Navratri : नवरात्रि पर्व भक्ति के साथ नारी शक्ति के सम्मान का पर्व है

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Navratri : नवरात्रि पर्व भक्ति के साथ नारी शक्ति के सम्मान का पर्व है
Navratri : नवरात्रि पर्व भक्ति के साथ नारी शक्ति के सम्मान का पर्व है

नवरात्रि (Navratri) पर्व भक्ति के साथ नारी शक्ति के सम्मान का पर्व है

Navratri : नवरात्रि’ (Navratri) में हम ‘नव दुर्गा’ की उपासना करते हैं। नवरात्र यूं तो ‘पवित्र रात्रि’ का प्रतीक है, ऐसी रात्रि जो पाप रूपी अंधेरे का शमन कर जीवन में नई रौशनी का संचार करती है। नौ दिनों तक नौ देवियों की पूजा कर जीवन के समस्त बवंडरों से मुक्ति पाने की कामना भी इसमें विशेष स्थान रखती है। देवी दुर्गा जो स्त्री का प्रतीक है, जो ‘शक्ति’ कहलाती है उसकी पूजा की जाती है, जीवन के समस्त दुखों-पापों, अंधेरों का नाश कर इसमें खुशी और सौंदर्य के रूप में नव ऊर्जा के संचार की कामना-प्रार्थना के साथ।

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नवरात्र (Navratri) एक साल में कुल 4 बार आते हैं, जिनमें से शारदीय और चैत्र नवरात्र का महत्व सबसे अधिक होता है। इस साल शारदीय नवरात्र 7 अक्टूबर से शुरू हो चुके हैं, जो 14 अक्टूबर को खत्म होंगे फिर 15 अक्टूबर को विजय दशमी यानी दशहरा मनाया जाएगा। हिंदू पांचांग के अनुसार हर साल आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शारदीय नवरात्र की शुरुआत होती है, जिसमें 9 दिनों तक देवी दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है।

नवरात्र (Navratri) पर्व सही अर्थ में स्त्रीत्व का आनंदोत्सव है। किसी भी समाज में स्त्री के अस्तित्व और उसके सामर्थ्य के प्रति कृतज्ञता को प्रदर्शित करता ऐसा त्योहार देखने को नहीं मिलता। यह त्योहार माँ दुर्गा और राक्षस महिषासुर के बीच हुई लड़ाई से जुड़ा है। इस युद्ध में माँ ने महिषासुर के अन्यायों और अत्याचारों से समस्त सृष्टि और देवताओं की रक्षा की थी। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई का विजयोत्सव है।

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ये नौ दिन पूरी तरह से दुर्गा और उनके आठ अवतारों के पूजन को समर्पित हैं। प्रत्येक दिन एक अवतार से जुड़ा है। अंतिम दिन दशहरा मनाया जाता है जो रावण पर भगवान राम की जीत का उत्सव है। कहते हैं कि मर्यादा पुरुषोत्तम राजा राम ने भी लंका विजय से पूर्व माँ की आराधना कर आशीर्वाद और अनुमति ली थी। अतः, वो माँ शक्ति के आशीर्वाद के कारण ही जीते।

स्त्रीत्व के उत्कर्ष का स्वरूप, माँ के नौ अवतार के माध्यम से पूर्णतः परिलक्षित होता है जो की निम्न है:

  • शैलपुत्री – त्रिदेव शक्ति और सृष्टि की सृजनकर्ता है।
  • माँ ब्रह्मचारी – आध्यात्मिकता, ध्यान, शांति, समृद्धि और खुशी की प्रतीक है।
  • माँ चंद्रघंटा – अधर्म-नाशक और धर्म-शासिका का प्रतिबिंब हैं।
  • कुष्मांडा – माँ सृष्टि का आरंभ और तमसहर्ता है।
  • स्कंदमाता – माँ ज्ञान, शक्ति, अग्नि, ऊर्जा, जीवन और समृद्धि का पर्याय है।
  • कात्यायनी – योद्धा देवी महिषासुरमर्दिनी हैं।
  • कालरात्रि – बुराई का नाश करने वाली देवी दुर्गा का हिंसक रूप है।
  • महागौरी – पवित्रता, ऊर्जा और प्रतिभा का प्रतिनिधित्व करती है।
  • सिद्धिदात्री -वह सर्वव्यापक है, ज्ञान है।

