Manjamma Jogati : मंजम्मा जोगती के संघर्ष की पूरी कहानी

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Manjamma Jogati: The Story Of Transgender Folk Dancer Who Was Conferred The Padma Shri
Manjamma Jogati: The Story Of Transgender Folk Dancer Who Was Conferred The Padma Shri

Manjamma Jogati : ट्रांसजेंडर फोक डांसर मंजम्मा जोगती को मंगलवार को राष्ट्रपति ने पद्म श्री पुरस्कार

से सम्मानित किया। पुरस्कार लेते वक्त मंजम्मा ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का अनोखे अंदाज में अभिवादन किया। इसे देखकर दरबार हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

 मंजम्मा के जीवन का सफर इतना मुश्किल रहा है कि कोई भी टूट जाता। मंजम्मा टूटी नहीं। लड़ती रहीं। समाज से, उन्हें कमजोर बताने वाली आवाजों से। आइए जानते हैं मजम्मा के

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संघर्ष की पूरी कहानी

Manjamma Jogati : कर्नाटक के बेल्लारी जिले में कल्लुकंब गांव में 50 के दशक में मंजूनाथ शेट्टी (मंजम्मा जोगती) का जन्म हुआ। मंजूनाथ ने जब स्कूल जाना शुरू किया तो उसके हाव-भाव और रहन-सहन लड़कियों जैसे थे। उसे लड़कियों के साथ रहना पसंद था। उनके साथ खेलना और डांस करना भी। वह अक्सर अपनी कमर पर तौलिया बांधता और ऐसे महसूस करता, जैसे वह तौलिया नहीं स्कर्ट हो।

भाई ने खंभे से बांधकर पीटा

मंजूनाथ (Manjamma Jogati) के भाई को लगा कि उस पर माता आ गई है। माता उतारने के लिए उसने मंजूनाथ को खंभे से बांध दिया और खूब मारा। उन्हें डॉक्टर और फिर पुजारी के पास ले जाया गया। पुजारी ने कहा कि इसके पास दैवीय शक्ति है।

मंजूनाथ के मंजम्मा जोगती बनने की कहानी भी आसान नहीं है। डॉक्टर और पुजारी को दिखाने के बाद परिजनों को अब विश्वास हो गया था कि मंजूनाथ में ट्रांसजेंडर वाले गुण हैं। मां-बाप मंजूनाथ को 1975 में होस्पत के पास हुलीगेयम्मा मंदिर ले गए। यहां जोगप्पा बनाने की दीक्षा दी जाती है।

जोगप्पा या जोगती, वह ट्रांस पर्सन होते हैं, जो खुद को देवी येलम्मा से विवाहित मानते हैं। ये देवी के भक्त होते हैं। देवी येलम्मा को उत्तर भारत में रेणुका के नाम से जाना जाता है।

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दीक्षा के लिए मंजूनाथ का ​​​​उडारा काटा गया। उडारा लड़कों की कमर के नीचे बंधा एक तार होता है। उडारा काटने के बाद मंगलसूत्र, स्कर्ट- ब्लाउज और चूड़ियां दी गईं। यहीं से मंजूनाथ को नया नाम मिला- मंजम्मा जोगती।

बातचीत में मंजम्मा (Manjamma Jogati) बताती हैं- दीक्षा लेने के बाद मैं मंजूनाथ से मंजम्मा जोगती बन गई। घर का बेटा मंजूनाथ खत्म हो चुका था। मां को बेटा खोने का दर्द था। मेरी मां कई दिनों तक घर में पड़े रोती रही। वह बात-बात में कहती कि मैंने अपना बेटा खो दिया है। मेरा बेटा अब मेरे लिए मर चुका है।

मां की ये बातें मंजम्मा सह नहीं सकी और एक दिन उसने जहर खा लिया, लेकिन घर वाले उसे अस्पताल ले गए और उसकी जान बच गई।

भीख मांगी, गैंगरेप का भी शिकार हुईं

 मंजम्मा (Manjamma Jogati) ने घर छोड़ने का फैसला कर लिया। घर से निकलने के बाद उनके पास खाने और रहने का कोई ठिकाना नहीं था। मंजम्मा भीख मांगकर गुजारा करने लगीं। उसी दौरान उनका छह लोगों ने रेप किया। जो पैसे उन्होंने भीख मांगकर जुटाए थे, वे भी लूट लिए गए।

मंजम्मा को लगा कि अब इस दुनिया में आखिर जीने के लिए क्या है, किसके लिए जिया जाए। उन्होंने फिर से आत्महत्या का रास्ता चुनना चाहा, लेकिन सड़क पर जोगती नृत्य करते एक बाप-बेटे को देखकर उन्होंने ये फैसला बदल दिया।


ऐसे शुरू हुआ मंजम्मा का जोगती नृत्य कर्नाटक में दावणगेरे बस स्टैंड के पास एक पिता-पुत्र की जोड़ी लोक गीत और नृत्य के जरिए लोगों का मन बहला रही थी। पिता गीत गाते और बेटा नाचता था। बेटा सिर्फ नाच ही नहीं रहा था, बल्कि स्टील के घड़े को सिर पर रखकर, उसे बिना गिराए अपनी कला का प्रदर्शन भी कर रहा था। वह जमीन पर गिरे सिक्कों को अपने मुंह से उठा भी रहा था, इसी अवस्था में। यही ‘जोगती नृत्य’ है।

