचक भी हैं.

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|Akshaya tritiya Importance significance and katha

हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार विष्णुजी ने श्री परशुराम के रूप में धरती पर अवतार लिया था. इस दिन परशुराम के रूप में विष्णुजी छटवी बार धरती पर अवतरित हुए थे, और इसीलिए यह दिन परशुराम के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार विष्णुजी त्रेता एवं द्वापरयुग तक पृथ्वी पर चिरंजीवी (अमर) रहे. परशुराम सप्तऋषि में से एक ऋषि जमदगनीतथा रेणुका के पुत्र थे. यह ब्राह्मण कुल में जन्मे और इसीलिए अक्षय तृतीय तथा परशुराम जयंती को सभी हिन्दू बड़े धूमधाम से मनाते हैं.

त्रेता युग के शुरू होने पर धरती की सबसे पावन माने जानी वाली गंगा नदी इसी दिन स्वर्ग से धरती पर आई. गंगा नदी को भागीरथ धरती पर लाये थे. इस पवित्र नदी के धरती पर आने से इस दिन की पवित्रता और बढ़ जाती है और इसीलिए यह दिन हिंदुओं के पावन पर्व में शामिल है. इस दिन पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाने से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं.

यह दिन रसोई एवं भोजन की देवी माँ अन्नपूर्णा का जन्मदिन भी माना जाता है. अक्षय तृतीया के दिन माँ अन्नपूर्णा का भी पूजन किया जाता है और माँ से भंडारे भरपूर रखने का वरदान मांगा जाता है. अन्नपूर्णा के पूजन से रसोई तथा भोजन में स्वाद बढ़ जाता है.

दक्षिण प्रांत में इस दिन की अलग ही मान्यता है. उनके अनुसार इस दिन कुबेर (भगवान के दरबार का खजांची) ने शिवपुरम नामक जगह पर शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया था. कुबेर की तपस्या से प्रसन्न हो कर शिवजी ने कुबेर से वर मांगने को कहा. कुबेर ने अपना धन एवं संपत्ति लक्ष्मीजी से पुनः प्राप्त करने का वरदान मांगा.

तभी शंकरजी ने कुबेर को लक्ष्मीजी का पूजन करने की सलाह दी. इसीलिए तब से ले कर आजतक अक्षय तृतीया पर लक्ष्मीजी का पूजन किया जाता है. लक्ष्मी विष्णुपत्नी हैं, इसीलिए लक्ष्मीजी के पूजन के पहले भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. दक्षिण में इस दिन लक्ष्मी यंत्रम की पूजा की जाती है, जिसमें विष्णु, लक्ष्मीजी के साथ – साथ कुबेर का भी चित्र रहता है.

अक्षय तृतीया के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने महाभारत लिखना आरंभ की थी. इसी दिन महाभारत के युधिष्ठिर को “अक्षय पात्र” की प्राप्ति हुई थी. इस अक्षय पात्र की विशेषता थी, कि इसमें से कभी भोजन समाप्त नहीं होता था. इस पात्र के द्वारा युधिष्ठिर अपने राज्य के निर्धन एवं भूखे लोगों को भोजन दे कर उनकी सहायता करते थे. इसी मान्यता के आधार पर इस दिन किए जाने वाले दान का पुण्य भी अक्षय माना जाता है, अर्थात इस दिन मिलने वाला पुण्य कभी खत्म नहीं होता. यह मनुष्य के भाग्य को सालों साल बढाता है.

महाभारत में अक्षय तृतीया (Akshaya Tritiya) की एक और कथा प्रचलित है. इसी दिन दुशासन ने द्रौपदी का चीरहरण किया था. द्रौपदी को इस चीरहरण से बचाने के लिए श्री कृष्ण ने कभी न खत्म होने वाली साड़ी का दान किया था.

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अक्षय तृतीया का महत्त्व, कथा

अक्षय तृतीया के पीछे हिंदुओं की एक और रोचक मान्यता है. जब श्री कृष्ण ने धरती पर जन्म लिया, तब अक्षय तृतीया के दिन उनके निर्धन मित्र सुदामा, कृष्ण से मिलने पहुंचे. सुदामा के पास कृष्ण को देने के लिए सिर्फ चार चावल के दाने थे, वही सुदामा ने कृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिये.

परंतु अपने मित्र एवं सबके हृदय की जानने वाले अंतर्यामी भगवान सब कुछ समझ गए और उन्होने सुदामा की निर्धनता को दूर करते हुए उसकी झोपड़ी को महल में परिवर्तित कर दिया और उसे सब सुविधाओं से सम्पन्न बना दिया. तब से अक्षय तृतीया पर किए गए दान का महत्व बढ़ गया.

भारत के उड़ीसा में अक्षय तृतीया का दिन किसानों के लिए शुभ माना जाता है. इस दिन से ही यहाँ के किसान अपने खेत को जोतना शुरू करते हैं. इस दिन उड़ीसा के जगन्नाथपूरी से रथयात्रा भी निकाली जाती है.

