migrating to Uttarakhand : उत्तराखंड मे पलायन क्यों हुआ इसका जिम्मेदार कौन है और इसको कैसे रोका जा सकता है

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uttarakhand migration a big problem and solution
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migrating to Uttarakhand : पलायन एक ऐसी समस्या है जिसके कारण वहां की संस्कृति और सभ्यता खतरे मे आ जाती है और इस समस्या से देश के कई राज्य जूझ रहे. आज हम बात करने वाले है उत्तराखंड के बारे मे जहां पहाड़ो से लोगो के पलायन से वहां की संस्कृति और सभ्यता भी खतरे मे है.

migrating to Uttarakhand : ये पलायन क्यों हुआ इसका जिम्मेदार कौन है और इसको कैसे रोका जा सकता है

इसी को जानने के लिए विडिओ के अंत तक बने रहे और अगर वीडियो पसंद आये तो इसको लाइक और शेयर करना नहीं भूले अगर आपका भी कोई सुझाव है जो पलायन को रोकने मे सहायक हो तो मुझको कमैंट्स कर जरूर बताये.

उत्तराखंड के पहाड़ो पर छोटे छोटे गांव है जो कई जिलो मे बटे है. कृषि लोगो की आजीविका का मुख्य साधन है यहां रहने वाले लोग मेहनती ईमानदार और सरल स्वभाव के है लोग इतने सीधे है की यहां आपको पुलिस स्टेशन नहीं मिलेंगे, मतलब कानून व्यवस्था जैसी कोई समस्या नहीं है

यहां के लोगों के लिए उनका सम्मान ही सबसे बड़ी पूजी है कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किये गए पटवारी पर होती है. पटवारी एक तरह का अकाउंटेंट होता है जो की जमीन के रिकार्ड का लेखा जोखा रखता है.

सब कुछ इतना अच्छा है तो वहां के लोग पलायन क्यों कर रहे है ?

सरकारों ने वहाँ की समस्याओ पर ध्यान नहीं दिया. पानी, सड़क , स्कूल, अस्पताल, रोजगार आदि बुनियादी सुविधाओं से आज भी पहाड़ वंचित है, हलाकि अब सरकार तेजी से सड़को का निर्माण कर रही है पर अब लोग गावो से पलायन (migrating to Uttarakhand) कर चुके है

पीने के पानी की समस्या लगभग हर गांव मे है और वहां की सरकारों ने आज तक इसके लिए कोई रोड मैप तैयार नहीं किया है पीने के पानी की वयवस्था करने मे ही यहां के लोगों का काफी समय चला जाता है

सड़क का ना होना दूसरा कारण है लोगों को कई किलोमीटर तक पैदल जाना पड़ता है पलायन का

कारण है मेडिकल इमरजेंसी मे मरीज को कई किलोमीर तक डोली या घोड़े की सहायता से प्राथमिक उपचार के लिए ले जाना पड़ता है और अगर मरीज की हालत गंभीर है तो इस स्थिति मे उसको नजदीकी शहर जाना पड़ता है क्योंकि यहां पर हॉस्पिटल नहीं है अगर हॉस्पिटल है

भी तो वहां पर आपको डॉक्टर नहीं मिलेंगे, सांप के काटने और गर्भवती स्त्रियों को समय पर उपचार नहीं मिल पाने के कारण हर साल कई लोगों की अकाल मृत्यु हो जाती है.

अच्छे स्कूल का नहीं होना भी एक कारण है प्राइमरी स्कूल मे हालत और भी ख़राब है किसी स्कूल मे 2 बच्चे है तो कही 1 कॉम्पीटिशन के इस दौर मे हर माता पिता अपने बच्चे को इंग्लिश मेडिअम मे पढ़ना चाहता है

अच्छे टीचर्स का ना होना मान लीजिये आप केमिस्ट्री, जैसे सब्जेक्ट पढ़ना चाहते है तो आपको टीचर्स नहीं मिलेंगे. कई बार तो कॉलेज आपको बताते है की आपको कौनसा सब्जेक्ट पढ़ना है यह भी एक कारण है की लोग अपने बच्चों के पढ़ने के लिए भी शहरो की और पलायन (migrating to Uttarakhand) कर रहे है.

migrating to Uttarakhand : रोजगार के साधन नहीं होना भी समस्या है

लोग उत्तराखंड से बाहर जाकर अपने नए पहचान पत्र बनाते है और उनके पुराने पहचान पत्र बड़ी संख्या मे निरस्त हो रहे है पर राज्य सरकार इस तरफ ध्यान नहीं देती है जिन ग्राम सभाओ मे 500 वोटर तक होते थे आज वहां पर केवल 20 से 25 वोटर रह गए है

सरकार के गलत फैसले – आजादी के बाद सरकारो ने तेजी से वृक्षा रोपण का कार्य किया और उन्होंने स्थानीय वनस्पति जैसे बाज, देवदार, बुरास, काफल आदि को ना चुन कर बड़ी संख्या मे चीड़ के पेड़ो का वृक्षा रोपण किया

