Disadvantages of Eating Raw Ice | Side Effects Of Eating Raw Ice | kachchee barf khane ke nuksan |कच्ची बर्फ खाने के नुकसान
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Disadvantages of Eating Raw Ice | Side Effects Of Eating Raw Ice | kachchee barf khane ke nuksan |कच्ची बर्फ खाने के नुकसान
Disadvantages of Eating Raw Ice :
2 तरह की होती है बर्फ
बर्फ 2 तरह की होती है. एक होती है पक्की बर्फ और दूसरी कच्ची बर्फ (Raw Ice). पक्की बर्फ में केवल पानी होता है. पक्की बर्फ पूरी तरह पारदर्शी होती है. यह बर्फ साफ पानी से जमाई जाती है. ये आमतौर पर आइस क्यूब के रूप में इस्तेमाल होती है. इसका सेवन करना सेहत के लिए खतरनाक नहीं है.
फैक्ट्रियों में बनती है कच्ची बर्फ
वहीं जबकि कच्ची बर्फ (Raw Ice) में पानी के साथ कार्बन डाई ऑक्साइड, ऑक्सीजन समेत कई गैस घुली होती हैं. कच्ची बर्फ बड़ी आइस फैक्ट्रियों में बनाई जाती है, जहां इसे विभिन्न जगहों पर डिलीवरी के लिए भेज दिया जाता है. इस कच्ची बर्फ के निर्माण में अधिकतर फैक्ट्रियां दूषित पानी का इस्तेमाल करती हैं. ऐसे में जब आप उस कच्ची बर्फ से बने जूस, शिकंजी या आइसक्रीम का सेवन करते हैं तो वह गंदा पानी भी आपके शरीर के अंदर जा रहा होता है.
![Disadvantages of Eating Raw Ice](https://sangeetaspen.com/wp-content/uploads/2022/05/Disadvantages-of-Eating-Raw-Ice-1024x583.jpg)
कच्ची बर्फ में छिपे होते हैं बैक्टीरिया
हेल्थ एक्सपर्ट का मानना है कि इन कच्ची बर्फ (Raw Ice) में महीन बैक्टीरिया छुपे होते हैं, जो खुली आंखों से दिखाई नहीं देते. ऐसे में जब कोई स्ट्रीट वेंडर गन्ने के जूस या शिकंजी में ऐसी कच्ची बर्फ डालकर बेचता है तो पीने वालो को हेपेटाइटिस ए, ई, टायफाइड की बीमारी हो सकती है. इस कच्ची बर्फ में कोलिफॉर्म बैक्टीरिया भी हो सकते हैं, जिसके चलते फूड बोर्न जैसी बीमारियां हो सकती हैं. इतना ही नहीं लगातार कच्ची बर्फ का यूज करने वाले लोगों में डायरिया, पीलिया, टाइफाइड, गैस्ट्रोएन्टराइटिस और कैंसर का खतरा भी हो सकता है.
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बाहर कच्ची बर्फ के सेवन से बचें
डॉक्टरों के मुताबिक अगर आपका बाहर कहीं जूस पीने का मन करता है तो आप बिना बर्फ का जूस मांगिए. अगर आप ऐसा नहीं करना चाहते और केवल ठंडा जूस ही पीना चाहते हैं तो बिना बर्फ का जूस बनवाकर उसे घर ले आइए और फिर अपने फ्रिज में से पक्की बर्फ डालकर ठंडा कर लीजिए. इस प्रकार आप उस कच्ची बर्फ (Raw Ice) के सेवन से बच जाएंगे और आपकी सेहत को भी नुकसान नहीं होगा.
कैसे पहचानें कौन सी है खाने की बर्फ और कौन है इंडस्ट्रियल आइस
फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया यानी एफएसएसएआई के अनुसार, खाने की बर्फ और इंड्रस्ट्रियल यूज वाली बर्फ की पहचान की जानी चाहिए। यह किस रूप में बाजार में बिके, यह जिम्मेदारी फूड सेफ्टी ऑफिसर की होती है। एफएसएसएआई ने बताया है कि इंडस्ट्रियल आइस की पहचान के लिए इसमें नीले रंग का इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
स्टैंडर्ड के अनुसार, इंडस्ट्रियल आइस में 10 पीपीएम (पार्ट पर मिलियन) तक इन्डिगो कार्मिन या ब्लू रंग मिलाया जा सकता है। इससे खाने वाली बर्फ से आसानी से अंतर दिख सकेगा। चतुर्भुज मीणा बताते हैं कि प्रैक्टिकल में स्टैंडर्ड का पालन नहीं होता। सड़क पर लाल-पीले, हरे रंगों में बिकने वाली बर्फ का गोला हाइजीनिक नहीं होता। बर्फ की सिल्लियां तोड़कर जो कुल्फी बनाने में इस्तेमाल की जाती है वो भी सेफ नहीं होती।
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बार-बार आइस क्यूब खाने का मन करता है तो सतर्क हो जाएं
कई बार लोग आइस क्यूब खाते हैं। दांतों से इसे चबाते हैं। इससे जुड़े रिसर्च में कहा गया है कि जब कोई स्ट्रेस में होता है तो आइस क्यूब खाने की इच्छा होती है। यदि कोई प्रतिदिन 20 आइस क्यूब खाता है तो उन्हें दांतों से जुड़ी परेशानी हो सकती है। दांतों के एनामेल नष्ट हो जाते हैं। साथ ही दांतों में क्रैक पड़ जाते हैं। प्रेगनेंसी, माहवारी, ब्रेस्ट फीडिंग के दौरान महिलाओं में आइस क्यूब खाने की इच्छा बढ़ जाती है। टेक्नीकली इस मेडिकल कंडीशन को PICA कहा जाता है।