दूर खड़े तमाम लोगों के बीच एक महिला बड़े ध्यान से इन्हें देख रही थी। यह कोई और नहीं बल्कि मंजम्मा जोगती थी। इसी पिता से मंजम्मा ने भी यह नृत्य सीखने का मन बनाया और उनके शरण में चली गई। मंजम्मा अब रोज उस आदमी की झोपड़ी में जाकर नृत्य सीखने लगीं।

जोगती नृत्य जोगप्पा लोगों का लोक नृत्य है। इस पारंपरिक लोक नृत्य को जो महिलाएं करती हैं, वह आमतौर पर ‘ट्रांस वीमेन’ होती हैं।जोगती नृत्य जोगप्पा लोगों का लोक नृत्य है। इस पारंपरिक लोक नृत्य को जो महिलाएं करती हैं, वह आमतौर पर ‘ट्रांस वीमेन’ होती हैं।

क्या है जोगती नृत्य ?

 जोगप्पा लोगों का लोक नृत्य है। इस पारंपरिक लोक नृत्य को जो महिलाएं करती हैं, वह आमतौर पर ‘ट्रांस वीमेन’ होती हैं। मंजम्मा जोगती भी ट्रांस वीमेन हैं। ये मुख्यतः उत्तरी कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में रहती हैं। उनके नृत्य के लगाव को देखते हुए साथी जोगप्पा ने उन्हें एक लोक कलाकार से मिलवाया। उसका नाम था, कालव्वा। इन्होंने मंजम्मा से नृत्य करने को कहा।

कालव्वा एक विशेषज्ञ थे और मंजम्मा नौसिखिया। वह डर गईं कि इतने बड़े लोक कलाकार के सामने वह कैसे नाचेंगीं, लेकिन होनी को यह डर मंजूर न था। मंजम्मा नाचीं और बेहद खूबसूरत नाचीं। कालव्वा जैसे-जैसे धुन बदलते, मंजम्मा उतना ही बेहतरीन नाचतीं। इसके बाद कालव्वा ने उन्हें नाटकों में छोटे-मोटे रोल के लिए बुलाना शुरू किया।

मंजम्मा अब जोगती नृत्य की पहचान बन गई थीं। उन्होंने ही इस नृत्य को आम जनमानस में पहचान दिलाई।

जोगती नृत्य की पहचान बन गई मंजम्मा

मंजम्मा धीरे-धीरे लीड रोल करने लगीं। उनका थिएटर और नृत्य में मन लग गया। अब उनके नाम भर से शो चलने लगे। मंजम्मा अब जोगती नृत्य की पहचान बन गई थीं। उन्होंने ही इस नृत्य को आम जनमानस में पहचान दिलाई।  ‘सच कहूं तो मैंने ये नृत्य इसलिए नहीं सीखा क्योंकि मेरा बहुत मन था। मैंने ये नृत्य इसलिए सीखा ताकि अपनी भूख से लड़ सकूं। इससे अपनी जिंदगी चला सकूं।

अगर मैंने सड़कों पर भीख मांगना या फिर सेक्स वर्कर बनना चुना होता तो आज मैं जिंदा नहीं होती। जोगती नृत्य ही मुझे आगे लेकर आया है और मैं चाहती हूं कि ये नृत्य और जोगप्पा समुदाय आगे बढ़े। जो इसने मेरे लिए किया, मैं भी इसके लिए वही कर सकूं।’ जोगप्पा एक ट्रांस समुदाय है।

कर्नाटक जनपद अकादमी की पहली ट्रांसजेंडर अध्यक्ष

साल 2006 में मंजम्मा जोगती (Manjamma Jogati) को कर्नाटक जनपद अकादमी अवॉर्ड दिया गया। फिर साल 2010 में कर्नाटक राज्योत्सव सम्मान। आज वह ‘कर्नाटक जनपद अकादमी’ की पहली ट्रांसजेंडर अध्यक्ष हैं। अब तक इस पद पर सिर्फ पुरुष ही चुने जाते थे। यह अकादमी साल 1979 में बनी थी। इस संस्था का काम राज्य में लोक कला को आगे बढ़ाना है।

स्कूल और यूनिवर्सिटी की किताबों में मिली जगह

उनकी आत्मकथा ‘नाडुवे सुलिवा हेन्नु’ है। इस किताब में ट्रांसजेंडर्स की कहानी के साथ जोगती नृत्य के बारे में ढेरों जानकारियां हैं। कर्नाटक में वह इतनी लोकप्रिय हैं कि उनकी बायोग्राफी हावेरी जिले के स्कूलों और कर्नाटक लोक विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाती है।

गुलबर्ग विश्वविद्यालय ने अगले तीन साल के लिए उनकी आत्मकथा का 100 पन्नों का सारांश तैयार किया है, जिसे ग्रेजुएशन के स्टूडेंट्स चौथे सेमेस्टर के दौरान पढ़ेंगे। इससे पहले, कर्नाटक राज्य अक्का महादेवी महिला विश्वविद्यालय ने मंजम्मा जोगती की बायोग्राफी को अपने सिलेबस में शामिल किया था। मजम्मा के जीवन का संघर्ष और उनका साहस अनवरत जारी है।