और देखते ही देखते हिमालयन वनो के स्थान पर ये चीड़ के विशाल जंगलो ने ले ली चीड़ का एक पेड़ जो की 50 फ़ीट या इससे भी ऊंचा हो सकता है इस पेड़ को अधिक पानी की की जरूरत होती है और इसके के पत्ते जिनको स्थानीय भाषा मे पिरुल कहा जाता है वह पहाड़ो के लिए बहुत ही घातक साबित हुवे

हर साल फ़रवरी से मार्च के बीच मे चीड़ के पत्ते ज़मीन पर गिरते है और अप्रैल मे जैसे ही गर्मी आती है तो ये जंगल इस पिरुल के कारण आग की चपेट मे आ जाते है. और इन जंगलो मे उगने वाली जो वनस्पति जीव जंतु सब नष्ट हो जाते है

मतलब ये पेड़ किसी और पेड़ को उगने नहीं देती और और आग लगने से यहाँ पहले से ज्यादा गर्मी पड़ने लगी है और वातावरण मे co2 की मात्रा बढ़ती जो वन्य जीव है वो भी गावो मे आ जाते है स्थानीय निवासियों के मवेसियों को अपना शिकार बनाते है कई बार ये जानवर स्थानीय लोगों पर भी हमला कर देते है

साथ ही उनकी फसलों को भी नष्ट कर देते है. बन्दर और जंगली सुवर वहां के किसानो के लिए चुनौती बन गए. आपने अमेज़न के जंगलो मे लगी आग के बारे मे सुना होगा या अमेरिका,

या ऑस्ट्रेलिया के जंगलो के बारे मे हर साल मीडिया मे खबरे आती रहती है कई प्रोजेक्ट चलाये जाते है इन जंगलो को बचाने के लिए पर ये हमारा दुर्भाग्य है की उत्तराखंड के जंगलो की कोई सुध नहीं लेता है

आप कहंगे की चीड़ के पेड़ो का पलायन (migrating to Uttarakhand) से क्या सम्बन्ध है एक बात जान लीजिये जो हिमालयन वनस्पति के जंगल है वहां इन चीड़ के जंगलो की अपेक्षा ज्यादा सर्दी पडती है और यह सेव यानि apple के बागो के उपयुक्त है, दूसरा ये पानी को संचय करने मे समर्थ है

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जिन स्थानों पर ये वन है वहां पर आपको पानी की समस्या काम ही देखने को मिलती है और ऐसे स्थानों पर बारिश भी अधिक मात्रा मे होती है जो की यहाँ सिचाई के साधन नहीं होने के कारण कृषि पूरी तरह से बारिश पर निर्भर करती है, और सबसे महत्वपूर्ण बात इन जंगलो मे आग भी नहीं लगती है और वन्य जीव भी फलते फूलते है.

migrating to Uttarakhand : अब बात करते है की पलायन को कैसे रोका जा सकता है.

राज्य सरकार को वहां की समस्याओ को ध्यान मे रखते हुवे पीने के पानी और रोड और मेडिकल फैसिलिटी कार्य करने की जरूरत है टूरिज्म को बढ़ावा देने की जरूरत है, जैसे पैरागलिडिंग, स्केललाइन वाक, बूंगी जमपिंग, को बढ़ावा देने की जरूरत हैजो पर्यटको को अपनी और आकर्षित करती है

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जिससे वहां पर्यटन को बढ़ावा मिले और लोगों के लिए रोजगार के नए अवसर बन सके धार्मिक स्थलों के लिए नए यातायात के साधन पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है जिससे लोग आसानी से वहां पर पहुंच सके,

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सरकार को नई फसलो के बारे मे स्थानीय लोगों जागरूक करने की जरूरत है, जैसे मछली पालन, पशुपालन, अखरोट, बादाम, आम, कीवी, डरेगानफ़्रूट अनार आदि की जानकारी और तकनीक मुहया करना जैसे पेड़ो को ग्राफ के माध्यम से उच्च गुणवत्ता के फालदार वृक्ष जो कुछ ही सालो मे फल देने लगते है और बाजार मे इनकी भारी माँग होती और कीमत भी अच्छी मिलती है .

Essential oil निकलने की तकनीक स्थानीय लोगों को मुहया कर स्थानीय किसानो के लिए आय के नए स्रोत उत्पन्न कर सकता है लेमन इन स्थानों मे काफ़ी मात्रा मे उत्पन्न होता है 1 किलो lemon oil की कीमत 1000 से 2000 रूपये तक होती है

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सच कहु तो सरकार से ये उम्मीद करना बेमानी है मैंने वीडियो के सुरु मे कहा था की संस्कृति को खतरा है उत्तराखंड मे बड़ी संख्या मे बाहरी लोग आकर बसने लगे है जिके कारण वहां पर क़ानून व्यवस्था और स्थानीय लोगों के लिए खतरा बढ़ गया है

और लोग अब इसके लिए भूमि अधिग्रहण कानून की माँग कर रहे है पता सरकार आँखे बंद करके बैठी है इसके लिए वहां के लोगों को ही सामने आना पड़ेगा, और मशरूम गर्ल दिव्या रावत एक मिसाल है 

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इनके बारे मे मैंने पूरी एक पोस्ट लिखी है जिसको आप मेरे ब्लाग मे पढ़ सकते है लिंक मैंने डिस्क्रिप्शन मे दे दिया है पोस्ट आपको कैसा लगा कमेंट कर जरूर बताये धन्यबाद

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