अलग अलग प्रांत में इस दिन का अपना अलग ही महत्व है. बंगाल में इस दिन गणेशजी तथा लक्ष्मीजी का पूजन कर सभी व्यापारी द्वारा अपनी लेखा जोखा (ऑडिट बूक) की किताब शुरू करने की प्रथा है. इसे यहाँ “हलखता” कहते हैं.

पंजाब में भी इस दिन का बहूत महत्व है. इस दिन को नए मौसम के आगाज का सूचक माना जाता है. इस अक्षय तृतीया के दिन जाट परिवार का पुरुष सदस्य ब्रह्म मुहूर्त में अपने खेत की ओर जाते हैं. उस रास्ते में जितने अधिक जानवर एवं पक्षी मिलते हैं, उतना ही फसल तथा बरसात के लिए शुभ शगुन माना जाता है.
जैनियों में अक्षय तृतीया की मान्यताएँ :

हिंदुओं के साथ साथ जैन समुदाय में भी अक्षय तृतीया का महत्व है. जैन धर्म में यह दिन उनके प्रथम चौबीस तीर्थंकर में से एक, भगवान ऋषभदेव से जुड़ा है. ऋषभदेव ही बाद में जा कर भगवान आदिनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुए. ऋषभदेव जैनी भिक्षु थे. इन्होंने ही जैन धर्म में “आहराचार्य– जैनी साधुओं तक आहार (भोजन) पहुंचाने का तरीका” प्रचारित किया था. जैनी भिक्षु कभी खुद के लिए भोजन नहीं पकाते तथा कभी भी किसी से कुछ नहीं मांगते, जो कुछ भी उन्हें लोग प्रेम से दे देते, वे उसे खा लेते.

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Akshaya Tritiya 2022 date and timeथा

अक्षय तृतीया के पीछे जैन समुदाय में बहुत ही रोचक कथा है. ऋषभदेव ने अपना राज्य पाठ अपने 101 पुत्रों के बीच बाँटते हुए संसार की मोह माया त्याग दी. उन्होने छः महीने तक बिना भोजन तथा पानी के तपस्या की और फिर उसके बाद वे भोजन की आवश्यकता में ध्यान से बाहर बैठ गए. यह जैनी संत आहार की प्रतीक्षा करने लगे. लोगों ने ऋषभदेव को राजा समझकर उन्हें सोना, चाँदी, हीरे, जवाहरात, हाथी, घोड़े, कपड़े और कुछ ने तो अपने राजा को खुश करने के लिए अपनी पुत्री तक दान में दे दी.

परंतु ऋषभदेव को यह सब नहीं चाहिए था, वे तो सिर्फ भोजन के एक कौर की चाह में थे. इसलिए ऋषभदेव फिर से एक साल की तपस्या के लिए चले गए और उन्हें सालभर तक उपवास रखना पड़ा. फिर एक साल बाद राजा श्रेयांश हुए, जिन्होने अपने “पूर्व-भाव-स्मरण” (पिछले जन्म के विचार जानने की शक्ति) से ऋषभदेव के मन की बात समझी और उनका उपवास तुड़वा कर उन्हें गन्ने का रस पिलाया. यह दिन अक्षय तृतीया का दिन था. उस दिन से आजतक तीर्थंकर ऋषभदेव के उपवास का महत्व समझते हुए जैन समुदाय अक्षय तृतीया के दिन उपवास रखकर गन्ने के रस से अपना उपवास खतम करते हैं. इस प्रथा को “पारणा” कहते हैं.

Akshaya Tritiya Pooja Vidhi | अक्षय तृतीया की पूजन विधि

इस दिन भगवान विष्णु तथा लक्ष्मी की पूजा का महत्व है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है तथा विष्णुजी को चावल चढ़ाना विशेष लाभकारी होता हैं.विष्णु तथा लक्ष्मीजी की आराधना कर उन्हें तुलसी के पत्तों के साथ भोजन अर्पित किया जाता है. सभी विधि विधान पूर्णा कर भगवान की धूप-बत्ती से आरती की जाती है.

गर्मी के मौसम में आने वाले आम तथा इमली को भगवान को चढ़ा कर पूरे वर्ष अच्छी फसल तथा वर्षा के लिए आशीर्वाद मांगा जाता है. कई जगह इस दिन मिट्टी से बने घड़े पानी भर कर उसमें केरी (कच्चा आम), इमली तथा गुड़ को पानी में मिला कर भगवान को चढ़ाया जाता है.