उपयुक्त लिखित नवदुर्गा के शक्ति और गुणों का अगर अवलोकन करेंगे तो पाएंगे की सनातन संस्कृति में स्त्री न सिर्फ प्रकृति का अंग है बल्कि शक्ति का एकमात्र स्रोत भी है। नवरात्र इसी नारी शक्ति-स्रोत का पूजन है। शक्ति जिससे सृष्टि का आरंभ हुआ। शक्ति जो सृष्टि के पालन और अंत के लिए उत्तरदायी है।

शक्ति जो संतुलन स्थापित कर अस्तित्व को आधार ही नहीं देती बल्कि अपने अलग-अलग अवतारों से मानवजाति के जीवन का मार्ग भी प्रशस्त करती है। किसी भी धर्म और पौराणिक कथाओं में स्त्री ईश्वर के स्तर तक नहीं पहुंची।

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हिन्दुत्व ने स्त्री स्वरूप को ईश्वर से भी ऊपर स्थापित किया है और समस्त गुणों, कार्यों, ज्ञान,संतुलन, अध्यात्म, धर्म और साहस का केंद्र बताया है। जो कुछ भी अच्छा है, वो स्त्री से सृजित या निर्मित होता है, ये पर्व इसी की परिकल्पना है। सिर्फ सनातन संस्कृति ही माँ दुर्गा के नौ रूप और उनके अनंत गुणों को आत्मसात करने का उत्सव मानता है,

‘शक्ति’ अर्थात ‘शत्रुओं को जीतने वाली’, ‘दुर्गा’ का विस्तार संभवत: ‘दुर्ग’ शब्द से हुआ हो। ‘दुर्ग’ अर्थात् ‘किला’ जो सुरक्षा का प्रतीक है, सम्मान का हकदार है। स्त्री रूप का प्रतिनिधित्व करती ‘दुर्गा’ व ‘शक्ति’ दोनों ही सुरक्षा व सम्मान का प्रतीक हैं। संभवत: इसीलिए दुर्गा को देवी कहा गया। किंतु प्रतीकात्मक ये पूजा आध्यात्मिक धरातल पर भले ही मायने रखती हो, असलियत की जिंदगी में पाखंड और प्रपंच नजर आता है, नारी के दुख का कारण नजर आता है।

दुर्गा के रूप में पूजी जाने वाली शक्ति स्वरूपा स्त्री आज अधिकांश रूप में बेबस और लाचार नजर आती है। नारी का रूप बदला है किंतु नारी के प्रति संकीर्ण अवधारणाएं आज भी नहीं बदलीं बल्कि और संकीर्ण होती जा रही हैं। घर की लक्ष्मी बेटियां, गृहलक्ष्मी बेटियां, बहू लक्ष्मी आदि..और जब स्त्री क्लांत (गुस्सा) हो जाए तो वह दुर्गा का रूप ले लेती है जो ‘पाप का नाश’ के संदेश के रूप में नहीं बल्कि ‘नाशक’ के रूप में कही जाती है।

हिन्दू धर्म एकलौता ऐसा धर्म है जिसने स्त्री को पूजनीय बनाया। नवरात्र (Navratri) महिला सशक्तिकरण का प्रमाण नहीं बल्कि स्त्री के स्वयं में शक्ति होने का उल्लास है।

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पूरी दुनिया में 4300 धर्म हैं जिनमें से 75 प्रतिशत से अधिक वैश्विक आबादी हिन्दू, मुस्लिम,ईसाई, बौद्ध और यहूदी धर्म से जुड़े हुए हैं। इन सभी धर्मों में हिन्दू धर्म सबसे प्राचीन, सार्वभौमिक और विचारधारा के संदर्भ में सबसे व्यापक है। यह समाज के सभी वर्गों के बीच ना सिर्फ समानता स्थापित करता है बल्कि उनका सम्मान और विकास भी सुनिश्चित करता है। अगर हम सभी धर्मों के प्रमुख ग्रन्थों और उनकी परम्पराओं का तुलनात्मक अध्ययन करें