Akshaya tritiya katha or Story | अक्षय तृतीया की कथा कहानी एवं उसको सुनने का महत्व

अक्षय तृतीया की कथा सुनने तथा विधि से पूजा करने से बहुत लाभ होता है. इस कथा का पुराणों में भी महत्व है. जो भी इस कथा को सुनता है, विधि से पूजन एवं दान आदि करता है, उसे सभी प्रकार के सुख, संपत्ति, धन, यश, वैभव की प्राप्ति होती है. इसी धन एवं यश की प्राप्ति के लिए वैश्य समाज के धर्मदास नामक व्यक्ति ने अक्षय तृतीया का महत्त्व जाना.

बहुत पुरानी बात है, धर्मदास अपने परिवार के साथ एक छोटे से गाँव में रहता था. वह बहुत ही गरीब था. वह हमेशा अपने परिवार के भरण – पोषण के लिए चिंतित रहता था. उसके परिवार में कई सदस्य थे. धर्मदास बहुत धार्मिक पृव्रत्ति का व्यक्ति था. एक बार उसने अक्षय तृतीया का व्रत करने का सोचा. अक्षय तृतीया के दिन सुबह जल्दी उठकर उसने गंगा में स्नान किया.

फिर विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना एवं आरती की. इस दिन अपने सामर्थ्यानुसार जल से भरे घड़े, पंखे, जौ, सत्तू, चावल, नमक, गेंहू, गुड़, घी, दही, सोना तथा वस्त्र आदि वस्तुएँ भगवान के चरणों में रख कर ब्राह्मणों को अर्पित की. यह सब दान देख कर धर्मदास के परिवार वाले तथा उसकी पत्नी ने उसे रोकने की कोशिश की . उन्होने कहा कि अगर धर्मदास इतना सब कुछ दान में दे देगा, तो उसके परिवार का पालन –पोषण कैसे होगा.

फिर भी धर्मदास अपने दान और पुण्य कर्म से विचलित नहीं हुआ और उसने ब्राह्मणों को कई प्रकार का दान दिया. उसके जीवन में जब भी अक्षय तृतीया का पावन पर्व आया, प्रत्येक बार धर्मदास ने विधि से इस दिन पूजा एवं दान आदि कर्म किया. बुढ़ापे का रोग, परिवार की परेशानी भी उसे, उसके व्रत से विचलित नहीं कर पायी.

इस जन्म के पुण्य प्रभाव से धर्मदास ने अगले जन्म में राजा कुशावती के रूप में जन्म लिया. कुशावती राजा बहुत ही प्रतापी थे. उनके राज्य में सभी प्रकार का सुख, धन, सोना, हीरे, जवाहरात, संपत्ति की किसी भी प्रकार से कमी नहीं थी. उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी. अक्षय तृतीया के पुण्य प्रभाव से राजा को वैभव एवं यश की प्राप्ति हुई, लेकिन वे कभी लालच के वश नहीं हुए एवं अपने सत्कर्म के मार्ग से विचलित नहीं हुए. उन्हें उनके अक्षय तृतीया का पुण्य सदा मिलता रहा.

जैसे भगवान ने धर्मदास पर अपनी कृपा की वैसे ही जो भी व्यक्ति इस अक्षय तृतीया की कथा का महत्त्व सुनता है और विधि विधान से पूजा एवं दान आदि करता है, उसे अक्षय पुण्य एवं यश की प्राप्ति होती है.

Akshaya Tritiya 2022 date and time | 2022 में अक्षय तृतीया का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त कब है?

यह सभी मुहूर्तों में अत्यंत ही शुभ माना जाता है. विद्वान पंडितों तथा धर्म को जानने वाले व्यक्ति कहते हैं, कि इस दिन शुभ कार्य करने के लिए हमें पंचांग देखने की आवश्यकता नहीं, अक्षय तृतीया हर पल हर घड़ी शुभ होता है. इस वर्ष अक्षय तृतीया 3 मई 2022 को है. अक्षय तृतीया पूजा का मुहूर्त 05:54 से 12:24 तक कुल 6 घंटे 29 मिनट के लिए है.

FAQ

Q: अक्षय तृतीया का क्या है महत्व?

Ans: इस दिन सतयुग से त्रेतायुग की शुरूआत होती है। कहा जाता है कि, इस दिन भगवान विष्णु के अवतार जिनमें हैं परशुराम, हयग्रीव और नर-नारायण में जन्म लिया था।

Q:अक्षय तृतीया कब है इसके बारे में कैसे पता करें?

Ans: इसके लिए आप पंचाग कलैंडर से जानकारी ले सकते हैं।

Q: अक्षय तृतीया के दिन क्या दान करें?

Ans: इस दिन आप चावल, नमक, वस्त्र, फल आदि चीजों का दान कर सकते हैं।

Q: अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है?

Ans: इस दिन से ही शुभ कार्यों की शुरूआत हो जाती है। इसलिए लोग इसे मनाते हैं।

Q: अक्षय तृतीया के व्रत में क्या खाना चाहिए?

Ans: जो भी आप भगवान को अर्पित करे वही प्रसाद आपको ग्रहण करना चाहिए।

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