तो पाएंगे कि हिन्दुत्व ने नारी समानता और सम्मान के सिद्धान्त को सही मायने से वास्तविकता में परिवर्तित किया। हिन्दुत्व एक जीवनशैली बना और उसी जीवन शैली के माध्यम से नारी सम्मान और उसके अधिकारों के प्रति संवेदनशीलता को हमारे रुधिर में संचयित कर दिया। इसी जीवनशैली का एक उत्कृष्ट उदाहरण नवरात्र (Navratri) का पर्व है

सभी सिद्धियां प्रदान करने वाली आदि शक्ति के पावन उपासना का यह पर्व देश और समाज के उस दृढ़ संकल्प का पर्व बनना चाहिए जहां बेटियां बोझ न समझी जाएं।

उन्हें कोख में न मारा जाय। सड़कों पर उनका चीरहरण न हो। उनकी ओर हर निगाह सम्मान से उठे। उनके दामन को अपवित्र करने की नीयत वालों को ऐसा सबक मिले जिससे वह फिर ऐसी जुर्रत न कर सकें। आशा है जिनकी उपासना के लिए भक्तों ने पलक पांवड़े बिछाए हैं उनके गुणों और संदेशों को असल जिंदगी में भी अमल में लाएंगे।

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शक्ति के 9 रूप – 9 प्रेरणा

माता शैलपुत्री  – निश्चित रूप से भगवान शिव के लिए आदर का भाव रखने वाली माता शैलपुत्री से आज के समाज को सीखने की जरूरत है।

मां ब्रह्मचारिणी – मां ब्रह्मचारिणी को पर्वत हिमवान की बेटी कहा जाता है। आज प्रायः हर घर में कलह और द्वेष का माहौल है। लोग एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे रहते है। ऐसे अशांत मन वाले भक्तों के मन में शांति और तप भाव का संचार करें। 

माता चंद्रघंटा – हिम्मत और साहस का रूप माता चंद्रघंटा इस नवरात्र में अपने भक्तों का कल्याण करें, जिससे वह सही रास्ते पर चल सके।

माता कुष्माडा – माता कुष्माडा संसार मे फैले अंधेरे को अपने प्रकाश से प्रकाशमय कर दें, ताकि भक्तों का कल्याण हो सके। उनके द्वारा प्रदप्त शक्ति ही हमें मुक्ति, भक्ति दोनों प्रदान करती है। हम उपासना के साथ नारियों के सम्मान का संकल्प लें।

मां स्कन्दमाता – स्कन्दमाता समाज में चारों ओर फैले अंध विश्वास को हरने वाली है। उनसे प्रार्थना करें कि वे रुढ़िवादिता को उबरने हेतु हमें शक्ति व साहस दें।

मां कात्यायनी – शेर की सवारी करने वाली कात्यायनी मां समाज में पापियों की संख्या को घटाने मे काम करने वालों को संबल दे। जिससे समाज में अराजकता, भ्रष्टाचारी कम हो।

माता कालरात्रि – शुभ कुमारी के रूप में पूजे जाने वाली माता कालरात्रि  से दुर्व्यसनों, नशाखोरी, चोरी, डकैती आदि में लिप्त लोगों के मन को सही दिशा देने हुए विनती करें।

माता महागौरी – इस नवरात्रि भूत व भविष्य के पापों को धोने वाली माता महागौरी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए,

ताकि हम मन स्वच्छ हो सके और नेक रास्ते पर चल सके। माता सिद्धिदात्री की पूजा नौवें दिन की जाती है। इनकी पूजा करने से माता किसी को निराश नहीं करती हैं। उम्मीद है माता के भक्त भी इस नवरात्रि (Navratri) पर प्रतिज्ञा लेंगे कि वह सही रास्ते पर आगे बढ़ेंगे।

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माता की उपासना एवं तदनुसार संकल्पपूर्वक कार्य करने से ही समाज में नारी शक्ति सम्मान के साथ आगे बढ़ पायेंगी।